मनीष सिंह
सुमंत को आदेश हुआ – “रथ लेकर आओ, राम वन गमन करेंगे” !
अयोध्या से कुछ दूर आकर राम ने रथ रोकने को कहा। रथ से उतर गए, सुमंत को वापस भेज दिया। वह पल था, और आगे के 14 बरस।
राम चलते गए, पैदल… !!
निषाद, सुर, मर्कट, नाग, ब्याघ्र, रीछ … हर जनजाति से मिले। उनके साथ खाया, उन्ही के साथ रहे, उनके लिए लड़े।
फिर वे भी लड़े राम के लिए। जब प्रभु श्रीराम पर संकट आया !
जी हां, अयोध्या रियासत से निष्कासित राजकुमार राम को इस यात्रा ने प्रभु श्रीराम बना डाला। राम से श्रीराम की यात्रा, तो रथ त्यागने से ही शुरू हुईं।
विरथ प्रभु श्रीराम ने पूरे भारतवर्ष को देखा। लिखने वालों ने उस यात्रा को लिखा, रामायण रच दी। आज भी पूरे भारत से प्रथम परिचय, एक हिंदुस्तानी को रामकथा से मिलता है। तो राम की यात्रा को, भारत जोड़ने की पहली यात्रा कह ही सकते हैं !
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और आजाद भारत को तोड़ने की पहली यात्रा, सुसज्जित रथ पर चढ़कर की गई, यह भी एक तथ्य है। उस रथ पर देश का झंडा न था, राष्ट्र चिन्ह न था। उस पर पार्टी का चुनावी चिन्ह खुदा था।
सोमनाथ से निकले रथ का गन्तव्य अयोध्या था, मगर मन्तव्य दिल्ली। इसलिए वह रथ अयोध्या कभी न पहुँच सका।
सवारों को कोई गिला नही, वे दिल्ली तो पहुँच ही गए। लेकिन मौत का वह रथ, 60 दिन बदस्तूर देश की छाती पर दौड़ा। जहां-जहां से गुजरा, छोड़ता गया जलते हुए मकान, बस्तियां, आंसू, लाशें।
1 सितम्बर से 20 नवंबर 1990 के बीच कोई 166 दंगे इस देश मे हुए, 564 लोग शिकार हुए !
रथ का पहिया तो रूका, लेकिन उसकी लगाई लपटें नही। नवंबर 90 के बाद हुए हिन्दू-मुस्लिम कॉन्फ्लिक्टस में मौतों की संख्या जोड़ लीजिए।
आज हमारे नसीबो पर लगा ग्रहण, चेहरे पर पुति राख कुछ और नही… उस दूषित रथ की धूल है !!
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तो एक यात्रा फिर हो रही है। 30 साल बाद … उस रथ के पथ पर पानी की फुहारें डालने के लिए।
पार्टी का झंडा नही है, चुनाव का चिन्ह भी नही है। तिरंगे के तले, वो तथाकथित राजकुमार, जिसे हमने सत्ता से सिंहासन से बेदखल कर जमीन पर उतार दिया, चल रहा है।
किसी रथ पर नही है। पांव पांव ही चलकर भारत को खोज रहा है। तो जमीन पर उसके कदमो के निशान भी बनेंगे। दिलो में पदचिन्ह कितना गहरे जाएंगे, वक्त बताएगा। मगर यह तय है कि जिन जगहों से गुजरेगा वहां नफरत का ज्वार नही उफनेगा।
क्योकि रथ, और पैरों की तासीर अलग होती है, राम को पता था। राहुल को भी समझ आ चुका।
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अब एक नई कहानी का ताना बाना बुना जा रहा है। मगर वह कहानी वो राजकुमार नही, मैं और आप बुनें, तब तो मजा है।
सुर, नर, मुनि, निषाद, मर्कट, नाग, ब्याघ्र औऱ रीछ … हिंदुस्तान जोड़ें। लिखें, बोले, डिजिटल स्पेस में, दोस्तों के बीच, बाजार में। हो सके तो चले कुछ दूर अपने पैरों पर। अपने जिले, शहर, गांव में देश जोड़ने की यात्रा करें।
यह वक्त, यह दौर इतिहास में दर्ज होगा। वक्त की धूल पर कुछ हमारे भी कदमो के निशान होने चहिए।
ऐसे निशान, जिसके तले वह लकीरे ढंक जायें, जो एक दूषित रथ और उसके मुट्ठी भर रथी, हिंदुस्तान औऱ हिंदुस्तान के बीच खींच गये हैं।
मनीष सिंह