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चुभते सवालों पर एक बुरी लगने वली कविता

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आरती शर्मा

क्या आपने कभी
न्याय के पक्ष में
खड़ा होने के लिए
ऐसे किसी का दामन छोड़ा है
जिसे आप बेइंतहा प्यार करते रहे हों?
क्या आपने कभी
सच बोलकर
जेल के सींखचों के पीछे
धकेल दिये जाने का
जोखिम मोल लिया है?
क्या ऐसा कभी हुआ है आपके साथ
कि उसूलपरस्ती की ज़िन्दगी
बिताने के कारण
आपके सबसे अपने लोगों पर
विपत्ति का कहर टूट पड़ा हो
या आपके सबसे अपने लोगों ने ही
आपसे मुँह मोड़ लिया हो?
क्या आपने कभी वैज्ञानिक तर्क की ख़ातिर
भावनाओं की बलि चढ़ाई है?
क्या आपने कभी हड्डियाँ घिसकर
दो जून की रोटी जुटा पाने वाले
लोगों के साथ अपनी ज़िन्दगी के
कुछ दिन बिताये हैं?
अगर नहीं, तो फिर
माफ़ कीजिए,
आप कुछ नहीं जानते
ज़िन्दगी को,
अपनी प्रेमिका या प्रेमी को,
ऋतुओं को,
या पर्वतों-समंदरों और नदियों
और कविता को प्यार करने के बारे में!
यश और पुरस्कार और सोने की गिन्नियों
और सुरक्षित बुढ़ापे के लिए
और सुअरों जैसी आरामतलबी के लिए
आप सौन्दर्य शास्त्र पर लेक्चर देते हैं,
निराला और मुक्तिबोध की व्याख्या करते हुए
ग्रंथ पर ग्रंथ लिख डालते हैं,
कविताओं में प्रकृति और जीवन के
सौन्दर्य के आख्यान रचते हैं!
और फिर भी जब आपकी
अनंत यशलिप्सा शांत नहीं होती
तो आप उत्तर-आधुनिक विचारक
बन जाते हैं और पेट में उमड़ते-घुमड़ते ़
गैस के दबाव का मुकाबला करते हुए
‘इतिहास के अंत’ और
‘क्रांतियों के महाख्यानों के विसर्जन’ की
घोषणाएँ करने लगते हैं
और क्लासरूम और सेमिनार हाॅल में
निठल्ले वाग्विलासियों के बीच बैठे
कुछ सहृदय, विवेकवान, उत्कंठित युवाओं को
समझाने लगते हैं कि कहीं भी कुछ
बदलने की कोशिश व्यर्थ है और
उत्तर-सत्य के इस युग में
सिर्फ़ विमर्श ही किया जा सकता है
और लगे हाथों अपना कैरियर भी
सँवारा जा सकता है!
सच यह है कि आप
जनसमुदाय के सपनों के अपहरणकर्ता हैं,
एक बौद्धिक ठग और गिरहकट हैं,
आप हैं वह पक्षी जो दीमक पाने के लिए
अपने सारे पंख बहुत पहले ही
बेच चुका है और अब
नये उगते पंखों वाले शिशु पक्षियों को
बतला रहा है कि
उड़ने की ख़्वाहिश एक मानसिक बीमारी है
और पंख सिर्फ़ इसलिए होते हैं कि
इनको बेचकर दीमक ख़रीदे जायें
अन्यथा पक्षियों के लिए
पंखों से बड़ा अभिशाप
और कुछ भी नहीं होता!

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