एचएल दुसाध
3 अगस्त, 2023 को एक अखबार में ‘बिहार में महागठबंन सरकार का बड़ा दाँव :चुनाव से पहले 1.78 लाख टीचर्स भर्ती की तैयारी, जल्द निकलेंगे फॉर्म’ शीर्षक से नौकरी से जुड़ी एक चौकाने वाली खबर छपी थी। तब उस खबर ने औरों की तरह इस लेखक को भी चौकाया था। खबर यह थी कि बिहार में लंबे वक्त से शिक्षक भर्ती का काम रुका हुआ था लेकिन राज्य की नीतीश कुमार सरकार ने एक झटके में 1.78 लाख नए शिक्षकों की भर्ती का रास्ता साफ कर दिया था। उसमे कहा गया था कि इसके लिए नई नियमावली तैयार की गई है और उसके आधार पर ही भर्ती की औपचारिक घोषणा की गई है। नीतीश कुमार की कैबिनेट के इस फैसले को सरकारी नौकरी के लिहाज से एक अहम फैसला माना गया। रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार की नीतीश कुमार कैबिनेट की बैठक में 1,78,026 पदों की भर्ती को हरी झंडी दी गई। सरकार के फैसले के मुताबिक पहली से पांचवीं कक्षा तक के लिए 85,477, 6वीं से 8वीं के लिए 1,745 शिक्षकों की भर्ती का प्रस्ताव पारित किया गया। इसके अलावा 9वीं और 10वीं के लिए 33,186 और 11वीं-12वीं के लिए 57,618 पदों को स्वीकृति दी गयी।
बता दें कि बिहार की नीतीश कैबिनेट की बैठक में कुल 18 अलग-अलग प्रस्ताव मंजूर किए गए थे, उन्हीं में से एक प्रस्ताव यह भी था। इस फैसले को डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के सरकारी नौकरी देने के वादे से भी जोड़कर देखा गया। ऐसे में शिक्षक भर्ती के इस प्रस्ताव को बिहार के बेरोजगारों के लिहाज से बड़ा फैसला माना गया। बिहार में शिक्षक भर्ती के लिए टीईटी, एसटीईटी पास हो चुके अभ्यर्थियों को अब बीपीएससी की परीक्षा भी पास करना अनिवार्य होगा। बिहार कैबिनेट से प्रस्ताव पास होने के बाद शिक्षकों के सभी पदों को जिलों से रोस्टर क्लीयरेंस के लिए भेजा गया। कैबिनेट के फैसले को लेकर मंत्रिमंडल सचिवालय विभाग के अपर मुख्य सचिव एस सिद्धार्थ ने कहा था कि कैबिनेट ने विभिन्न संवर्ग के 1.78 लाख शिक्षकों की भर्ती के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गयी है। ये नियुक्तियां बिहार लोक सेवा आयोग (बीपीएससी) द्वारा की जाएंगी। भर्ती की पूरी प्रक्रिया बहुत जल्द और निश्चित तौर पर इस साल के अंत तक पूरी कर ली जाएगी।’
तब उपरोक्त खबर को यह लेखक शिगूफा मानकर भूल चुका था। क्योंकि मोदी– राज में जहां नौकरियां पूरी तरह से सपना बन चुकी है, कैसे कोई सरकार एक झटके में सवा लाख के करीब युवाओं को एक झटके में नौकरी दे सकती है, यह सोचकर ही वह खबर शिगूफा लगी थी। उसके बाद 2 नवम्बर , 2023 को कुछेक अख़बारो में बिहार सरकार की ओर से फुल पेज में छपा एक विज्ञापन देखकर चकित हुए बिना न रह सका। चकित इसलिए कि अगस्त में नौकरियों से जुडी जिस खबर को शिगूफा समझा था, वह जमीन पर उतरने जा रही थी, जो कि निहायत ही अपवादजनक घटना है। बहरहाल 2 नवम्बर को बिहार सरकर की ओर से फुल पेज में जो विज्ञापन छपा था ,उसमे बताया गया था कि सरकार बाकायदे गांधी मैदान में समारोह आयोजित कर 1 लाख ,20 हजार, 336 युवाओं को शिक्षक बनने का नियुक्ति पत्र वितरित करेगी। जो 1 ,20, 336 युवा शिक्षक बनेंगे उनमें 70,545 प्राथमिक , 26, 089 माध्यमिक और 23,7 02 उच्च माध्यमिक शिक्षक के रूप में नियुक्त होंगे। कुल शिक्षकों में 57,854 महिलायें,जबकि 12 % शिक्षक बिहार के बाहर यूपी, हरियाणा, दिल्ली, मध्य प्रदेश, झारखण्ड , पंजाब, पश्चिम बंगाल, गुजरात इत्यादि हुए।’
अनुष्ठानिक रूप से सवा लाख नौकरियों का नियुक्ति पत्र वितरण की खबर देखने बाद मैं दोपहर बाद फेसबुक पर टकटकी लगाकर इससे जुडी खबरों का इंतज़ार करने लगा। पर फेसबुक पर कुछ नहीं मिला। किन्तु रात होते-होते यूट्यूब चैनलों और पोर्टलों के जरिये ऐतिहासिक आयोजन की ख़बरें आने लगीं,जिनसे पता चला कि वास्तव में 2 नवम्बर के विज्ञापन में जो कुछ बताया गया था, उसके मुताबिक भव्य पैमाने पर नियुक्ति–पत्र वितरण समारोह का आयोजन हुआ। इसमें शिक्षक बनने वाले समस्त सफल प्रार्थी उपथित हुए और इस अवसर पर बिहार के मुख्यमंत्री और उप- मुख्यमंत्री ने अपना सन्देश दिया। रात होते-होते मुख्यमंत्री और उप-मुख्यमंत्री का भाषण भी यू ट्यूब चैनलों के जरिये वायरल होने लगा।
2020 का विधानसभा चुनाव 10 लाख सरकारी नौकरियां देने के नाम पर लड़ने वाले राज्य के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने मंच से गरजते हुए कहा था , ‘देश के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी एक राज्य में, एक ही दिन में, एक विभाग ने, एक साथ, एक लाख बीस हजार नवनियुक्त शिक्षकों को निय़ुक्ति पत्र बांटा है। हमने नौकरी देने का वादा किया था, आपने इसलिए हमें वोट दिया था और आज हम नौकरी दे रहे हैं। उन्होंने उपस्थित प्रार्थियों से कहा था, ‘आप खड़े होकर जोर से ताली बजाकर मुख्यमंत्री जी को इसके लिए धन्यवाद दीजिये। यह गूंज देश के कोने-कोने में जानी चाहिए। हर सरकार को यह गूंज सुनाई पड़नी चाहिए ताकि उन्हें पता चले कि बेरोजगारी ही असली दुश्मन है। सरकार का असली काम लोगों को रोजगार देना, उन्हें खुशहाल रखना और कल्याणकारी योजनाएं लागू कराना ही है।’ उन्होंने आगे कहा , ‘आपने नौकरी के नाम पर वोट दिया तो नौकरी मिल रही है। मगर जिन लोगों ने हिंदू-मुस्लिम, मंदिर-मस्जिद के नाम पर वोट दिए थे, उन्हें बेरोजगारी मिल रही है, बुलडोजर मिल रहा है। गरीबी मिल रही है। हर साल दो करोड़ रोजगार का क्या हुआ। अब तो पीएम मोदी को भी नियुक्ति पत्र बांटना पड़ रहा है। हमारे मुद्दे पर आना पड़ रहा है। अब आप सोचिए कि आपको कैसी सरकार चाहिए: हिंदू-मुसलमान वाली सरकार या नौकरी देने वाली। ‘उन्होंने अपने सरकार की नौकरी पालिसी से अवगत कराते हुए कहा ,’हमारी नौकरी की पालिसी चट-पट और झट है। चट से फॉर्म भरो ,पट से एग्जाम दो और झट से नौकरी ज्वाइन करो। ‘उन्होंने नियुक्ति पत्र पाने वालों से अपील किया,’ आप घर जाकर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, जननायक कर्पूरी ठाकुर, बाबा साहेब डॉ. आंबेडकर, राम मनोहर लोहिया, बीपी मंडल को श्रद्धापूर्वक नमन करें।’ अंत में सवर्णवादी मीडिया पर तंज कसते हुए कहा था, ‘भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ जब कोई सरकार एक दिन में इतनी संख्या में नौकरियां दी। लेकिन इस ऐतिहासिक काम का चैनलों पर कोई चर्चा नहीं होगा। वे इसकी चर्चा नहीं करेंगे। आप गुजरात की मीडिया से सीखें जहां, कोई काम नहीं हो रहा है, पर सरकार की सब समय वाह- वाही होती रहती है’।
सीएम नीतीश कुमार ने भी अपने भाषण में मीडिया पर तंज कसते हुए कहा, ‘कुछ दिन पहले जब उन्होंने 50 हजार नियुक्ति पत्र बांटे तो मीडिया में कितने दिनों तक सब आता रहा। मगर आज जब इतना बड़ा काम हो रहा है, लोग खुश हैं, तो यह सब मीडिया में थोड़े ही आएगा। अब आए न आए, हम तो डेढ़ साल के अंदर दस लाख लोगों को नौकरियां देंगे। दस लाख लोगों को रोजगार देने का भी वादा पूरा करेंगे।’ वहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक की तरफ इशारा करते हुए कहा था , पाठक जी, अब जो 1.20 लाख शिक्षकों के पद खाली बचे हैं। हम कहते हैं, उसकी नियुक्ति भी जल्द से जल्द दो महीने के भीतर करवा लीजिये। ‘
बहरहाल बिहार की नीतीश सरकार ने जाति जनगणना रिपोर्ट के जरिये एक इतिहास रचने के कुछ सप्ताह बाद जिस तरह दो नवम्बर को एक दिन में ,एक सरकारी विभाग में सवा लाख के करीब लोगों को नियुक्ति पत्र बांटा है, उसका प्रभाव सम्पूर्ण भारत पड़ना तय है। इससे नीतीश कुमार का कद राष्ट्रीय राजनीति में बहुत ऊँचा हो गया है, जिसका असर 2024 के लोकसभा चुनाव में जरुर दिखेगा। 2 नवम्बर को नौकरी नियुक्ति-पत्र वितरण समारोह के जरिये नीतीश- तेजस्वी ने मोदी सरकार के समक्ष एक ऐसी लकीर खींच दी है, जिसका अतिक्रम करना उनके लिए शायद नामुमकिन होगा। इस ऐतिहासिक घटना का सबसे दुखद पहलू सवर्णवादी मीडिया के साथ बहुजन नेतृत्व और बुद्धिजीवियों द्वारा इस ऐतिहासिक घटना की उपेक्षा रही। बहुजनों द्वारा इनकी उपेक्षा पर विवश होकर इस लेखक को निम्न पोस्ट डालना पड़ा, जिसकी उपेक्षा ही हुई। इस उपेक्षा के जरिये बहुजन बुद्धिजीवियों ने साबित कर दिया कि उनके पास आर्थिक – मुक्ति की दिशा में किये गए किसी ऐतिहासिक कार्य को सराहने का मन नहीं है।
‘लानत है बहुजन युवाओं पर जिन्होंने कल गाँधी मैदान में रचे गए इतिहास की अनदेखी कर दिया
सरकारी नौकरी पाना हमेशा से युवाओं, खासकर भूमि और व्यवसाय-वाणिज्य से वंचित बहुजन समाज के युवाओं का सबसे बड़ा सपना रहा है। नौकरी पाने के लिए युवा क्या नहीं करते? दिल्ली के मुखर्जी नगर,यूपी के इलाहाबाद इत्यादि जगहों पर माता-पिता से अलग, घर-द्वार से दूर रहकर युवा नौकरी के लिए जो साधना कर रहे हैं, उनके संघर्ष को करीब से देखने के बाद पत्थर दिल इन्सान का मन भी करुणा से भर उठता है। लेकिन मोदी राज में नौकरियां इन युवाओं के लिए आकाश कुसुम हो चुकी हैं, क्योंकि मोदी विनिवेश के जरिये देश बेचने और निजीकरण का जो उपक्रम चला रहे हैं, उसका चरम लक्ष्य नौकरियों का खात्मा है। इसके जरिये ही वह मंडल से मिले आरक्षण के विस्तार का बदला ले रहे हैं। और जब तक सवर्णपरस्त मोदी-योगी जैसे लोग सत्ता में हैं नौकरियां युवाओं के लिए दिन- ब- दिन सपना होती जायेंगी।
अतः एक ऐसे दौर में जबकि मोदी की क्रूर आरक्षण विरोधी नीतियों से नौकरियां भारत-भूमि से कपूर की भाँति उडती जा रही हैं, बिहार के नीतीश-तेजस्वी की युगलबंदी में कल पटना के ऐसिहासिक गांधी मैंदान में जो कुछ हुआ , वह खुद में एक सुखद आश्चर्य है। कल बाकायदे समारोह आयोजित कर 1 लाख, 20 हजार, 336 युवाओं को शिक्षक बनने का नियुक्ति पर वितरित किया गया,जो कि मोदी राज में एक अजूबा है। सूत्रों के मुताबिक़ अब तक नीतीश-तेजस्वी पांच लाख लोगों को नियुक्ति पत्र जारी कर चुके हैं। कल जो 1 ,20, 336 युवा शिक्षक बनें उनमें 70,545 प्राथमिक , 26, 089 माध्यमिक और 23,7 02 उच्च माध्यमिक शिक्षक के रूप में नियुक्त हुए।
नौकरी पाने वालों में कुल 57,854 महिलाएं रहीं,जिनका प्रतिशत 48 % है। इसी तरह कुल शिक्षकों में 12 % बिहार के बाहर : यूपी, हरयाणा, दिल्ली, मध्य प्रदेश, झारखण्ड , पंजाब , पश्चिम बंगाल इत्यादि के रहे। हैरत की बात है भारत के कथित मॉडल राज्य: मोदी-शाह के गुजरात के युवा भी नौकरी पाने वालों में रहे।
कुल मिलाकर मोदी-युग में कल नीतीश-तेजस्वी ने एक इतिहास रच दिया। कल भारत के क्रिकेट टीम की सिंहलियों पर विजय के भूरि-भूरि पोस्ट वायरल हो रहे हैं, लेकिन कल गाँधी मैदान में रचे गए इतिहास का प्रतिबिम्बन सोशल मीडिया पर नहीं के बराबर हुआ। बहुजन समाज के जागरूक लोगों ने करवा चौथ के खिलाफ कलम तोड़ के रख दिया, पर गाँधी मैदान में रचा गया इतिहास शायद उन्हें उल्लेखनीय नहीं लगा।
क्या यह बामसेफी संगठनों का असर है,जिनके प्रभाव में आकर बहुजन युवा ब्राह्मणवाद के खिलाफ तो खूब गरजते हैं, पर आर्थिक बदलाव से जुडी घटनाओं की अनदेखी करके निकल जाते हैं। मानना पड़ेगा ऐसे संगठनों से बहुजन युवाओं की सारी उर्जा ब्राह्मणवाद के खात्मे तथा शासक बनने में जा रही है। आर्थिक मुक्ति का सवाल पीछे छूटता जा रहा है। लानत है बहुजन युवाओं पर जिन्होंने कल गाँधी मैदान में रचे गए इतिहास की अनदेखी कर दिया।