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अधर्म का नाश हो (खंड-1) – (अध्याय-13)

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संजय कनौजिया की कलम”✍️ 
            (दिनांक-12/7/22)  
मनुस्मृति, साजिश के तहत रची एक पुस्तक है, जिसका जिक्र न तो वेदों में है न पुराणों-निषद-उपनिषदों आदि काल्पनिक किताबों में लेकिन मनुस्मृति में वेद-पुराण आदि का जिक्र खूब किया गया है..जाहिर है बहुत समय बाद धर्म की आड़ में ब्राह्मणवादियों ने नियम-कायदे-कानून-न्याय आदि को लेकर वर्ण-व्यवस्था लागू कर दी और ब्राह्मण-क्षत्रिय-वैश्य-शूद्र इन चार वर्णो की श्रेणी को बनाकर इनके अधिकार सुनिश्चित कर दिए तथा शूद्रों को सदा के लिए शिक्षा से वंचित कर दिया गया..हालांकि मनुस्मृति की एक महत्वपूर्ण संक्षिप्त व्याख्या, में लेख के किसी और खंड में वर्णित करूँगा..!
       अमरीका और ब्रिटेन दोनों देशों से उच्च शिक्षा प्राप्त, विदेशी यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में पीएचडी करने वाले पहले भारतीय, 39 डिग्रियों के ज्ञाता और सभी धर्मो का लगातार 21वर्षों तक गहन अध्यनकर्ता, शोषित-उपेक्षित-वंचित समाज के हक़-अधिकार व मान-सम्मान की लड़ाई लड़ने वाले डॉक्टरों के डॉक्टर, डॉ० भीम राव अंबेडकर ने, 25-जुलाई 1927 को महाराष्ट्र के कोलाबा जिले के (वर्तमान में रायगढ़) महाद में सार्वजनिक रूप से मनुस्मृति को जलाया था..डॉ० अंबेडकर अपनी किताब “फिलॉस्पी ऑफ़ हिन्दुइज़्म” में लिखते हैं कि मनु ने चार वर्ण व्यवस्था की वकालत की थी..मनु ने इन चार वर्णो को अलग-अलग रखने के बारे में बताकर जाति व्यवस्था की नींव रखी..हालांकि यह नहीं कहा जा सकता कि मनु ने जाति व्यवस्था की रचना की है लेकिन उन्होंने इस व्यवस्था के बीज जरूर बोए थे..डॉ० अंबेडकर ने मनुस्मृति के विरोध को अपनी किताब “कौन थे शूद्र” व “जाति का विनाश” में दर्ज़ कराया है..!  
            बीसवीं सदी के मध्य में, जहाँ महानायक डॉ० अंबेडकर संघर्ष कर रहे थे वहीं दूसरी ओर डॉ० अंबेडकर से, उम्र में 20 वर्ष छोटे दूसरे महानायक, डॉ० राममनोहर लोहिया का शोषित-उपेक्षित-वंचित समाज के हक़-अधिकारों को लेकर देश की कुल आबादी के अनुपात,  70 फीसदी लोगों को सम्मान दिलाने का संघर्ष शुरू हो गया था..जहाँ डॉ० अंबेडकर अपने लोगों को पूर्ण अधिकारों से सुसज्जित करने व राजनीतिक हल हेतू समान विचारों वाले राजनीतिक दल व राजनीतिक साथियों की खोज तथा समझने की कोशिशें कर रहे थे..वहीँ डॉ० लोहिया ने, डॉ० अंबेडकर के, मन के भावों को समझना शुरू कर दिया था..इसे इत्तेफाक कहें, दुर्भाग्य कहें, या समय का चक्र कि समता और सामाजिक न्याय की धूरि के ये दो महानायक आपस में व्यक्तिगत रूप से मिल न सके न ही कोई व्यक्तिगत संवाद बना..जो संवाद बना वो केवल डॉ० लोहिया और डॉ० अंबेडकर के एक दूसरे को लिखे वो चार पत्र है जिन्हे में प्रेषित कर रहा हूँ..डॉ० लोहिया का, डॉ० अंबेडकर को लिखा पहला पत्र जिसका प्रारूप निम्न लिखित है..!  

प्रिय डॉ० अंबेडकर - हैदराबाद,  20.12.1955 
“मैनकाइंड” पूरे मन से जाति-समस्या को अपनी समपूर्णता में खोलकर रखने का प्रयत्न करेगा ! इसलिए आप इसके लिए अपना कोई आलेख भेज सकें तो प्रसन्नता होगी ! लेख 2,500 और 4,000 शब्दों के बीच हो तो अच्छा ! आप जिस विषय पर चाहें लिखिए ! हमारे देश में प्रचलित जाति-प्रथा के किसी पहलू पर अगर आप लिखना पसंद करें तो में चाहूंगा कि आप कुछ ऐसा लिखें कि हिन्दुस्तान की जनता ना सिर्फ क्रोधित हो बल्कि आश्चर्य भी करे ! 
            में नहीं जानता कि मध्य प्रदेश में लोकसभा चुनावों के दौरान आपके बारे में मैंने जो कहा उसे आपके अनुयायी ने, जो मेरे साथ रहा आपको बतलाया या नहीं ! अब भी में चाहता हूँ कि क्रोध के साथ दया भी जोड़नी चाहिए ! और आप न सिर्फ अनुसूचित जातियों के नेता बने, बल्कि पूरी हिन्दुस्तानी जनता के नेता बने !  
           हमारे क्षेत्रीय शिक्षण शिविर में यदि आप आ सकें तो हमें बड़ी ख़ुशी होगी ! यह सोचकर कि इसके साथ वाली विषय सूची सहायक होगी उसे भेजा जा रहा है ! अगर आप अपने भाषण का सार पहले से ही भेज दें तो बाद में उसे प्रकाशित करना अच्छा होगा ! हम चाहते हैं कि एक घंटे के भाषण के बाद उस पर एक घंटे तक चर्चा भी हो ! 
         में नहीं जानता की समाजवादी दल की स्थापना सम्मलेन में आपको कोई दिलचस्पी होगी या नहीं ! आप पार्टी के सदस्य नहीं हैं पर फिर भी सम्मलेन में आप विशेष आमंत्रित होकर आ सकते हैं ! अन्य विषयों के अलावा, सम्मलेन में खेत मजदूर, कारीगरों और संसदीय काम से सम्बन्धित समस्यायों पर भी विचार होगा और इनमे से किसी एक पर आपको कुछ महत्वपूर्ण बात कहनी ही है !  
   किसी बात को बतलाने के लिए यदि आप सम्मलेन की कार्यवाही में हिस्सा लेना चाहें तो में समझता हूँ कि सम्मलेन विशेष रूप से अनुमति देगा ! 
आपका 
राममनोहर लोहिया 
             दूसरा जवाबी पत्र, डॉ० अंबेडकर ने डॉ० लोहिया को लिखा...

प्रिय डॉ० लोहिया - दिल्ली, 24.09.1956  
आपके दो मित्र मुझ से मिलने आये थे ! मैंने उनसे काफी देर तक बातचीत की ! हालांकि हम लोगों में आपके चुनाव कार्येक्रम के बारे में कोई बात नहीं हुई !  
      अखिल भारतीय परिगणित जाति संघ की कार्य समिति की बैठक 30 सितम्बर, 1956 को होगी और में समिति के सामने आपके मित्रों का प्रस्ताव रख दूंगा ! कार्य समिति की बैठक के बाद में चाहूंगा कि आपकी पार्टी के प्रमुख लोगो से बातचीत हो सके !  
         ताकि हम लोग अंतिम रूप से तय कर सकें कि साथ होने के लिए हम लोग क्या कर सकते हैं ? मुझे ख़ुशी होगी अगर आप दिल्ली में मंगलवार 2 अक्टूबर, 1956 को मेरे यहाँ आ सकें ! अगर आप आ रहे हैं तो कृपया तार से सूचित करें ताकि में कार्य समिति के कुछ लोगो को भी आपसे मिलने के लिए रोक सकूँ ! 
आपका 
बी. आर. अम्बेडकर 

*धारावाहिक लेख जारी है* 
(लेखक-राजनीतिक व सामाजिक चिंतक है)
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