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मध्य प्रदेश  की वो 5 महिलाएं, जिन्होंने गाड़ दिए झंडे

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इंदौर की जनक पलटा, झाबुआ की शुभदा भोंसले, माया विश्वकर्मा, कंचन वर्मा, शिवलता मेहता और जोधइया बाई मध्य प्रदेश की आत्मनिर्भर नारियों के उदाहरण हैं।

शिक्षा की नई राहें और बदलते दृष्टिकोण की वजह से महिलाएं आज एक शक्ति के रुप में उभर रही हैं। बावजूद इसके महिलाएं आज भी अपने वजूद के लिए तरसती हैं। आत्मनिर्भर और सशक्त नारी होना कोई छोटी बात नहीं होती। इसका मतलब पुरूष की तरह व्यवहार करना नहीं, बल्कि अपना नारीत्व दुनिया के सामने लाकर यह जाहिर करना है कि आप क्या बनना चाहती हैं। इस लेख में हम आपको बता रहे हैं मध्य प्रदेश की ऐसी ही 5 आत्मनिर्भर और सशक्त नारियों के बारे में, जिन्होंने तमाम मुश्किल और चुनौतियों के बावजूद हार नहीं मानी और आदर्श बनकर दूसरी महिलाओं और पूरी दुनिया के लिए उदाहरण स्थापित किए।

‘जनक पलटा’

’इंदौर के सनावड़िया गांव में ‘सौर ऊर्जा और ‘ पवन ऊर्जा ’ के संयोजन का अनूठा केंद्र है। यह ‘जनक पलटा मगिलिगन’ का घर है। उनकी उम्र 74 वर्ष है। पद्मश्री से सम्मानित हैं। कुछ दशक पहले वे और उनके ब्रिटिश मूल के पति जिमी मगिलिगन इंदौर आए थे। यहीं पर बरली महिला ग्रामीण विकास संस्थान का संचालन कर समाजसेवा करने लगे। इसके जरिए उन्होंने आदिवासी अंचल की करीब 6 हजार बेटियों को आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा दी है। जनक पलटा का पूरा जीवन पर्यावरण संरक्षण के लिए समर्पित है।

जनक पलटा को मिले प्रमुख सम्मान

• वर्ष 2001 में उत्कृष्ट महिला सामाजिक कार्यकर्ता पुरस्कार
• वर्ष 2006 में जनजातीय महिला सेवा पुरस्कार
• समाज सेवा के उत्कृष्ट कार्यों के लिए पद्मश्री पुरस्कार
• मध्यप्रदेश गौरव सम्मान

शुभदा भोंसले’

यंगेस्ट महिला अंपायर शुभदा

झाबुआ की रहने वाली शुभदा देश की सबसे यंग महिला अंपायर हैं। जनवरी 2022 को उन्होंने ओमान में आयोजित लीजेंड क्रिकेट लीग में मैच की अंपायरिंग कर यह उपलब्धि हासिल की। वह झाबुआ जिले के थांदला कॉलेज में खेल अधिकारी हैं। जिस टूनार्मेंट में उन्होंने यह रिकॉर्ड बनाया उसमें पाकिस्तान, दक्षिण अफ्रीका और हांगकांग की सभी महिला अंपायर में शुभदा सबसे कम उम्र की महिला अंपायर थीं।

पैड वूमन ‘माया विश्वकर्मा’

माया विश्वकर्मा मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले की रहने वाली हैं। अब देश की पैड वुमन के रूप में जानी जाती हैं। माया पूरे देश में मासिक धर्म से जुड़े तमाम मिथकों को समाज से मिटाने की कोशिश में लगी हैं। अमेरिका में रहने के बावजूद उन्होंने 26 की उम्र तक सैनेटरी पैड का यूज नहीं किया। कपड़ा इस्तेमाल करने की वजह से माया को कई तरह के संक्रमण हो गए। जब उन्हें अपनी बीमारी की असल वजह पता चली तब उन्होंने अपना इलाज करवाया। इसके बाद उन्होंने लड़कियों और महिलाओं को सुरक्षित मासिक धर्म के महत्व के बारे में शिक्षित करने का फैसला किया। उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, सैन फ्रांसिस्को में ब्लड कैंसर पर रिसर्च किया है। वह कैलिफोर्निया से भारत आकर ग्रामीण महिलाओं को मेंस्ट्रुअल हाइजीन के बारे में शिक्षित करती हैं। आज वह सबके लिए एक प्रेरणा हैं। बड़ी बात ये है कि माया के घरवाले खेती-मजूदरी करके घर की जरूरतें पूरी करते थे, इसके बावजूद उन्होंने पढ़ाई से कोई समझौता नहीं किया।
कंचन वर्मा और शिवलता मेहता

होशंगाबाद जिले की महिला किसान ‘कंचन वर्मा’ और ‘शिवलता मेहता’ को पीएम मोदी ने कृषि कर्मण अवार्ड दिया था। दोनों ने गेंहू और चने की खेती में नए तरीके को ईजाद कर रिकॉर्ड तोड़ पैदावार ली। 2016-17 के लिए गेहूं उत्पादकता में कंचन वर्मा और दलहन उत्पादकता में 2017-2018 के लिए शिवलता मेहता को ये पुरस्कार दिया गया। इसमें खास बात ये है कि कंचन वर्मा ने ट्रैक्टर और हल से बुआई नहीं की, बल्कि हाथ से गेंहू बोया। उन्होंने एक हेक्टेयर में 44 क्विंटल तक की पैदावार करके नया रिकॉर्ड बनाया। इसी तरह शिवलता ने भी चने की हाथ से बुआई की। साथ ही कीटनाशक के बजाय प्राकृतिक तरीके से ही कीटों पर नियंत्रण किया।

जोधइया बाई

उमरिया जिले की जोधइया बाई

जोधइया बाई 40 साल से भी ज्यादा समय से ट्राइबल पेंटिंग्स बना रही हैं। अभी वह 85 साल की हैं। इस उम्र में भी उनके हाथ कैनवास पर खूबसूरत चित्र बनाते हैं। वह मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल उमरिया जिले के गांव लोढ़ा में रहती हैं। 8 मार्च 2022 को जोधइया बाई को तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया था। वह कभी स्कूल नहीं गईं, लेकिन उनकी अद्भुत कला के चलते अब उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचाना जाता है। वह बैगा जनजाति की विलुप्त होती कला को फिर से जीवंत करने का काम कर रही हैं। उनकी पेंटिग्स इटली के मिलान से लेकर फ्रांस के पेरिस तक शोकेस हो चुकी हैं।

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