डॉ. ‘मानव’
लगभग हर रोज दिल्ली आना जाना होता है। यदाकदा एक ढाबे पर भोज हेतु रुकता हूं।
खाने का मेन्यू सेट है :
हाफ दाल
2 रोटी
1 प्लेट चावल
1 छोटी कटोरी सफेद मक्खन
.और आखिर में खीर।
लगभग हर बार एक व्यक्ति मेरी टेबल पर आता है। मैं उसे वही मेन्यू बताता हूं।
अब इधर वह मुझसे पूछने की जहमत भी नहीं करता।
मैं बैठता हूं
सलाद परोस देता है और फिर एक एक कर बाकी सामग्री ले आता है।
कल रात मैं ढाबे पर आ कर बैठा।
चिरपरिचित बंधु जो हर रोज ऑर्डर लेता था वह कहीं दिखाई ना दिया।
मेरी नजरें उसे तालाश रही थी। इतने में एक नौजवान लड़का टेबल पर आया और बोला ” भोला भईया नहीं आए हैं सर। उनका तबियत खराब था।”
मुझे नहीं पता था की जिस व्यक्ति को मैं रोज खाने का ऑर्डर देता हूं उसका नाम “भोला” है।
“आपका क्या नाम है ? ” मैंने सामने खड़े नवयुवक से पूछा।
“हमार नाम अकास है।” उसने फट से जवाब दिया।
इस ढाबों पर अधिकतर कर्मचारी बिहारी हैं।
नवयुवक का आका”श” को आका”स” कहना मुझे खला नहीं।
लड़का टिप टॉप था। सधी हुई कद काठी। तेल से चुपड़े कंघी किए हुए बाल।
सबसे बड़ी बात उसके जूते चमक रहे थे। लग रहा था की पालिश किए गए हैं।
मैंने अपना मैन्यू बताने की शुरुआत की ही थी की उसने मेरी बात काटते हुए कहा……पता है सर।
हरा सलाद…. दाल …चावल ..मक्खन ..रोटी…खीर।
मैंने उसकी ओर देखा, मुस्कुराया और कहा : “पता है तो ले आईए। भूख के मारे हाल बेहाल है।”
वह किचन की ओर चला गया।
कुछ ही समय बाद वापिस आया।
बोला : ” सर। डोंट माइंड। एक बैटर ऑप्शन है।”
मैं एक क्षण अवाक रह गया।
डोंट माइंड
बैटर ऑप्शन
मेरे समाने ढाबे का एक वेटर खड़ा था या किसी मैनेजमेंट इंस्टिट्यूट से एम बी ए मेनेजर खड़ा था।
शक्ल देख कर तो लग ना रहा था की जनाब को अंग्रेजी का ए भी आता होगा।
मैं हतप्रभ था।
“क्या बैटर ऑप्शन है सर।” मैंने व्यंगतामक लहजे में पूछा।
लडके ने मेन्यू कार्ड उठाया। बोला : “आप वेज थाली लीजिए सर। इसमें दाल है। दो सब्जी है। पुलाव है। सलाद है अउर मीठा मैं खीर भी है. और सर, ये थाली आपको आपका मेन्यू के मुकाबले बीस परसेंट सस्ता पड़ेगा।” लड़का एक सांस में कह गया।
पहले …….”डोंट माइंड ……बैटर ऑप्शन “…..यानी अंग्रेजी …..और फिर “20 परसेंट” यानी मैथेमेटिक्स।
अबे कौन है ये लड़का।
ध्यान से देखा तो वाकई बिल में बीस परसेंट का अंतर भी था।
खत पढ़ लेता हूं मजमू, लिफाफा खोले बिना।
“क्या करते हो?” मैंने प्रश्नवाचक निगाहों से उससे पूछा।
“यहीं काम करते हैं।” उसने जवाब दिया।
“इसके अलावा क्या करते हो? ” मैंने पूछा।
“यूपीएससी का तैयारी कर रहे हैं सर। दिन में कोचिंग मेँ रहते हैं। ढाबा पर नाइट ड्यूटी रहता है।” आत्मविश्वास भरी आवाज़ में उसने जवाब दिया।
“बैटर ऑप्शन ले आओ।” मैंने मुस्कुराते हुए कहा।
खाना खाया। बिल टेबल पर था और आकाश, नहीं नहीं अका”स” समाने खड़ा था।
एक लम्बे अर्से बाद मैंने किसी वेटर को टिप नहीं दी।
वह टिप देने लायक व्यक्ति नहीं था।
मेरे पास पुष्पाप्रिया का गिफ्ट किया हुआ पार्कर का एक पेन था। मैंने उसकी शर्ट की जेब में वह पेन लगा दिया।
उसकी आंखों की चमक देखने लायक थी।
एक वर्ग है जो बेशक घोर गरीबी में जी रहा है। दाने दाने का मोहताज है। रोज कुआं खोद रोज पानी पी रहा है. लेकिन फिर भी अपने लिए बैटर ऑप्शन खोज रहा है।
बेहतर विकल्प खोज रहा है। यह वर्ग दिन में किताबों में मुंह दिए सपनों की लड़ाई लड़ रहा है और रात में ढाबे पर खाना परोसता सर्वाइवल की लड़ाई लड़ रहा है।
……..और जीतता भी यही वर्ग है क्योंकि इसके पास हारने को कुछ भी नहीं है और जीतने को होती है पूरी दुनिया.
मैं कल रात भविष्य के एक प्रशासनिक अधिकारी को पेन भेंट कर आया हूं।
परिस्थिति जितनी भी विकट हो संघर्ष जारी रखना ही बैटर ऑप्शन
है।