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शिवरात्रि : अर्धनारीश्वर अवस्था का आधार ‘स्वस्थ संभोग’ जिसे छुपाते हैं धर्म के ठेकेदार!

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      अनामिका प्रयागराज 

  हर शिव मंदिर में आप पार्वती की योनि में स्थापित शिवलिंग की प्रतीक-पूजा करते हैं. इसकी मिथकीय/पौराणिक ऐतिहासिकता क्या है? शिवपुराण वाचक षड्यंत्रकारी डपोरशंख भी यह नहीं बताते.

  मिथकीय कथानक के अनुसार ब्रह्मा और विष्णु किसी विशिष्ट मुद्दे पर सलाह लेने शिव के पास गए। उलझन कुछ इमरजेंसी वाली रही। कोई तात्कालिक संकट था। इसलिए अचानक पहुंच गए। द्वारपाल ने रोकने की कोशिश की।

उसने कहा :

      “महादेव तो अभी पार्वती से संभोग कर रहे हैं। आप थोड़ी देर रुक जाएं। ऐसे क्षण में बाधा डालनी उचित नहीं है। वे मैथुन साधना में लीन हैं।”

    थोड़ी देर ब्रह्मा और विष्णु रुके। आधा घंटा, घंटा, दो घंटा…फिर उन्होंने कहा :

“‘हद्द हो गई! यह किस भांति की काम-क्रीड़ा चल रही है? अब हमसे नहीं रुका जाता।”

   उत्सुकता भी बढ़ी कि यह हो क्या रहा है? तो वे भीतर पहुंच गए। शिव और पार्वती को पता भी न चला कि वे दोनों यहाँ आकर खड़े हैं।

   जब समग्रता से संभोग हो, स्वस्थ संसर्ग हो, तो नहीं पता चलता कौन वहां आ रहा है. उनका संभोग चलता रहा।

       कहानी कहती है :

 पूरे दिन रुके, लेकिन संभोग का अंत न हुआ। वे नाराज होकर लौट गए; और अभिशाप दे गये कि अब तुम संसार में काम-प्रतीकों की भांति ही जाने जाओगे।

इसीलिए शिवलिंग….!

इस आख्यान पर शक्ति की योनि में शिवलिंग आधारित है।

    जी हाँ, शिवलिंग अकेला नहीं है, नीचे पार्वती की योनि है, जिसमे वह स्थापित है। शिवलिंग योनिमैथुन का प्रतीक है। उसमें योनि और लिंग दोनों हैं।

   इस घटना को लोग बताते नहीं हैं। भय भी लगता है कि ऐसी कथा क्या कहनी! और खतरा भी है क्योंकि संभोग की बड़ी पकड़ है आदमी के मन पर। इसलिए भय भी है।

     लेकिन शिव का पूरा का पूरा सार संभोग के माध्यम से सत्य को जानने का है। शिवतंत्र/विज्ञानभैरव-तंत्र उनके इस दर्शन का नाम है। हमारे चेतना मिशन की कुछ ध्यान विधियां इस दर्शन पर भी आधारित हैं.

सत्य :

-संभोग से जाना जा सकता है,

 -स्वाद से जाना जा सकता है,

 -गंध से जाना जा सकता है,

 -श्रवण से जाना जा सकता है,

 -दर्शन से जाना जा सकता है।

यानी कोई भी ‘एक’ इंद्रिय उसका द्वार हो सकती है। ट्रेजडी यह है कि हर हालत में मन डरता है। मन चाहता है, पांचों बने रहें। पांचों के बीच मन जीता है।

 क्योंकि :

 मन अधूरा-अधूरा बंटा रहता है। जहां-जहां बटाव है, वहां मनका बचाव है। जहां इकट्ठापन आया कोई भी, कि मन घबड़ाया।

 क्योंकि :

   जहां सब इंद्रियों की ऊर्जा इकट्ठी हो जाती है, वहां आप भीतर इंटीग्रेटेड, अखंड हो जाते हैं। ये अखंडता सत्य के द्वार को खोल देती है।

   इसलिए किसी भी दिशा में भय न खाओ, हिम्मत करो। जिस तरफ भी आपका प्रवाह बहता हो, वहां पूरे बह जाओ–ध्यानस्थ, समाधिस्थ.

 द्वार खुल जाएंगे, जो सदा से बंद हैं।

सत्य अखण्ड है, खण्डित होकर उसको अनुभव नहीं कर सकते। अखण्ड यानी अद्वैत होना होगा। दो ज़िस्म एक जान होने का दुनियाबी फैक्टर नहीं चलेगा. जो आपकी भावना-संवेदना-चेतना को संस्पर्शित करे, उसके साथ एक ज़िस्म एक जान होना होगा.

 रहस्य ढंका हुआ नहीं है। आप टूटे हुए हो। आप इकट्ठे हुए, रहस्य खुला।

        विज्ञान भैरव तंत्र/मेडिटेटिवथेरेपी से वर्तमानयुग में दिनभर के संभोग की तो नहीं, अधिकतम डेढ़-दो घण्टे के डिवाइन संभोग की क्षमता से सम्पन्न बनना संभव है। इतना काफी है जीवन को जन्नत बनाने के लिए। विशिष्ट मेडिटेटिव सेक्स की इस प्रविधि में दक्ष बनने के लिए युगल अपनी आईडी भेजकर हमारे प्रशिक्षक डॉ. मानवश्री से व्हाट्सप्प 9997741245 पर सम्पर्क कर सकते हैं। कोई शुल्क नहीं है. केवल होमसर्विस स-शुल्क है।

*अर्द्धनारीश्वर का दार्शनिक और वैज्ञानिक पक्ष :*

      यह शब्द किसी पौराणिक कथाकार, मूर्तिकार, नर्तक, संगीतज्ञ या ऋषि मुनि के मन की कपोल कल्पना नही है। ये अपने आप में एक पूरे विज्ञान की थ्योरी को समेटे हुए है।

     सृष्टि के निर्माण के लिए, शिव ने अपनी शक्ति को स्वयं से अलग किया। शिव स्वयं पुरूष लिंग के द्योतक हैं तथा उनकी शक्ति स्त्री लिंग की द्योतक हैं।  पुरुष (शिव) एवं स्त्री (शक्ति) का एका होने के कारण शिव नर भी हैं और नारी भी, अतः वे अर्धनारीश्वर कहलाए जाते हैं।

       जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि को बनाने का कार्य आरंभ किया तब उन्होंने पाया कि उनकी रचनाएँ अपने एक निश्चित समय तक जीवन जीने के बाद स्वयं नष्ट हो जाएंगी तथा हर बार उन्हें नए सिरे से फिर से सृष्टि का निर्माण करना पड़ेगा।

     उस समय तक सृष्टि में स्त्री का निर्माण नहीं हुआ था, ब्रह्मा नारी को प्रकट करने में असमर्थ थे, इसलिए जब वे इस विषय में काफी सोच विचार करने के बाद भी किसी निर्णय पर नहीं पहुँच पाए।

     तब अपनी समस्या के समाधान के लिए वे शिव की शरण में पहुँचे। उन्होंने शिव को प्रसन्न करने हेतु कठोर तप किया। ब्रह्माजी के कठोर तप से शिव प्रसन्न हुए। ब्रह्माजी की समस्या के सामाधान हेतु शिव अर्धनारीश्वर स्वरूप में प्रकट हुए। आधे भाग में वे शिव थे तथा आधे  में शक्ति।

      इसी अर्धनारीश्वर रूप में शिवजी ने ब्रह्माजी को मैथुनी सृष्टि का रहस्य समझाने के लिए अपने शरीर में स्थित देवी शक्ति के अंश को पृथक कर दिया। जिससे उनके शरीर से नर और नारी भाग अलग हो गये। 

बाद मे उनकी इसी मैथुनी सृष्टि से संसार की वृद्धि तेजी से हुई।

    नर और नारी की इसी ऊर्जा का मिलन सभी सृजन का आधार है। इसलिए शिव और शक्ति एक साथ मिलकर इस ब्रह्मांड का निर्माण करते हैं। अर्धनारी रूप से यह भी पता चलता है कि भगवान शक्ति के महिला सिद्धांत को भगवान शिव के पुरुष सिद्धांत से कभी अलग नहीं किया जा सकता।

     शिव और शक्ति का संबंध- शक्ति , शिव की अविभाज्य अंग हैं। शिव नर के स्वरूप हैं तो शक्ति नारी की। दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं। शिव के बिना शक्ति का अथवा शक्ति के बिना शिव का कोई अस्तित्व ही नहीं है।

शिव अकर्ता हैं वो संकल्प मात्र करते हैं; शक्ति संकल्प सिद्धी करती हैं|

शिव कारण हैं; शक्ति कारक।

शिव संकल्प करते हैं; शक्ति संकल्प सिद्धी।

शक्ति जागृत अवस्था हैं; शिव सुसुप्तावस्था।

शक्ति मस्तिष्क हैं; शिव हृदय।

शिव ब्रह्मा हैं; शक्ति सरस्वती।

शिव विष्णु हैं; शक्त्ति लक्ष्मी।

शिव महादेव हैं; शक्ति पार्वती।

शिव रुद्र हैं; शक्ति महाकाली।

     शिव सागर के जल के सामान हैं तथा शक्ति लहरों के सामान हैं। लहर है जल का वेग। जल के बिना लहर का क्या अस्तित्व है? और वेग बिना सागर अथवा उसके जल का? यही है शिव एवं उनकी शक्ति का संबंध। 

 अर्द्धनारीश्वर और हम – लेकिन अगर आप सच में इस अर्द्धनारीश्वर के गूढ़ रहस्य के पीछे छिपे उस भाव को समझना चाहते हैं, जिसको समझाने के लिए शिव अर्धनारीश्वर के रूप में अवतरित हुए तो हमें शिव के इस रूप को गहराई से समझना पड़ेगा।

      अर्धनारीश्वर का अर्थ यह भी हुआ कि आपका ही आधा व्यक्तित्व आपकी पत्नी और आपका ही आधा व्यक्तित्व आपका पति हो जाता है। आपकी ही आधी ऊर्जा नारी और आधी पुरुष हो जाती है। और तब इन दोनों के बीच जो रस और लीनता पैदा होती है , उस शक्ति का कहीं कोई विसर्जन नहीं होता, वो अमर होती है।

बायोलाजिस्ट के अनुसार , हर व्यक्ति दोनों है – हर व्यक्ति बाई सेक्सुअल है। वह आधा पुरुष है , आधा स्त्री है। और होना भी चाहिए , क्योंकि आप पैदा एक स्त्री और एक पुरुष के मिलन से ही तो हुए हैं। तो आधे – आधे आपको होना ही चाहिए।

      अगर आप सिर्फ मां से पैदा हुए होते , तो स्त्री होते ; सिर्फ पिता से पैदा हुए होते , तो पुरुष होते। लेकिन आप में पचास प्रतिशत आपके पिता और पचास प्रतिशत आपकी मां के गुण मौजूद है। तो आप आधे – आधे होंगे ही – अर्धनारीश्वर होंगे। 

      जीवविज्ञान ने तो अब खोजा है इधर पचास वर्षों में , लेकिन हमने अर्धनारीश्वर के स्वरूप में , आज से कम से कम पचास हजार साल पहले , इस धारणा को स्थापित कर दिया। और यह धारणा किसी योगी के अनुभव के आधार पर खोजी गई है ।

     कोई भी योगी जब भीतर लीन होता है , तब पाता है कि मैं दोनों हूं – प्रकृति भी और पुरुष भी ; मुझमें दोनों मिल रहे हैं ; मेरा पुरुष मेरी प्रकृति में लीन हो रहा है ; मेरी प्रकृति मेरे पुरुष से मिल रही है ; उनका आलिंगन अबाध चल रहा है। मनोवैज्ञानिक भी कहते हैं कि आप आधे पुरुष हैं और आधे स्त्री।

     आपका चेतन पुरुष है , आपका अचेतन स्त्री है। अगर आपका चेतन स्त्री का है , तो आपका अचेतन पुरुष है। जगत द्वंद्व से निर्मित है , इसलिए आप दो होंगे ही। आप बाहर खोज रहे हैं स्त्री को , क्योंकि आपको भीतर की स्त्री का पता नहीं। आप बाहर खोज रहे हैं पुरुष को , क्योंकि आपको भीतर के पुरुष का पता नहीं।

    इसीलिए , कोई भी पुरुष मिल जाए , तृप्ति न होगी , कोई भी स्त्री मिल जाए , तृप्ति न होगी। क्योंकि भीतर जैसी सुंदर स्त्री बाहर पाई नहीं जा सकती। आपके पास , सबके पास , एक ब्लू प्रिंट है। वह आप जन्म से लेकर घूम रहे हैं। इसलिए आपको कितनी ही सुंदर स्त्री मिल जाए , कितना ही सुंदर पुरुष मिल जाए , थोड़े दिन में बेचैनी शुरू हो जाती है। लगता है कि बात बन नहीं रही।

    इसलिए सभी प्रेमी असफल होते हैं। वह जो प्रतिमा आप भीतर लिए हैं , वैसी प्रतिमा जैसी स्त्री आपको अगर कभी मिले , तो शायद तृप्ति हो सकती है। लेकिन वैसी स्त्री आपको कहीं मिलेगी नहीं। उसके मिलने का कोई उपाय नहीं है। क्योंकि जो भी स्त्री आपको मिलेगी , वह किन्हीं पिता और मां से पैदा हुई और उन पिता और मां की प्रतिछवि उसमें घूम रही है।

     आप अपनी प्रतिछवि लिए हुए हैं हृदय के भीतर। जब आपको अचानक किसी को देखकर प्रेम हो जाता है , तो उसका कुल मतलब इतना होता है कि आपके भीतर जो प्रतिछवि है , उसकी छाया किसी में दिखाई पड़ गई , बस। इसलिए पहली नजर में भी प्रेम हो सकता है , अगर किसी में आपको वह बात दिखाई पड़ गई , जो आपकी चाह है – चाह का मतलब , जो आपके भीतर छिपी स्त्री या पुरुष है – किसी में वह रूप दिखाई पड़ गया , जो आप भीतर लिए घूम रहे हैं , जिसकी तलाश है। प्रेम अपने उस जुड़वां हिस्से की तलाश है , जो खो गया ; जब मिल जाएगा , तो तृप्ति होगी।

      अर्द्धनारीश्वर हम सभी में विराजमान हैं जरूरत है अपने भीतर तलाशने की, क्योंकि जब तक आप अपने भीतर के उस स्त्री या पुरुष को महसूस नहीं कर पाएंगे , आप किसी भी प्रेम संबंध में खुश नहीं रह पाएंगे। क्योंकि यही अर्द्धनारीश्वर ही हमें अपने साथी के साथ पू्र्णता और आनंद का अहसास दिलाएगा। मार्ग है ध्यान या समान चेतना स्तरीय इंसान से गहनतम संसर्ग.

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