डॉ. नेहा, दिल्ली
स्ट्रोक एक मेडिकल इमरजेंसी है। इसमें अगर जरा सी भी देरी या लापरवाही की जाए, तो गंभीर जोखिम हो सकते हैं। समय रहते मेडिकल हेल्प मिलने से मस्तिष्क को होने वाले नुकसान और अन्य स्ट्रोक जटिलताओं को कम किया जा सकता है।
*क्या है स्ट्रोक?*
स्ट्रोक जिसे आम भाषा में लकवा भी कहा जाता है एक गंभीर मेडिकल इमरजेंसी है। जो सिर के ब्लड वेसल्स में समस्या होने के कारण होती है। इस कारण सिर के कुछ हिस्सों तक ऑक्सीजन ठीक से पहुंच नहीं पता और सेल्स खराब होने लगते हैं।
इस कारण अचानक स्ट्रोक का प्रभाव होता है। कभी-कभी व्यक्ति गंभीर स्थिति में चला जाता है। इसलिए स्ट्रोक के बारे में समझना और भी ज्यादा जरूरी है।
इन 2 तरह से प्रभावित कर सकता है स्ट्रोक :
*1. इस्केमिक स्ट्रोक :*
इसमें सिर के ब्लड वेसल्स में क्लाॅटिंग के कारण ब्लड फ्लो रुक जाता है। जिससे सिर के अंदर ऑक्सीजन और पोषक तत्व नहीं पहुंच पाते और आदमी गंभीर स्थिति में चला जाता है।
*2. हेमोरेजिक स्ट्रोक :*
यह स्ट्रोक का प्रकार ज्यादा खतरनाक होता है, जिसमें सिर के ब्लड वेसल्स फट जाते हैं। यह ब्लड प्रेशर के बढ़ने या फिर ब्लड वेसल्स के कमजोर होने के कारण होता है।
इसके अलावा स्ट्रोक की कुछ और स्थितियां भी हो सकती हैं। जिसमें ट्रांसिएंट इस्केमिक अटैक भी होता है, जिसे मिनी स्ट्रोक कहते हैं। हालांकि यह 24 घंटे के भीतर ही सामान्य हो जाता है, लेकिन फिर भी इन्हें गंभीरता से लेना चाहिए।
*किनको ज्यादा जोखिम?*
स्ट्रोक का जोखिम खासकर हाई कोलेस्ट्रॉल, डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर और हृदय संबंधित समस्याओं वाले व्यक्तियों को ज्यादा रहता है। ऐसे में उन्हें बहुत ही सावधानी बरतने की आवश्यकता है।
जब ब्लड प्रेशर या कोलेस्ट्रॉल बढ़ता है, तो यह ब्लड वेसल्स को संकुचित कर सकता है। इससे मस्तिष्क तक ब्लड फ्लो कम हो जाता है, जो मस्तिष्क में ऑक्सीजन की कमी का कारण बनता है।
*1. हाई ब्लड प्रेशर :*
जब ब्लड प्रेशर बढ़ता है, तो यह ब्लड वेसल्स की वाॅल्स पर अधिक दबाव डालता है, जिससे वे कमजोर और संकुचित हो जाती हैं। इससे मस्तिष्क तक रक्त का प्रवाह कम हो जाता है।
*2. हाई कोलेस्ट्रॉल :*
उच्च कोलेस्ट्रॉल स्तर ब्लड वेसल्स में प्लाक का निर्माण कर सकता है, जो ब्लड फ्लो को बाधित करता है। इससे मस्तिष्क में ऑक्सीजन की कमी हो सकती है।
*3. डायबिटीज :*
डायबिटीज में हाई ब्लड शुगर लेवल ब्लड वेसल्स को नुकसान पहुँचा सकता है, जिससे उनकी लचीलेपन की क्षमता कम हो जाती है। यह संकुचन और रक्त प्रवाह में बाधा डालता है।
*4. हृदय संबंधित समस्याएँ :*
हृदय की बीमारियाँ, जैसे कि एथेरोस्क्लेरोसिस, रक्त के थक्के बनने का कारण बन सकती हैं। जब ये थक्के मस्तिष्क की ओर बढ़ते हैं, तो वे रक्त प्रवाह को रोक सकते हैं।
इन सभी कारणों से रक्त का थक्का बनने से भी स्ट्रोक का खतरा बढ़ता है, जिससे मस्तिष्क में नुकसान और स्थायी विकलांगता हो सकती है। लापरवाही हुई तो जान भी जा सकती है.
स्ट्रोक होने पर नजर आ सकते हैं ये लक्षण :
1.चलने में परेशानी या चलते-चलते संतुलन खोना।
2. गंभीर और अचानक सिरदर्द होने के साथ चक्कर या मतली महसूस होना।
3. चेहरे, हाथ या पैर का अचानक सुन्न या कमजोर होना।
4. साफ बोलने मे परेशानी होना, जबान का लड़खड़ा जाना।
5. सामने वाले की कही हुई बात समझने में दिक्कत होना या कुछ देर बाद समझ आना।
6. एक या दोनों आंखों से देखने में परेशानी होना, धुंधलापन जैसी समस्या हो सकती है।
यदि आपको अपने आसपास के किसी व्यक्ति में स्ट्रोक के लक्षण दिखाई दे रहे हैं तो बगैर देर किए तुरंत डॉक्टर के पास पहुंचाना चाहिए। ऐसी स्थिति में व्यक्ति को तुरंत विशेषज्ञ उपचार की जरूरत होती है।
अगर जरा सी भी देर की जाए तो कोई भी ऑर्गन फेल हो सकता है या गंभीर चोटें लग सकती हैं।
*क्या स्ट्रोक से बचा जा सकता है?*
आपको अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना होगा.
अपनी जीवनशैली, आहार को ठीक करना होगा।
धूम्रपान, शराब इत्यादि नशे से दूरी बनानी होगी।
इसके अलावा आप जो भी खा रहे हैं वह पोषण युक्त होना चाहिए। अपने आहार में साबुत अनाज, हरी सब्जियां, फल, कम फैट वाले खाद्य पदार्थों को प्राथमिकता देनी चाहिए। इसके साथ ही आपको नियमित रूप से योगाभ्यास या फिर व्यायाम जरूर करना चाहिए। भरपूर मात्रा में नींद ले और समय-समय पर डॉक्टर से जांच करते रहें।
हो सकते हैं ये आफ्टर इफेक्ट्स:
उपचार के बाद भी कुछ लोगों में दिखने वाले ये लक्षण व्यक्ति की उम्र, स्ट्रोक की गंभीरता, और प्रभावित मस्तिष्क के हिस्से पर निर्भर करते हैं।
इसमें पैरालिसिस (अंगों की कमजोरी या लकवा), मांसपेशियों में जकड़न या दर्द, संतुलन और समन्वय की समस्या, चलने में परेशानी, बोलने में परेशानी (अफेसिया), याददाश्त की समस्या, ध्यान केंद्रित करने में परेशानी, मूड स्विंग्स (अवसाद, चिड़चिड़ापन), तनाव और चिंता, नींद की समस्याएं हो सकती हैं।
जिन्हें फिजियोथेरेपी, ऑक्यूपेशनल थेरेपी, स्पीच थेरेपी, कॉग्निटिव थेरेपी, दवाएं और सर्जरी के माध्यम से ठीक किया जाता है। इसके लिए आपको बाद में भी डॉक्टर से संपर्क में रहना चाहिए और उन्हीं के परामर्श के अनुसार अपनी दिनचर्या रखनी चाहिए।
स्ट्रोक के आफ्टर इफेक्ट्स को कम करने के लिए प्रारंभिक उपचार और रहाबिलिटेशन बहुत महत्वपूर्ण है।
Add comment