राम शरण जोशी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल को विवादों -आरोपों के कटघरे में खड़ा करते हुए मुख्यमंत्री -निवास पर ‘शीशमहल’ होने का तमगा चस्पा दिया है। जब केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने 6 फ्लैग स्टाफ रोड स्थित निवास के नवीनीकरण पर अंधाधुंध खर्च किया था। भाजपा ने भ्रष्टाचार के कई कथित आरोप लगाए थे। अब दिल्ली विधानसभा के चुनाव नज़दीक हैं। कभी भी तारीखें घोषित हो सकती हैं। इसलिए स्वयं प्रधानमंत्री मोदी ने भाजपा के चुनाव प्रचार की कमान संभाल ली है।
दिल्ली में भाजपा की सरकार बने, इसके लिए मोदी-शाह जुगलबंदी ने मुख्य विरोधी व सत्तारूढ़ आप पार्टी और उसके संस्थापक संयोजक केजरीवाल पर हमले भी तेज़ कर दिए हैं। चूंकि, भाजपा के पास मुख्यमंत्री का कोई चेहरा नहीं है जो कि केजरीवाल के सामने टिका रह सके। अतः मोदी जी मैदान में उतर आये हैं और प्रचार के ज़रिये आप संयोजक के सामने अभेद्य चुनौती खड़ी कर दी है। यह जुगलबंदी भाजपा सरकार बनाने पर आमादा है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए वह किसी भी सीमा तक जा सकती है।
इस लेख में असल सवाल आप की हार या भाजपा की जीत का नहीं है। मूल मुद्दा यह है कि मुख्यमंत्री निवास ‘शीश महल’ है या नहीं? हो सकता है मोदी जी ने केजरीवाल को घेरने के लिए चुनावी जुमला उछाला हो! जुमला -उछाल रणनीति की दृष्टि से मोदी+शाह जोड़ी उस्ताद मानी जाती है। निःसंदेह, बरसों से यह जोड़ी सियासी मैदान में ‘लाज़वाब’ बनी हुई है। लेकिन, धुंआ वहीं उठता है जहां अलाव हो। शब्द शीश महल सामंती राज का प्रतीक है, लोकतंत्र का नहीं है।
आरोप है कि पूर्व मुख्यमंत्री केजरीवाल द्वारा कराये गये नवीनीकरण पर करीब 33 करोड़ रु. खर्च हुए हैं। इस सम्बन्ध में कम्पट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल ( CAG) ने अपनी रिपोर्ट भी सरकार को सौंप दी थी। रिपोर्ट में कितना दम है, यह जांच और बहस का विषय है। लेकिन, अखबारी सुर्ख़ियों में शीश महल को लेकर जिस प्रकार के विवरण प्रकाशित हुए हैं, वे अपने आप में चौंकाने वाले हैं। एक विवरण के अनुसार, टीवी पर 20 लाख,34200, मिनिबार यूनिट- 4लाख 80 हज़ार52, एल शेप सोफा -6 लाख,40 हज़ार 604, जिम उपकरण – 18 लाख 52 हज़ार 155, किचन उपकरण – 39 लाख +, गोल डाइनिंग टेबल – 4 लाख 80 हज़ार +, सिल्क कारपेट- 16 लाख, 27 हज़ार+, बिस्तर आदि – करीब 4 लाख, फॉक्स लैदर आवरण सामग्री – 5 लाख 45 हज़ार+, बर्मा टीक से सुसज्जित दर्पण – 2 लाख 39 हज़ार + आदि (इंडियन एक्सप्रेस, दिल्ली संस्करण, 5 जनवरी)।
अब आप पार्टी की नैतिक ज़िम्मेदारी है कि वह ऐसे विवरणों का तथ्यगत व तर्कसंगत खंडन भी करें। एक प्रकार से आप पार्टी की दोहरी ज़िम्मेदारी है। पहली यह है कि वह पिछले दस सालों से सत्ता में है। इसलिए वह नवीनीकरण के प्रोजेक्ट -व्यय पर पारदर्शिता से काम ले। सच्चाई यह है कि लोगों की दृष्टि में केजरीवाल और आप पार्टी की भूमिका सशंकित हो गए हैं। ‘दाल -में -कुछ तो काला है’ ऐसी धारणा दिल्लीवालों में बनने लगी है। वह इससे इंकार नहीं कर सकती क्योंकि शराब के मामले में वह पहले से ही आरोपों के घेरे में हैं। उसके नेता ज़मानत पर बाहर हैं। दूसरा सवाल यह है कि राष्ट्रीय संयोजक अरविन्द केजरीवाल नेता नहीं, बल्कि सामाजिक एक्टिविस्ट की भूमिका से आये हैं।
उन्होंने अन्ना के साथ मिल कर भ्रष्टाचार के विरुद्ध अभियान चलाया और राष्ट्रीय फोकस में आये। इसी वज़ह से उन्हें दिल्ली की सत्ता भी मिली, तीन-तीन बार। अन्य सामान्य नेताओं की तुलना में जनता ने उन पर अधिक भरोसा किया है। बेशक़ उनकी सरकार ने शिक्षा व स्वास्थ्य के क्षेत्रों में अनुकरणीय काम भी किया है। लेकिन, नवीनीकरण की बात लोगों को पच नहीं रही है। एक्टिविस्ट होने के नाते उनसे उम्मीद थी व है कि उनकी जीवन शैली आम जन के समान रहे।
पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा, दोनों ही प्रदेश दिल्ली से कई गुना बड़े हैं। 30 साल से अधिक दोनों प्रदेशों में वाम सरकारें रहीं रही हैं। क्या वामपंथी मुख्यमंत्री ( ज्योति बासु, बुद्धदेव भट्टाचार्य, नृपेन चक्रवर्ती, माणिक सरकार आदि) अपने निवास स्थानों का नवीनीकरण नहीं करा सकते थे? क्या वे करोड़ों रूपये की सरकारी राशि खर्च नहीं करवा सकते थे? क्या केजरीवाल वामपंथी मुख्यमंत्रियों से प्रेरणा नहीं ले सकते थे ? क्या उन्हें देश के पहले कम्युनिस्ट मुख्यमंत्री नम्बूदरीपाद (1957 -59 ) का त्याग याद नहीं है।
उन्होंने अपने विशाल भू-भाग को देश को सौंप दिया था। वे अन्य प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों से सीख ले सकते थे। कांग्रेस की दिवंगत नेता शीला दीक्षित भी 15 साल मुख्यमंत्री रही थीं। पहली बार शपथ लेने के बाद वे प्रेस से उसी निवास में मिली थीं। इस पत्रकार का भी वहां जाना हुआ था। वे भी चाहतीं तो निवास को नया रूप दे सकती थीं। छठे दशक में जनसंघ के विजयकुमार मल्होत्रा मुख्यकार्यकारी (मुख्यमंत्री के समान) पार्षद थे। वे भी भव्य नवीनीकरण से दूर रहे थे। जहाँ तक मुझे याद है, वे वेस्ट पटेल नगर स्थित अपने ही निवास में रहते थे। जब शीला जी ने नई जगह शिफ्ट किया तो वे प्रगति मैदान के सामने छोटे से बँग्ले में आई थीं। वे भी भव्य नवीनीकरण का निर्णय ले सकती थीं।
जब ऐसे अनुभव हैं, तब केजरीवाल के नवीनीकरण-प्रोजेक्ट को लेकर हैरत भी होगी और उँगलियाँ भी उठेंगी। एक्टिविस्ट होने के नाते वे सामान्य ढंग से रहते और मोदी -सियासी शोमैनशिप के दौर में वे समानांतर सादा जीवन -उच्च विचार की अमिट रेखा खींच सकते थे। वे इतिहास बनाते बनाते चूक गए और आम कद के नेता में तब्दील हो गए। शायद इसीलिए बहुत पहले ही प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव जैसी शख्सियतों ने केजरीवाल का साथ छोड़ दिया था। उनकी उत्तराधिकारी आतिशी को भी चाहिए था कि वे शुरू से ही इस तथाकथित शीश महल को ठुकरा देतीं। वे एक ऐसी पारिवारिक पृष्ठभूमि से हैं जिसकी आस्था समतावादी समाज में रही है।
अरविन्द केजरीवाल वैकल्पिक राजनीति के उभरते प्रतीक बन सकते थे। लेकिन, वे कभी धर्मनिरपेक्ष दिखते हैं, कभी सॉफ्ट हिंदुत्व के करीब; एक तरफ पुजारी व ग्रंथियों को तुष्ट करते हैं,वहीं इमामों को भूल जाते हैं; मंदिर-मस्जिद विवादों पर आप हिचकोले खाती दिखती है; देश को कैसी अर्थ व्यवस्था चाहिए, आप की आर्थिक नीति का स्पष्ट होना शेष है। एक समय लोगों की धारणा में आप पार्टी भाजपा की ‘बी- टीम’ और’ वोट काटू पार्टी’ भी रह चुकी है। गोवा व गुजरात में आप की भूमिका संदेहों से घिरी रही है। अब मोदीजी ने आप का ‘आपदा’ पार्टी से नया नामकरण कर दिया है। यह जुमला आप पर भारी पड़ेगा। यदि आप को पहले जैसी साख को फिर से प्राप्त करना है तो इसके नेतृत्व को पारदर्शिता की अग्निपरीक्षा से गुजरना पड़ेगा!
Add comment