-विनोद कोचर
“गांधी स्मृति, 30 जनवरी मार्ग पर है। ये वही जगह है जहांबीबीसी हिंदी’ में 18 फरवरी 2020 को छपी ये खबर चौंकाने वाली और महात्मा गांधी को,आरएसएस के संकीर्ण हिंदुत्व के जहरीले नागपाश में जकड़ने की घिनौनी मंशा वाली खबर है कि :-
” राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इतिहास में सोमवार को एक नया अध्याय जुड़ा।
मौक़ा था सरसंघचालक मोहन भागवत के गांधी स्मृति पहुँचने का।
“गांधी स्मृति, 30 जनवरी मार्ग पर है। ये वही जगह है जहां 30 जनवरी 1948 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या कर दी गई थी।आज तक आरएसएस का कोई सरसंघचालक अपने पद पर रहते हुए गांधी स्मृति नहीं गया था।लेकिन मोहन भागवत ने 17 फ़रवरी को इस परंपरा को तोड़ दिया।”
“मौक़ा था एन सी ई आर टी के पूर्व प्रमुख जे एस राजपूत की किताब के विमोचन का। जे एस राजपूत ने एक नई किताब लिखी है “गांधी को समझने का यही समय”।
इस किताब के विमोचन के लिए सरसंघचालक मोहन भागवत को आमंत्रित किया गया था. इस मौक़े पर बोलते हुए मोहन भागवत ने कई कारण भी गिनवाए कि गांधी को याद करने की ज़रूरत आज क्यों है?”
“आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा, “गांधी को हिंदू होने पर कभी लज्जा नहीं हुई। गांधी जी ने कई बार कहा मैं कट्टर सनातनी हिंदू हूं। ये भी कहा कि मैं कट्टर सनातनी हिंदू हूं इसलिए पूजा के भेद मैं नहीं मानता। मैं ये मानता हूं कि सभी धर्मों में सत्य का अंश है, इसलिए अपनी श्रद्धा पर पक्के रहो और दूसरों की श्रद्धा का सम्मान करो और मिलजुल कर रहो।”
मोहन भागवत के भाषण में महात्मा गांधी का ये कथन तो सत्य है कि, ” पूजा के भेद मैं नहीं मानता. मैं ये मानता हूं कि सभी धर्मों में सत्य का अंश है. इसलिए अपनी श्रद्धा पर पक्के रहो और दूसरों की श्रद्धा का सम्मान करो और मिलजुल कर रहो।”
लेकिन महात्मा गांधी के मुंह से ये कहलवाकर मोहन भागवत ने उन्हें आरएसएसवादी कट्टर(लेकिन संकीर्ण व साम्प्रदायिक)हिंदुत्व के पाले में घसीटने की घिनौनी कोशिश की है कि, ” गांधी जी ने कई बार कहा मैं कट्टर सनातनी हिंदू हूं.”
अगर वे नेकनीयती से भाषण देते तो ये भी बताते कि महात्मा गांधी के हिंदुत्ववादी दृष्टिकोण और आरएसएस के हिंदुत्ववादी दृष्टिकोण में जमीन आसमान का फर्क क्यों है और क्यों महात्मा गांधी की बर्बर हत्या करने वाले आतंकवादी कट्टर हिन्दू, नाथूराम गोडसे को आरएसएस के प्रशिक्षित स्वयंसेवक, ‘देशभक्त’ मानते हैं?
प्रज्ञा ठाकुर जैसी,गोडसे को देशभक्त मानने वाली औरत को लोकसभा चुनाव में भाजपा का प्रत्याशी बनवाने और उसके पक्ष में चुनाव प्रचार करने में ,आरएसएस के प्रशिक्षित व संस्कारित स्वयंसेवकों को शर्म क्यों नहीं आई और मोहन भागवत ने इसका विरोध क्यों नहीं किया?
हाँ, ये सच है कि गांधी अपने आप को हिन्दू मानते थे लेकिन उनके हिंदुत्व की पहचान उनके विचारों और कर्मों में प्रतिबिंबित होती है।
लेकिन आरएसएस के विचारों और कर्मों में जो हिंदुत्व प्रतिबिंबित होता है, वह तो गांधीवादी हिंदुत्व से सर्वथा विपरीत है।
आरएसएस को ये भी बताना होगा कि गांधी जिस हिंदुत्व से प्रेरित थे, उसने उन्हें विदेशी साम्राज्य की कैद से भारत को आजाद कराने के लिए जब आगे बढ़ाया तब आरएसएस ने उनका साथ देने की बजाय अंग्रेजों का साथ क्यों दिया और आजतक वे , ब्रिटिश राज के उन करनामों का विरोध करने से कतराते क्यूं हैं जिसने सोने की चिड़िया भारत को कंगाल बनाकर रख दिया था ?
हैरत की बात तो ये है कि मोहन भागवत ने अपना ये बदनीयती से लबरेज भाषण उस ‘गांधी स्मृति भवन में जाकर दिया जहाँ 30 जनवरी 1948 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या कर दी गई थी!
गांधी की हत्या स्थल पर दिए गए भाषण में गोडसे के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोलकर, मोहन भागवत ने स्वयं ही ये जाहिर कर दिया कि उनके हिंदुत्व और गोडसे के हिंदुत्व में कोई फर्क नहीं है।ये एक कड़वा सच है।
बकौल दुष्यंत:-
हिम्मत से सच कहो तो बुरा मानते हैं लोग!
रो रोके बात कहने की आदत नहीं रही! –