भोपाल मुख्यमंत्री बाल श्रवण योजना में सरकार बधिर बच्चों की कॉक्लियर इंप्लांट सर्जरी करा रही है। हर साल प्रदेश के 300 से 400 बच्चों का इस योजना में इलाज हो रहा है। लेकिन एक बार इंप्लांट के बाद मशीन के रख रखाव का लाखों का खर्च आर्थिक रूप से कमजोर परिवार पर आ रहा है।
मुख्यमंत्री बाल श्रवण योजना में सरकार बधिर बच्चों की कॉक्लियर इंप्लांट सर्जरी करा रही है। हर साल प्रदेश के 300 से 400 बच्चों का इस योजना में इलाज हो रहा है। लेकिन एक बार इंप्लांट के बाद मशीन के रख रखाव का लाखों का खर्च आर्थिक रूप से कमजोर परिवार पर आ रहा है। यह कारण है कि अकेले भोपाल में दर्जनों ऐसे परिजन हैं जो बच्चे के भविष्य के लिए गुहार लगा रहे हैं। उनका कहना है कि बच्चों के कान में है साढ़े छह लाख खराब मशीन सालों से लगी हैं। अब डर यह है कि इसका कहीं उलटा प्रभाव ना पड़ जाए। मदद के लिए वे मुख्यमंत्री जनता दरबार से लेकर कलेक्टर की जनसुनवाई में अर्जी दे चुके हैं।
केस एक – दो साल में मंत्री से लेकर अधिकारियों से लगा चुके गुहार
भगतराम प्रजापति के 10 साल के बेटे हर्ष प्रजापति का साल 2017 में कॉक्लियर इंप्लांट हुआ। भगतराम बताते हैं साल 2022 में मशीन चार से पांच माह तक बंद रही। इसके बाद निजी संस्थान की मदद से करीब एक लाख में मशीन रिपेयर हुई। जो सात माह बाद ही फिर खराब हो गई। अब डेढ़ साल में मंत्री से लेकर अधिकारियों तक से गुहार लगा चुके हैं। रिपेयरिंग में डेढ़ लाख और नई मशीन के लिए साढ़े सात लाख रुपए का कोटेशन बना है।
केस दो – पिता बोले – यह जानकारी पहले होती तो सर्जरी ना कराते
गंधर्व यादव के 8 साल के बेटे दर्श यादव की कॉक्लियर इंप्लांट सर्जरी साल 2020 में हुई थी। करीब दो साल से उनका बेटा भी मशीन खराब होने के चलते सुन नहीं पा रहा है। उन्होंने कहा कि वे कपड़े की दुकान में काम करते हैं वे इस मशीन के संचालन के लिए जरूरी राशि की व्यवस्था करने में असमर्थ हैं। यदी यह सब जानकारी पहले होती तो सर्जरी ही नहीं कराते। अब डर रहता है कि अंदर पड़ी खराब मशीन से उलटा प्रभाव ना पड़ जाए।
हर साल यह खर्च तो आना ही है-एक साल में एक बार कॉयल या केबल बदली पड़ती है। जिसमें करीब 5 से 12 हजार तक खर्च आता है।-एक सेल 500 से 800 का पड़ता है। वहीं बैटरी वाली मशीन में इसका खर्च 15 हजार तक आता है।
-स्पीच थैरेपी के लिए हर साल 6 से 10 हजार का खर्च आता है।कैसे काम करती है मशीनकई बच्चे कान के मध्य भाग में स्थित कॉक्लिया में खराबी के चलते सुन नहीं पाते हैं। ऐसे बच्चे बोल भी नहीं पाते हैं। इसी समस्या के हल के लिए कृत्रिम कॉक्लिया लगाया जाता है। प्रति केस में साढ़े छह लाख रुपए का खर्च आता है। जिसमें 5 लाख 20 हजार रुपए राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत केंद्र सरकार देती है। वहीं 1 लाख 30 हजार रुपए बाल श्रवण योजना के तहत राज्य सरकार देती है।