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आखिर भारतीय संविधान के जनक संविधान को क्यों जलाना चाहते थे?

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डॉ भीमराव आंबेडकर ने देश को संविधान के रूप में बेशकीमती तोहफा दिया। इसने देश को रास्‍ता दिखाया कि उसे आगे का सफर कैसे तय करना है। इसे बनाने में आंबेडकर ने पूरी ताकत झोंक दी। न दिन को दिन समझा न रात को रात। लेकिन, यह भी सच है कि जिस संविधान को बनाने में उन्‍होंने सबकुछ न्‍योछावर कर दिया था, एक समय आया जब वह इसे जलाने की बात करने लगे थे। आंबेडकर कहने लगे थे कि वह इसे जलाने वाले पहले शख्‍स होंगे। उन्‍हें इसकी जरूरत नहीं है। आखिर भारतीय संविधान के जनक ऐसा क्‍यों करना चाहते थे? वह किस बात से इतना नाराज हो गए थे कि जिस संविधान को बनाया उसी को जलाने की बात करने लगे थे?

बात 19 मार्च 1955 की है। राज्‍यसभा का सत्र चल रहा था। चौथे संशोधन विधेयक पर चर्चा जारी थी। आंबेडकर सदन की चर्चा में हिस्‍सा लेने पहुंचे थे। उनसे एक सवाल पूछा गया था। सवाल पूछने वाले थे डॉ अनूप सिंह। यह आंबेडकर के एक बयान को लेकर था। आंबेडकर ने इसके पहले कहा था कि उनके दोस्‍त कहते हैं कि उन्‍होंने संविधान बनाया। लेकिन, वह यह कहने के लिए बिल्‍कुल तैयार हैं कि वो पहले व्‍यक्ति होंगे जो इसे जलाएंगे। उन दिनों आंबेडकर के इस बयान ने खलबली मचा दी थी। लोग सकते में आ गए थे कि आंबेडकर ने ऐसा क्‍यों कहा। अनूप सिंह ने राज्‍यसभा में सवाल किया कि ऐसा उन्‍होंने क्‍यों कहा।

‘मेरे मित्र कहते हैं कि मैंने संविधान बनाया है। लेकिन, मैं यह कहने के लिए पूरी तरह तैयार हूं कि संविधान को जलाने वाला मैं पहला व्यक्ति होऊंगा। मुझे इसकी जरूरत नहीं है। यह किसी के लिए अच्छा नहीं है।’

आंबेडकर ने द‍िया था बेबाकी से जवाब
आंबेडकर ने बड़ी बेबाकी से इसका जवाब दिया था। उन्‍होंने कहा था क‍ि पिछली बार जल्‍दबाजी में वो इसका जवाब नहीं दे पाए थे। लेकिन, उन्‍होंने यह सोच-समझकर कहा था कि वह संविधान को जला देना चाहते हैं। अब वह इसका जवाब भी देंगे कि उन्‍होंने ऐसा क्‍यों कहा।

आंबेडकर ने तब कहा था- हम मंदिर बनाते हैं ताकि भगवान उसमें आएं और रहने लगें। लेकिन, भगवान के आने से पहले अगर दानव आकर रहने लगें तो मंदिर को नष्‍ट करने के अलावा क्‍या रास्‍ता बचेगा। यह सोचकर कोई मंदिर नहीं बनाता है कि उसमें असुर आकर वास करने लगें। सभी चाहते हैं कि उस मंदिर में देवों का वास हो। यही कारण है कि उन्‍होंने संविधान को जलाने की बात की थी।

इस पर एक सांसद ने कहा था कि मंदिर को नष्‍ट करने के बजाय दानव को खत्‍म करने की बात क्‍यों नहीं करनी चाहिए।

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सुरों और असुरों का क‍िया था ज‍िक्र
तब आंबेडकर ने इसका तीखा जवाब दिया था। उन्‍होंने कहा था – आप ऐसा नहीं कर सकते हैं। हम में इतनी ताकत ही नहीं है। अगर आप ब्राह्मण और शतपथ ब्राह्मण पढ़ेंगे तो आप पाएंगे कि असुरों ने देवों को हमेशा पराजित किया। उनके पास ही अमृत था जिसे युद्ध में जीवित रहने के लिए देवों को लेकर भागना पड़ा था।

आंबेडकर ने कहा था कि अगर संविधान को आगे लेकर जाना है तो एक बात याद रखनी होगी। उन्‍हें समझना होगा कि बहुसंख्‍यक और अल्‍पसंख्‍यक दोनों हैं। अल्‍पसंख्‍यकों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।

उस समय के सबसे श‍िक्ष‍ित व्‍यक्‍त‍ियों में थे आंबेडकर
डॉ आंबेडकर तब संविधान के कई प्रावधानों में संशोधनों से नाराज थे। उन्‍हें लगने लगा था कि संविधान कितना भी अच्‍छा क्‍यों नहीं हो, जब त‍क इसे सही से लागू नहीं किया जाएगा यह उपयोगी साबित नहीं होगा। वह मानने लगे थे कि देश का पांच फीसदी से भी कम आबादी वाला सम्‍भ्रांत वर्ग देश के लोकतंत्र को हाईजैक कर लेगा। इसके कारण 95 फीसदी तबके को संव‍िधान का लाभ नहीं मिलेगा।

आजादी के संघर्ष में आंबेडकर सबसे प्रमुख शख्सियतों में से थे। महात्मा गांधी से वह 22 साल छोटे थे। 14 अप्रैल 1891 को आंबेडकर का जन्‍म एक दलित परिवार में हुआ था। देश में उनके जैसा पढ़ा-लिखा उस समय शायद ही कोई था। इकोनॉमिक्‍स से दो डॉक्टरेट की डिग्रि‍यां थींं उनके पास। एक अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी से। दूसरी लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से। उस समय वह इंग्लैंड में रहने वाले सबसे ज्यादा एकैडमिकली क्वालिफाइड भारतीय थे। आंबेडकर की योग्यता को देखते हुए ही उन्हें ड्राफ्टिंग कमिटी का चेयरमैन बनाया गया था। उन्होंने देश के संविधान को मूर्त रूप दिया था।

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