मुनेश त्यागी
भारत ने अंग्रेजों की गुलामी का खात्मा करके एक नया संविधान बनाकर, एक नए और आधुनिक इंसान बनाने की कामना की थी जो समता, समानता, भाईचारे, धर्मनिरपेक्षता और समाजवादी सोच से भरपूर होगा और जो एक बेहतर देश, बेहतर समाज और बेहतर इंसान का निर्माण किया जाएगा, जो सभी मानवीय गुणों और मूल्यों से भरपूर होगा, मगर आज का माहौल बता रहा है कि भारतीय शासन व्यवस्था और समाज उपरोक्त किस्म का इंसान बनने में नाकाम रहा है और इसका सबसे बुरा असर हमारे परिवार पर पड़ा है।
आजकल भारतीय समाज, शादी विवाह टूटने की, पारिवारिक संबंध खराब होने की विभीषिका से गुजर रहा है। हमारे देश में आए दिन नए नए तथ्यों, आरोपों और क्रूरताओं को जन्म दिया जा रहा है और इन्हें लेकर बहुत सारे पारिवारिक जोड़ें अदालतों की शरण में आ रहे हैं और वहां पर तलाक के मुकदमे दायर कर रहे हैं।
कोई पत्नी को मोटी होने पर तलाक ले रहा है, तो कोई पत्नी अपने पति के ऑफिस में पहुंचकर उस पर अनाप-शनाप आरोप लगा रही है, कुछ केसों में सास ससुर अपनी पत्नी को अपनी बहू को दासी और नौकरानी और छोटे घर की और उसे नीच बताकर उसके साथ क्रूरता और अपमान का व्यवहार कर रहे हैं। कुछ मामलों में पति, अपनी पत्नी के साथ अप्राकृतिक कृत्य कर रहा है, कुछ मामलों में पत्नी अपने पति पर झूठे आरोप लगाकर विवाह को खत्म करना चाहती है और तलाक लेना चाहती है।
बहुत सारे मामलों में बहुएं अपने सास-ससुर की इज्जत नहीं करती, सभ्य और सुसंस्कृत कपड़े नहीं पहनती, वे आधे अधूरे कपड़े पहन कर अपने सास-ससुर को लगातार चिढाती रहती हैं। कुछ मामलों में पत्नी अपने पति को लेकर, अपने सास-ससुर से अलग होने की जिद पर अड़ी हुई है। बहुत सारे मामलों में पत्नियां अपने ससुराल वालों पर, कम दहेज लाने का आरोप लगाकर अदालतों की शरण में हैं। कई सारे मामलों में लड़का न पैदा होने की स्थिति में पत्नियों को तलाक दिए जा रहे हैं और उन्हें बेटा न पैदा करने के लिए दोषी ठहराया जा रहा है।
इस प्रकार भारतीय समाज में विभिन्न कपोल कल्पित आधारों पर, तो कहीं सच्चाई पर आधारित मामलों को लेकर, तलाक लेने के लिए, पति पत्नी अदालतों की शरण में आ रहे हैं और आज यह देखा जा रहा है कि पारिवारिक संबंध इतने खराब हो चुके हैं कि जैसे हजारों मामलों में तलाक के मामलों को लेकर, भरण पोषण के मामले को लेकर, दहेज कम लाने के मामलों को लेकर, पति पत्नी और सास-ससुर का सम्मान न करने, सास ससुर द्वारा अपनी बहू का सम्मान न करने को लेकर, जैसे मुकदमों की बाढ़ आ गई है।
आज अदालतों में सबसे ज्यादा मुकदमें पारिवारिक न्यायालय में दाखिल किए जा रहे हैं और ऐसा लगता है कि जैसे भारतीय समाज विखंडन के स्तर पर पहुंच गया है। आज ये मामले बहुत गहराई से छानबीन की दरकार रखते हैं। भारत के हर परिवार और माता पिता को अपने बच्चों को, बेटे बेटियों को अच्छे संस्कार देने की पहल, अपने परिवार से ही करनी पड़ेगी। अपने बच्चों में यह संस्कार रोपने होंगे कि वह आदमी को आदमी समझे, अपने सास-ससुर को, देवर देवरानी और ननंद को, अपने घर के लोगों की तरह समझे, उनका सम्मान करें।
वहीं दूसरी तरफ सास ससुर को भी अपने सामंती रीति-रिवाजों और व्यवहार में तब्दीली और सुधार करना होगा। उसे उन्हें अपनी बहू को अपनी बेटी और बच्चों के समान रखना होगा। उन्हें अपनी बहुओं को यह विश्वास दिलाना होगा कि हमारी बहू, हमारी दासी हमारी गुलाम और हमारी सेविका नहीं है, बल्कि वह हमारी बेटी के बराबर है और हम उसे अपने घर की बेटी समझकर उससे मानवीय और अपनेपन का व्यवहार करेंगे, उसका सम्मान करेंगे उसके व्यक्तित्व का ख्याल रखेंगे।
आज हालात यहां तक खराब गए हैं कि पति पत्नी शादी को एक बुराई की तरह ले रहे हैं और जैसे “इस्तेमाल करो और फेंक दो” जैसी मानसिकता अपना रहे हैं। आजकल पत्नी को ऐसे समझा जा रहा है जैसे कि “हमेशा के लिए चिंता को आमंत्रित किया जा रहा है”, उसे पत्नी नहीं समझा जा रहा है, उसे “यूज एंड थ्रो का सामान” बना दिया गया है। आजकल बहुत सारे घरों में पत्नियों को, अपनी सैक्स पूर्ति करने की, बच्चा पैदा करने की मशीन और कपड़े धोने की मशीन समझा जाता है उसके सारे मानवाधिकारों का हनन किया जाता है।
प्राचीन काल से ही हमारे समाज में विवाह को एक पवित्र संस्कार समझा गया है। इसी के तहत बहुत सारे मुहूर्त निकाल कर शादियां की जाती हैं। हमारे समाज में शादी को एक मजबूत समाज के नियम के तौर पर देखा जाता है। विवाह यौन इच्छाओं की पूर्ति का लाइसेंस देने वाली कोई खोखली रसम भर नहीं है, बल्कि यह एक पवित्र संस्कार है। इससे एक सभ्य समाज का निर्माण होता है, एक अच्छा परिवार बनता है जिससे अच्छे बच्चे और बच्चियां निकलती हैं, अच्छे बेटे और बेटियां निकलती हैं और इसका समाज पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ता है।
हकीकत यह भी है कि भारतीय समाज में बहुत तरह के शोषण, अन्याय, जुल्म ओ सितम, गैर बराबरी, छोटे बड़े की सोच, ऊंच-नीच की सोच आज भी कायम है। पैसे को प्राथमिकता दी जाती है आदमी को नही, पद और प्रतिष्ठा को अहमियत दी जाती है आदमी या औरत को नहीं। हकीकत यह भी है कि हमारे समाज में बहुत सारी औरतों और पुरुषों, बेटे और बेटियों और बहुओं को मानव ही नहीं समझा जाता। उन्हें शोषण की वस्तु समझा जाता है, उन्हें अधिकार विहीन समझा जाता है।
आजादी के बाद, हमारे समाज में जिस आधुनिक मानवता का निर्माण होना था, जिस आधुनिक वैज्ञानिक और ज्ञानी, मनुष्य का निर्माण किया जाना था, वह नहीं हुआ और हमारे यहां हजारों साल पुरानी ऊंच-नीच, छोट बडाई, गैर बराबरी, भेदभाव, असमानता और अमानवीयता की सोच और व्यवहार मौजूद रहा। इसी का कारण आज हमारे बच्चों पर, हमारे माता-पिता पर, हमारे साथ ससुर पर, हमारी बेटियों पर, हमारी बहुओं और दामादों पर और हमारे परिवारों पर पड़ रहा है। हमारे अधिकांश बच्चे पूंजीवादी अवगुणों का शिकार हो गए हैं और अब वे पद, प्रतिष्ठा, पैसा, प्रभाव और दूसरों पर अनचाहा प्रभुत्व जमाने की मानसिकता के शिकार हो गए हैं, जिसका सबसे ज्यादा खामियाजा हमारी बेटियों, बेटों और बहुओं को भुगतना पड़ रहा है और परिवारिक विग्रह के बढ़ते मामले इसका जीता जागता परिणाम हमारे सामने मौजूद है।
इसी के साथ साथ भारतीय शिक्षा पद्धति में भी सुधार करना बहुत जरूरी है क्योंकि आजकल की शिक्षा अच्छे और संस्कारवान मानसिकता और बच्चे पैदा ना कर वह केवल और केवल पद और प्रतिष्ठा पाने का माध्यम बन गई है। हमारी शिक्षा व्यवस्था आज हमारे बच्चों को अच्छे संस्कार नहीं दे रही है, उन्हें अच्छा मानव नहीं बना रही है, उनमें वैज्ञानिक संस्कृति पैदा नहीं कर रही है, उनमें ज्ञान विज्ञान का साम्राज्य पैदा नहीं कर रही है। बल्कि हमारी शिक्षा पद्धति आज केवल और केवल पैसा कमाने का जरिया बन गई है और इस अंधाधुंध पैसा कमाने की मानसिकता ने हमारे अधिकांश बच्चों को हैवान बना दिया है।
आज जैसे पैसा कमाना ही उनका एकमात्र उद्देश्य बन गया है और इस अंधी दौड़ में वे, एक अच्छा मानव बनने से, एक अच्छा पिता बनने से, एक अच्छा बेटा बनने से, एक अच्छा पति बनने से, एक अच्छी बेटी बनने से, एक अच्छी बहू बनने से और एक बेहतर नागरिक और बेहतरीन इंसान बनने से वंचित हो गए हैं। अतः आज हमें अपनी शिक्षा व्यवस्था में आवश्यक मानवीय सुधार करने सबसे ज्यादा जरूरी हो गये हैं, केवल तभी जाकर इस बिखरते और टूटते परिवारों और संबंधों को और बिखरते हुए और टूटते हुए मानवीय समाज को बचाया जा सकता है और केवल तभी जाकर एक मानवीय परिवार और मानवीय समाज का निर्माण किया जा सकता है।
इसी के साथ साथ हमें बच्चों के लालन पोषण में भी ध्यान देना होगा। हमें अपने बच्चों को दूसरे बच्चों के साथ और दूसरे परिवारों के साथ एडजस्ट होना सिखाना पड़ेगा। हमें अपने बच्चों की जिद को पूरा करने से बचना होगा, उनकी हर जिद को पूरा नहीं किया जा सकता। उन्हें यह समझाना होगा। हां अपनी स्थिति के अनुसार, हमें अपने बच्चों की आवश्यकता पूर्ति करनी होगी, इसमें हम कोई कोर कसर ना रखें। मगर बच्चों की जिद को किसी भी तरह से पूरा ना करें, ऐसा ना करने से, हमारा बच्चा अपने माहौल से एडजस्ट नहीं कर सकता और वह इस प्रकार एक जिद्दी प्रकृति का शिकार हो जाता है जो बाद में जाकर, अपने लिए, अपने परिवार के लिए, अपने ससुराल वालों के लिए और परिवार के लिए, और समाज व देश के लिए, बहुत सारी समस्याएं पैदा कर सकता है। इसी के साथ साथ हमें अपने बच्चों को यह भी सिखाना होगा कि वे पद, पैसा, प्रतिष्ठा और प्रभुत्व जमाने की मानसिकता का शिकार न बनें।
यहां पर एक बात समझना और बेहद जरूरी है कि हम आज सामंतवाद, पूंजीवाद, साम्राज्यवाद, अंधविश्वास, धर्मांधता और साम्राज्यवाद के कॉकटेल में जी रहे हैं। वर्तमान व्यवस्था का सबसे ज्यादा ध्यान मुनाफा कमाने पर है। यह व्यवस्था एक बेहतरीन इंसान, एक बेहतरीन मानसिकता और बेहतरीन सोच पैदा नहीं कर सकती। इसका असर हमारे समाज और हमारे पर पारिवारिक ताने-बाने पर भी पड़ रहा है और इसीलिए हमारे समाज में आज भी हजारों साल पुराने अन्याय, शोषण, जुल्म, अत्याचार, भेदभाव और छोटे बड़े की सोच और ऊंच-नीच की सोच बनी हुई है जो एक बेहतर इंसान और समाज और परिवार बनाने में सबसे बड़ी रुकावट का काम कर रही है। आज एक बेहतर समाज एक बेहतर परिवार और बेहतरीन आदमी बनाने के लिए जरूरी है कि हम उपरोक्त मनुष्य विरोधी, जन विरोधी और समाज विरोधी विचारधारा का, सोच का और मानसिकता का विरोध करें।
और इसके स्थान पर एक समतावादी, इंसाफपरस्त, समानतावादी, धर्मनिरपेक्ष, जनतंत्रवादी, भाईचारे से परिपूर्ण और समाजवादी सोच का, मानसिकता का और सामाजिक व राजनीतिक व्यवस्था का निर्माण करें, जनता में आपसी प्यार मोहब्बत और भाईचारे की भावना कूट-कूट कर भरें, तभी हमारे भारत में एक बेहतर समाज, एक बेहतर परिवार और एक बेहतरीन आदमी का निर्माण किया जा सकता है और इसका फायदा सबसे ज्यादा हमारे माता-पिता, हमारे बच्चों को होगा। यह काम करना आज की सबसे ज्यादा और सबसे बड़ी जरूरत बन गई है।