राज कुमार मेहरा
स्मिता पाटिल से तो नहीं पर उनकी सौत theatre person नादिरा जहीर बब्बर से मिलना हुआ है । दोनों ही विलक्षण प्रतिभाशाली, दोनों ने खूब नाम कमाया, दोनों ही प्रगतिशील समाज सुधारक परिवारों से आयीं, दोनों राज बब्बर के प्रेम में पड़ीं, उनसे विवाह किया और सन्तान उत्पन्न की । इन दोनों की फिल्में और नाटक मैं देखता, सराहता रहा हूँ । राज बब्बर से मेरा कोई वास्ता नहीं रहा सिवाय इसके कि उनके भाई किशन बब्बर जी से बंबई में एक बार उनके स्टूडियो में मिला था और उनकी फिएट में कुछ दूर तक यात्रा की थी ।
मधुबाला के बाद यदि कोई नाम सिनेमा में कालजयी रहा है तो वह है स्मिता पाटिल । दोनों ने बहुत कम उम्र में अपना कैरियर प्रारम्भ किया और दोनों ही बहुत कम आयु में चल बसीं—मधुबाला की 36 में और स्मिता पाटिल की मात्र 31 वर्ष की अल्पायु में मृत्यु हो गयी । स्मिता पाटिल का बेटा प्रतीक बब्बर आज 36 वर्ष का है, उसने अपनी माँ की सिर्फ तस्वीरें ही देखी हैं क्योंकि स्मिता की मृत्यु प्रसव की complications के कारण हुई थी ।
इतनी कम जीवन अवधि में भी स्मिता पाटिल ने बड़े-बड़े काम किये । उनकी शुरुआत दूरदर्शन में समाचार उद्घोषिका के रूप में हुई । यहाँ श्याम बेनेगल ने इस श्यामल रंगत वाले नगीने को पहचाना और “चरनदास चोर” में ब्रेक दिया । 1976 में “मन्थन” आई । सिनेमा विधा में जैसे भूचाल आ गया । श्वेत क्रान्ति पर आधारित इस फिल्म ने बुद्धिजीवियों, विचारकों, समाज सुधारकों का ध्यान आकर्षित किया । ऐसी भी फिल्म होती है, जहाँ सब कुछ असली लगे, नाटक नहीं ! जहाँ कलाकार बिल्कुल आपके आस-पास के लोगों जैसे दिखें । समानान्तर सिनेमा की शुरुआत थी यह । फिल्म को दो राष्ट्रीय पुरस्कार मिले । (अपनी सेवाओं के लिए चहेती कंगना को राष्ट्रीय पुरस्कार देकर मोदीजी ने इस पुरस्कार को बहुत नीचा गिरा दिया है अब तो ) फिर तो एक सिलसिला शुरु हो गया । शबाना आजमी, नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी जैसे अपारंपरिक कलाकारों को देखने वालों का एक वर्ग तैयार हुआ । खुशकिस्मती और संयोग से इन तीनों के साथ interactions का मौका मिला मुझे । नसीर जी और ओम पुरी साहब से बातचीत करना मेरी स्मृति का अभूतपूर्व हिस्सा है । “भूमिका” में स्मिता पाटिल को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय खिताब हासिल हुआ । “आक्रोश” को सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म का पुरस्कार मिला । “चक्र” के लिये स्मिता पाटिल को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुआ । जब समानान्तर सिनेमा चल निकला तो लोग इस प्रकार की फिल्मों में भी पैसा लगाने को तैयार हो गये । परन्तु फाइनांसर ग्लैमर चाहते थे । उनकी छवि ग्लैमरस नहीं थी, इसी वजह से स्मिता पाटिल को कई फिल्मों से निकाल दिया गया । समानांतर अर्थपूर्ण फिल्मों से स्मिता का मोह भंग हुआ और उन्होंने व्यावसायिक फिल्मों में काम शुरु कर दिया और अपने जमाने के प्रसिद्ध नायकों के साथ एक से बढ़ कर एक हिट फिल्में दीं । बारिश में अमिताभ बच्चन के साथ “आज रपट जायें …” आपकी स्मृति में होगा। उन्होंने मराठी फिल्मों में भी बेमिसाल काम किया । सिर्फ 10 सालों में ही 80 फिल्में की, फिल्मफेयर अवार्ड प्राप्त किया, सबसे कम उम्र में पद्मश्री प्राप्त करने वाली फिल्म-स्टार बनीं । भारत सरकार ने उनके सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया है । स्मिता पाटिल मैमोरियल अवार्ड उनकी स्मृति में शुरु किया गया है । शायद आपको मालूम हो नाना पाटेकर को मंच से सिनेमा में लाने वाली स्मिता पाटिल ही हैं ।
अंत में यही कहना चाहूँगा कि जिन लोगों ने अब तक मन्थन, भूमिका, आक्रोश, चक्र, बाजार, गमन, निशांत, सद्गति, भवानी भवाई, उम्बरथा/सुबह (in Hindi), अर्थ, अर्धसत्य, मंडी, चिदम्बरम, मिर्च-मसाला नहीं देखी है वो जीवन में संभवतः बहुत कुछ मिस कर रहे हैं ।
17 अक्तूबर स्मिता पाटिल जी का जन्म दिवस है ।
{वो ख़ूब-रू है हसीं है वजीह है ‘सीमा’
वो मेरा यार बड़ा साँवला सलोना है ~ (सीमा नक़वी)}