माहौल-मौसम ऐसा जैसे शहर में झड़ी लगी हो, बरस रही बस फुहारें_
*_दिनभर छाई रहती है आसमान पर घटाटोप, रोज लगता है आज पेटभर गिरेगा पानी, मिमी से आगे नहीं बढ़ रही बारिश_*
मौसम का ऐसा मिज़ाज तो देखा ही नहीं। आसमान नीर भरे बादलो से अटा पड़ा है लेकिन बारिश के नाम पर बस फुहारें बरस रही हैं। यू तो मनभावन सावन में ” सावन के सेरे” बरसते है लेकिन इस बार ये इसलिए मन को नही भा रहे क्योंकि अभी तक हम सबको मानसून के मौसम की एक भी झमाझम बारिश नही मिली। मौसम का मिजाज जोरदार बारिश का है। तीन तीन मजबूत वर्षा के सिस्टम प्रदेश पर बने हुए हैं। आये दिन “येलो” अलर्ट के सन्देश भी दौड़ रहे है लेकिन जमीन पर पानी के मामले में अब तक सब “ब्लेक” और ” ब्लेंक” है। मामला रिमझिम से आगे झम झमाझम में तब्दील नही हो रहा है। अहिल्या नगरी का आंगन यू तो भीगा भीगा है लेकिन मन सूखा सूखा है। जब तक जोरदार झड़ी नही लगती, मन का सूखापन जाना नही हैं। मौसम के जानकार भी हैरान है कि इस बार के मानसूनी बादल ये क्या रंग दिखा रहे है। छा तो रहे है लेकिन न तो थम रहे है और न वैसे बरस रहे है, जैसे इन दिनों बरसा करते थे। नतीज़तन जिला बारिश के मामले में अब पिछड़ता जा रहा हैं। अब सिवाय इंदर राजा को मनाने, मेघराज की गुहार करने और रूठी बरखा रानी की मनुहार करने के अलावा कोई चारा ही नही। इंदौर के लिए आपका ये पक्का इन्दौरी ख़ुलासा फर्स्ट आज ये ही कर रहा है। अरज सुन लेना हो ” इंदर राजा”…!!_*
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*नितिनमोहन शर्मा*
है, मेघराज…आखिर कब तक तरसाओगे? अब बस बरस भी जाओ। रोज आप आकर आसमान पर ऐसा डेरा डालते हो कि मन मयूर मस्त हो जाता है कि आपने सुन ली हम सबकी। लेकिन सुबह मस्त होने वाला मन मयूर, सूर्य अस्त के साथ मुरझा जाता है और एक दिन और रीता बीत जाता हैं। अगले दिन आप फिर गगन पर ऐसे छा जाते हो कि आज सब दिन की कसर पूरी कर दोगे। दिन में ही अंधेरा भी छा जाता है और लगता है बस मूसलाधार शुरू ही होने वाली है लेकिन सड़क गीली कर के आप थम जाते हो और मन मयूर सूखा ही रह जाता हैं। कुछ तो रहम करो मेघराज। अगल बगल में आप अपनी कृपा दृष्टि का नेह बरसा रहे है तो फिर देवी अहिल्या की नगरी इंदौर से क्या अदावत? शिव प्रिया की इस नगरी से ऐसा क्या अपराध हुआ कि आप दिन दिनभर इस शहर के आसमान पर डेरा डाले रहते हो लेकिन बिन बरसे बिदा हो जाते हो? तरस खाओ, बरस भी जाओ अब मेघराज..!!
*है, इंदर राजा…ये फुरफुरी से काम चलने वाला नही। ये रोज आपके मेघ रूपी दूत यहां आ जाते है, छा भी जाते है लेकिन ” पानी-छीटे” की औपचारिकता से आगे कुछ करते धरते नही। मौसम जरूर भीगा भीगा कर रहे है आपके दूत लेकिन अब इससे काम नही चलना। इंदर राजा माहौल औऱ मौसम तो आपने ऐसा कर रखा है इस शहर में, जैसे दो चार दिन से झड़ी लगी हो। लेकिन आसमान से सिर्फ फुहारें ही बरस रही है इंदर राजा। अब इन फ़ुहारों का हम क्या करे? क्या इस दिन के लिए 45-47 डिग्री का ताप सहा की अब अल्पवर्षा का संताप भी झेले? सब तरह आप जमकर बरस रहे हो। अगल बगल के जिले, संभाग में तो आप हद से बाहर झम झमाझम में व्यस्त है और इंदौर में आप बात रिमझिम से आगे बढ़ा ही नही रहे हो। रोज पश्चिमी हवाएं चंल रही है। हवाओ में गति रफ्तार भी गज्जब है। घटाटोप भी गहन हैं लेकिन असली मानसूनी बारिश अब तक अहिल्या के आंगन से नदारद हैं।*
है, इंदर राजा…धरती का कंठ अभी रीता हैं। इस बार वह खूब तपी हैं। एकमुश्त पानी से ही धरा की प्यास बुझेगी। एक आप है कि एकमुश्त बारिश जैसे भूल ही गए हो। जमकर बरसो तो शहर भी धुले। अभी तो शहर की सड़कों, गलियों में ही पानी बहकर नही निकला। नालों में पसरी गंदगी भी तो तब बहेगी, जब वह उफान पर आएंगे। अभी तक तो ताल, तलैया, नदी, सरोवर भी उफ़ने नही हैं। माई नर्मदाजी में भी अब तक ” पूर ” नही आई। वह ऊपर तो चड़ी हुई है लेकिन पानी वह पूरब की उस बारिश का लेकर चंल रही जो डिंडोरी से लेकर मंडला, अमरकंटक में बरस रहा हैं। शिप्रा, शिवना, चंबल, माही सब आपकी और टकटकी लगाए देख रही है लेकिन आपका मन पसीज ही नही रहा। रोज लगता है आज पेटभर पानी गिरेगा लेकिन बात मिमी से आगे नही बढ़ रही हैं। अब तक धरती के कलेजे में 15-17 इंच तक पानी उतर जाना था। लेकिन बात 10 इंच के आसपास ही आकर अटक गई है। ऐसा दिनभर भीगा भीगा, गीला गीला मौसम किस काम का जो बारिश का आंकड़ा ही नही बढ़ा पाए? ये फुरफुरी से जमीन पर “कीचड़ घान” पसरा है, जो झमाझम से ही धुलेगा।
*बरखा रानी, काहे रूठी हो?*
*बरखा रानी, आप कहा हो? क्या हमसे रूठी हो? ये आपकी सखी सहेली रूपी बूंदाबांदी तो नजर आ रही है लेकिन आप नही दिख रही। अपनी जगह ये रिमझिम सखियों को क्यो भेज रही है? सब बड़ी बेसब्री से आपकी बाट जोह रहे है कि बरखा रानी आएगी अपने पूरे लाव लश्कर के संग। आपकी अगवानी का मौसम तो तैयार है बस आपका इंतजार है। यहां हम रोज बूंदों से मनुहार कर रहे है कि वे आपको भेज दे। आप खुद आने की जगह फ़ुहारों को भेज रही है। दरकार झम झमाझम झड़ी की है। जो आपकी पहचान है। बरखा रानी आपका श्रंगार ही तो झड़ी और वो यू ही दिन ब दिन कम होती जा रही है। इस बार भी आपका झड़ी वाला रूप लावण्य हमे देखने को नही मिलेगा? कभी आप इस लावण्य के साथ सात सात दिनों तक अहिल्या नगरी में विराजमान रहती थी। बस वैसे ही पुराने दिनों की तरह लौट आओ न? ये नई पीढ़ी विश्वास ही नही करती कि कभी बरखा रानी सात दिन की झड़ी के रूप में आती थी। बरखा रानी इस बार हमारी बात को सच साबित कर दो न? अब तो हमे ही आपको पांच सात दिन एक जैसा देखे बरसो हो गए। आप रूठो न, मान जाओ ओर अब आ भी जाओ। सप्ताहभर के बंदोबस्त के संग। पानी का सब बकाया हिसाब किताब एक ही झटके में पूरा कर दो।*