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उत्तर प्रदेश पुलिस का कारनामाः वे गाय काटने की आशंका में मार दिये गये

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अंजनी कुमार

20 नवम्बर, 2023 को इंडियन एक्सप्रेस में 13वें पेज पर एक छोटी सी खबर छपी है, इसके शीर्षक का हिंदी अनुवाद यहां दे रहा हूं- ‘यूपी पुलिस ने एक को मार गिराया, सहयोगी घायल हुआ, कहा कि वे गाय काटने जा रहे थे’। मैंने इस खबर को कई बार पढ़ा। उत्तर प्रदेश पुलिस ने जिन दो लोगों पर गोली चलाई उसमें एक की गोली लगने से मौत हो गई और दूसरा घायल हुआ। वे गाय काट नहीं रहे थे, वे गाय काटने की आशंका में मार दिये गये।

इस खबर के अनुसार यह घटना रामपुर के पटवाई में रविवार को हुई। इसमें उल्लेखित पुलिस बयान के अनुसार उनसे एक कार, दो देशी हथियार, कारतूस, तराजू और बूखड़खाने में प्रयोग किये जाने वाले हथियार मिले। पुलिस के अनुसार मारा गया व्यक्ति साजिद कुरैशी मुरादाबाद का रहने वाला है। उसका चोरी, अतिक्रमण और अन्य अपराध करने का इतिहास है। उसका घायल हुआ सहयोगी बबलू भी मुरादाबाद का ही है। उस पर भी छह आपराधिक मामले हैं। इन मामलों में, गोकशी का मामला भी है और उस पर यूपी गैंगस्टर एक्ट लग चुका है। पुलिस का कहना है कि वे इन पर अन्य जिलों में दर्ज मामलों का भी पता कर रहे हैं।

इसी खबर के अनुसार रामपुर के एसपी राजेश द्विवेदी ने बताया कि जांच पड़ताल चल रही है। उनके अनुसार पुलिस को शनिवार को पता चला था कि मुरादाबाद से एक कार से दो लोग गाय काटने आ रहे हैं। रविवार की सुबह हमने तेज गति से मुरादाबाद से आती कार को देखा। जब पुलिस ने इस कार को देखा तो ड्राइवर ने कार को दूसरी दिशा में दौड़ा दिया और पीछा करने पर यह कार तेज गति के कारण पलट गई।

पुलिस के अनुसार कार के अंदर बैठे दो लोगों ने बाहर निकलकर गोलियां चलानी शुरू कर दी। पुलिस ने जवाबी कार्रवाई में इन पर गोलियां चलाईं। पुलिस यह भी बताती है कि इस इलाके में गोकशी की काफी घटनाएं होती हैं।

यहां इस खबर में दो बातें हैं- पहली, यह आशंका थी कि वे गोकशी करने जा रहे थे। इसके लिए उनके पास से बरामद ‘हथियारों’ को गिनाया गया है; दूसरा, पुलिस ने आत्मरक्षा में गोली चलाई।

इसी खबर को दैनिक भास्कर के डिजिटल पेज पर 21 नवम्बर, 2023 को ‘यूपी में 5 साल में 193 अपराधी मारे गये’ शीर्षक वाली खबर में भी दिया गया है। इस खबर में दूसरी घटना रामपुर की है जहां पुलिस ने गो-तस्कर साजिद (23) को मुठभेड़ में ढेर कर दिया, जबकि गोली लगने से उसका साथी बबलू घायल हो गया। दोनों मुरादाबाद से गो-तस्करी से जुड़े हुए थे।’ अभी हाल में ही यूपी के डीजीपी का बयान भी आया है कि गो-तस्करों से जुड़े लोगों की धर पकड़ के लिए अभियान चलाया जा रहा है। इसे 10 दिन और बढ़ा दिया गया है।

खबर के इन दो स्रोतों से स्पष्ट है कि गो-तस्करी और गोकशी को लेकर उत्तर प्रदेश पुलिस काफी सक्रिय है। उत्तर प्रदेश में फिलहाल मेरी नजर में इन दिनों ऐसी कोई खबर पढ़ने को नहीं मिली जिसमें यह बताया गया हो कि गोकशी करते हुए अपराधी पकड़े गये या उन्हें मार दिया गया। गो-तस्करी की आशंका में कुछ गिरफ्तारियों की खबरें जरूर सामने आईं। यहां कार में न तो गाय थी और न ही ऐसा कोई कबूलनामा पुलिस की ओर से बताया गया।

एक आशंका के आधार पर उनकी घेरेबंदी और कथित मुठभेड़ में एक को मार गिराना, साथ ही दो लोगों को ऐसे आरोप का अपराधी बना देना जिसे अंजाम दिया ही नहीं गया है, सिर्फ कानून की धज्जी उड़ाना है। यदि उन पर पहले से केस हैं, तो वह केस अदालतों में चल रहे होंगे। लेकिन, जो केस बना ही नहीं है, उसकी आशंका के आधार पर पुलिस बल कार्रवाई में लग जाता है और उस कार्रवाई में एक को मार दिया जाता है और दूसरा पुलिस की गोली से घायल हो जाता है, तब यह कानून व्यवस्था पर ही बेहद गंभीर सवाल खड़ा करता है।

‘प्रीएम्पटिव कार्रवाई’ का यह नमूना एक सभ्य नागरिक समाज के लिए खतरनाक संदेश है। उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार के मंत्री और कई बार मुख्यमंत्री अपराध के प्रति जीरो टालरेंस और कानून के राज की बात और इस संदर्भ में कई सारे दावे करते हुए दिखते हैं। इन दावों की सच्चाई कितनी है, यह तो अपराध की परिभाषा और उसके प्रति नजरिये से ही प्रकट होता है। लेकिन ऐसा न हो कि कानून के राज का अर्थ, आम नागरिकों के कानूनी हक का अर्थ ही न रह जाये और कानूनी परिभाषा वही रह जाये जिसे पुलिस अपनी आत्मरक्षा में प्रयोग करे।

उपरोक्त घटना, ‘एनकाउंटर’ के संदर्भ में एक गंभीर घटना है। यह कई सारे अनुत्तरित सवालों को लिए हुए है। मारा गया युवा महज 23 साल का है और घायल 30 साल का, जैसा कि पुलिस ने दिखाया है। इन दोनों का अपराधिक इतिहास क्या है और कितने समय का है, आदि जरूर ही देखा जाना चाहिए। ‘अपराध’ से निपटने के लिए उत्तर प्रदेश में विभिन्न पार्टियों ने अलग अलग तरीके अख्तियार किये हैं और उनकी ‘श्रेणियां’ भी समय समय पर परिभाषित होती रही हैं।

योगी राज में हो रहे एनकाउंटर की संख्या में इतनी तेज बढ़ोत्तरी हुई कि इसी साल के अगस्त महीने में सर्वोच्च न्यायालय ने इस संदर्भ में जवाब दाखिल करने का आदेश जारी कर दिया था। अपराध रोकने के लिए एनकाउंटर कानूनी प्रक्रिया का हिस्सा नहीं है। इसे आमतौर पर एक्स्ट्रा ज्यूडिशियल गतिविधि के तौर पर देखा जाता है और इसमें जान लेना एक्स्ट्रा ज्यूडिशियल किलिंग की श्रेणी में रखा जाता है, जिसके होने पर, यदि यह कार्रवाई पुलिस द्वारा हुई है तो उस पर हत्या के मामले भी दर्ज कराने के अनिवार्य प्रावधान हैं।

अखबार की खबरों में ऐसी कुल हत्याओं की संख्या 195 बताई गई है। यदि यह सच है, तब यह जरूर देखना चाहिए कि इस संदर्भ में कितने आपराधिक मामले दर्ज किये गये। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अनुसार 2017-20 के बीच प्रतिदिन भारत में 6 लोग पुलिस की गिरफ्त में मारे जा रहे थे। यह निश्चित ही अच्छी स्थिति नहीं है। उत्तर प्रदेश में पुलिस को अपराध से निपटने के लिए जिस तरह छूट मिली हुई है, वह इससे भी डरावना दृश्य पैदा कर रही है।

दैनिक भास्कर की उपरोक्त खबर में बताया गया है कि 20 मार्च, 2017 से अभी तक पुलिस की अपराधियों के साथ 11,654 मुठभेड़ें हुई हैं, जिसमें 195 लोग मारे गये और 5714 घायल हुए हैं। इसमें आगरा जोन 1986 मुठभेड़ के साथ सबसे आगे और गोरखपुर जोन 433 के आंकड़े के साथ सबसे पीछे है।

मुख्यमंत्री योगी गोरखपुर से ही आते हैं और यहीं के गोरखनाथ पीठ में दीक्षित हुए हैं। योगी आदित्यनाथ पिछले कुछ सालों से जिस तेजी से बुलडोजर और एनकाउंटर नीति का सहारा लिया है और अपने भाषणों में जिस उत्तेजक तरीके से बजरंगबली के गदे के इस्तेमाल को लेकर ललकारा है, उसका सीधा असर अपराध कम करने में कितना पड़ा है, इसे जरूर देखने और व्याख्या करने की जरूरत है।

कई सारे अपराधों में कमी का दावा किया गया है, लेकिन आर्म्स एक्ट से जुड़े मामलों में उत्तर प्रदेश देश के औसत मामलों से भी तीन गुना है। 2021 के एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि यहां प्रति लाख पर 15.7 मामले दर्ज हुए जबकि देश के स्तर पर यह 5.4 ही है। 2017 के आंकड़ों में सरकार द्वारा जारी हथियार रखने के लाइसेंस में उत्तर प्रदेश सबसे ऊपर था। यह संख्या 1,277,914 थी। 2020 में लाइसेंस के पुनर्नवीनीकरण और रद्दीकरण में भी यह प्रदेश सबसे आगे था।

द वायर की 15 जुलाई 2023 को याकूत अली की रिपोर्ट से भी पता चलता है कि पंजीकृत हथियारों के मामले में उत्तर प्रदेश आगे है। राम राज्य की संकल्पना पर चलने वाली योगी सरकार अपराध रोकने के लिए पुलिस खर्च में बढ़ोत्तरी और आधुनिक बनाने में काफी सक्रिय है। सरकारी और गैरसरकारी हथियारबंदी का यह पूरा दायरा उत्तर प्रदेश में कानून और अपराध का ऐसा दृश्य पैदा करता है जिसमें एक नागरिक समाज की अवधारणा ही असंगत सी लगने लगती है।

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