अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

क्या है LGBTQIA+ – यानी मुख्य धारा से अलग होना ?

Share

                 ~ सोनी कुमारी

L – Lesbian :

  जो औरत पैदा होती हैं और उन्हें औरत से ही प्यार होता है।

G- Gay :

   जो पुरुष पैदा होता है और  पुरुष को पसंद करता है।

B – Bisexual +

  जहां एक औरत/पुरुष को औरत और पुरुष दोनों से प्यार हो सकता है।

T- Transgender :

  जहां जो औरत पैदा हुई पर मन से पुरुष है ऐसे ही पुरुष पैदा हुआ पर उसे लगता है कि वो औरत है।

   जब एक Transgender पुरुष surgically खुद को औरत बनाए तब उसे Trans-Woman कहा जाएगा।

   जब एक Transgender औरत surgically खुद को पुरुष बनाए तब उसे Trans-Man कहा जाएगा।

  Q- Queer :

ये एक broad term है जो उन सभी को identify करता है जो नॉर्मल स्त्री या पुरुष नहीं है।

  मतलब ये कि ख़ुद को lesbian या कुछ भी अलग term न बोल बस Queer बोलें।

I – Intersex :

 ये उनके लिए जिनके पैदा होते वक्त reproductive organs underdeveloped रहे तो वो न औरत होते हैं न पुरुष।

A – Asexual :

  ये वो लोग जो किसी के प्रति सेक्सुअली आकर्षण महसूस नहीं करते । मन से प्यार महसूस कर सकते हैं।

+ –  :

 ये साइन उन सबके लिए जो इन terms जो ऊपर बताए गए हैं उनसे अलग है पर उसके लिए अभी कोई term ईजाद नहीं हुआ है.

 इसलिए “+” ताकि सबको include कर लिया जाए।

अब आज LGBTQ+ पर बात इसलिए कि मुझे लगा ज्यादातर हर देश में सबसे ज्यादा सिर पर पुरुष को चढ़ाया गया है बाकि सभी तो नीचे ही हैं।    

    स्त्रियां भी अब आगे आ रही हैं, उनके भी अधिकारों की बातें हो रही है. पर अभी पुरुष के बराबर आने में बहुत वक्त है।

   औरत को खुद भी अभी अपने अधिकारों का ज्ञान नहीं , अपने सम्मान की चिंता नहीं , जब वो खुद अपनी इज्जत करने लगे तभी तो पुरुष भी करेंगे।

   जब आप खुद की इज्जत करते हो तभी दूसरे भी आपकी इज्जत करते हैं।

   नॉर्मली जब कोई बच्चा पैदा होता है वो स्त्री या पुरुष पैदा होता है। जहां जो स्त्री है वो पुरुष को पसंद करे और जो पुरुष है वो स्त्री को पसंद करे.

    पर कभी – कभी ये भी हो सकता है कि जहां सेक्सुअल ओरिएंटेशन नॉर्मल से अलग हो जैसे ऊपर बताया गया है। ऐसे ही ऐसा भी हो सकता है कि जो बच्चा पैदा हुआ उसके सेक्सुअल ऑर्गन्स स्त्री या पुरुष से अलग हो।

    बच्चा जैसा भी हो , उसके मां – पिता हमेशा ही होंगे , वो आसमान से नहीं टपका होगा। माता-पिता अपने हर बच्चे से प्यार करते हैं , अगर किसी बच्चे की आंख नहीं या पैर नहीं या कोई और शारीरिक परेशानी है तो उसे छोड़ नहीं देते ये बोल कि उसके शारीरिक अंग नॉर्मल नहीं है।

   अब यहां जब आपके किसी बच्चे के सेक्सुअल  ऑर्गनस, नॉर्मल से अलग हैं या उनका ओरिएंटेशन अलग है तो उन्हें कैसे छोड़ पाते हैं।

     कोई भी बच्चा अपने आप इस दुनिया में नहीं आता उसे लाया जाता है तो जब तक वो खुद को संभालने लायक न बन जाए तब तक माता – पिता की जिम्मेदारी होती है अपने बच्चों को संभालने की।

    यहां हर माता – पिता को किसी से भी ऊपर अपने बच्चे को प्यार और अपनापन देना होगा। समाज ने अभी अच्छे से स्वीकृति नहीं दी है पर आपका बच्चा आपका है , औरों की स्वीकृति के मोहताज नहीं हैं आप अपने बच्चे को प्यार करने के लिए।

     सबको ऐसा लगता है कि सबसे ऊपर सिर्फ पुरुष फिर स्त्री उसके अलावा कुछ भी और है तो उनका अस्तित्व कुछ है ही नहीं।

   लेकिन हमें ये समझना होगा कि दिमाग , सोच , कला किसी की बपौती नहीं हैं। कोई भी इंसान जो पैदा हुआ वो अपने आप में खास है , किसी भी दूसरे इंसान को किसी की बेइज्जती करने का अधिकार नहीं।

    सिर्फ किसी एक specific लिंग में जन्म लेने से कोई महान नहीं हो जाता। आप वैसे हैं क्योंकि ईश्वर ने आपको वैसे भेजा जिसमें आपका कोई हाथ नहीं तो उस पर इतराने का भी आपको कोई अधिकार नहीं।

   ऐसे ही कोई अगर अलग पैदा हुआ तो उसे धिक्कारने का भी आपको हक नहीं क्योंकि उन्हें भी ईश्वर ने ही बनाया है शायद उन्हें नहीं पता होगा कि उनकी बनाई कलाकृति के साथ अन्याय होगा.

    हमें हर इंसान को इंसान समझते हुए उसे समान अधिकार और सम्मान देना होगा। किसी को क्यों वैसे जीना पड़े जो वो है ही नहीं , क्यों एक घुटन में जीना पड़े जहां उसके अस्तित्व पर हमेशा एक प्रश्नचिन्ह लगा रहे।

LGBTQ+ पाश्चात्य संस्कृति की देन नहीं हैं। बच्चे ऐसे भी पैदा होते हैं भारत में पहले सामाजिक बहिस्कृत होने के डर से बताते नहीं थे पर अब उन्होंने बताना शुरू कर दिया है अपने बारे में।

   LGBTQIA+ समुदाय के लिए “नालसा केस 2014” को पढ़ा जा सकता है जिसके अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय ने घोषित किया है कि व्यक्तियों को अपने यौन अभिविन्यास की पहचान करने का अधिकार है।

       एक किन्नर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी जी ने दावा किया कि किन्नर होने की वजह से  संविधान के आर्टिकल 14 और आर्टिकल 21 के तहत उन्हें उनके अधिकारों से वंचित किया जा रहा है तब ये नालसा जजमेंट आया ताकि इस समुदाय को और अधिक सामाजिक भेदभाव न सहना पड़े।

    समाज के सभी लोगों को समान तरह से जीने के हक मिले. LGBTQIA+ समुदाय हमारा ही हिस्सा हैं। उन्हें बिना भेदभाव सुकून भरी जिंदगी जीने का अधिकार मिले।

    किसी भी शारीरिक अंग या orientation के बाकि लोगों से अलग होने से उनके बाकि अंगों की उपेक्षा नहीं की जा सकती हो सकता है. दिमागी रूप से वो इतने ऊंचे हों कि क्या ही कर जाएं उन्हें बस साथ चाहिए हम सबका। हमें , हमारे समाज को सबको साथ लेके चलना है जहां सभी प्यार और सम्मान से जी सकें।

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें