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सूरत के बाद इंदौर में भी कांग्रेस हुई मैदान से बाहर

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सुसंस्कृति परिहार 

 इंदौर में कांग्रेस प्रत्याशी के नाम वापसी का जैसे ही समाचार प्रसारित हुआ एक बार फिर भाजपा के चाल चरित्र का एक और सबूत मिल गया।जो प्रत्याशी रविवार की शाम तक कांग्रेस के पक्ष में चुनाव प्रचार में मशगूल था अचानक सुबह भाजपा विधायक के साथ जाकर निर्वाचन अधिकारी से अपना आखिरी तारीख को नामांकन पत्र वापस ले लेता है और भाजपा कार्यालय जाकर दुपट्टा धारण कर लेता है। अचानक हृदय परिवर्तन का यह पहला ऐसा मामला है।यह क्यों और कैसे हुआ सूत्रों की मानें तो रविवार की रात कांग्रेस के उम्मीदवार अक्षय बम को एक 17 साल पुराने मामले में 307में फंसने की जानकारी दी गई। उन्हें डराया गया तथा मुक्ति पथ पर चलने का आसान तरीका बताया गया।इस तरह उन्होंने नामांकन वापस लिया। यहां भी कांग्रेस के डमी प्रत्याशी का नामांकन भी रद्द कर दिया गया यानि कांग्रेस विहीन हो गया इंदौर, लेकिन बताते हैं कि अन्य उम्मीदवारों ने दबाव के बाद नाम वापस नहीं लिए इसलिए 13मई को चुनाव होंगे। राहुलगांधी इसलिए ज़ोर दे रहे हैं कि निडर बनो। निडर होना आसान नहीं।

 बहरहाल लगता है,कांग्रेस मुक्त भारत का नारा देने वाली भाजपा कांग्रेस को चुनावी मैदान से हटाने प्रतिबद्ध नज़र आ रही है । मध्यप्रदेश में यह दूसरा मामला है। इससे पहले खजुराहो में इंडिया गठबंधन की सपा प्रत्याशी के साथ भी इसी तरह का खेला हुआ वे मैदान से बाहर कर दी गई ।यह पहला मामला था जहां प्रत्याशी का पर्चा एक जगह हस्ताक्षर ना करने पर रद्द किया गया जबकि प्रावधान के मुताबिक निर्वाचन अधिकारी खुद अपने सामने ही प्रत्याशी के हस्ताक्षर कराता है वह कैसे छूट गया।यह गलती निर्वाचन अधिकारी की ही लगती है। हालात देखकर तो लगता है यह भी किसी साज़िश के तहत हुआ है क्योंकि यहां भाजपा प्रदेश अध्यक्ष चुनाव मैदान में थे।जिनका दूसरे चरण में मतदान भी हो गया।अब करते रहिए कोर्ट की तैयारी।

सूरत के मामले में  कांग्रेस प्रत्याशी के चार प्रस्तावकों के हस्ताक्षर में तीन का मिलान ना होने या कहें फर्जी हस्ताक्षर होने का इल्ज़ाम लगा कर नामांकन रद्द किया गया।बताया जाता भाजपा ने तीन समर्थकों के हलफनामे दिलाकर यहां खेल खेल दिया।इसका आभास कांग्रेस प्रत्याशी को नहीं हो पाया।डमी कांग्रेस प्रत्याशी का नामांकन भी रद्द हुआ।साथ ही अन्य दलों और निर्दलीय  प्रत्याशियों ने किसी साज़िश के तहत नाम वापस ले लिए।बड़ी बात तो यह हुई कि जिला निर्वाचन अधिकारी ने आनन फानन में चुनाव परिणाम तिथि से पहले भाजपा उम्मीदवार को जीत का प्रमाण पत्र भी दे दिया।मामला नोटा पर अदालत पहुंचा है पर इससे क्या और कैसे फायदा मिलेगा।

कुल मिलाकर लगता कि चाणक्य ने इस बार अपने नामी-गिरामी नेताओं, मंत्रियों को ऐसा टास्क दिया हुआ जिससे ऐन टाईम पर कांग्रेस का मनोबल टूटे वह कमज़ोर हो जाए लेकिन यह दूर की कौड़ी है इससे मतदाताओं के बीच भाजपा निरंतर की छवि गिरती जा रही है।सरे आम यह चर्चा है कि इससे पहले तो कभी ऐसा नहीं हुआ। लोगों ने विधायकों की ख़रीद फ़रोख़्त भी देखी है पर अब चुनाव भी ना लड़ने देना जैसी ओछी हरकतों की चहुंओर निंदा हो रही है। यहां यह भी सत्य है कि जिन तीन क्षेत्रों में अभी कांग्रेस या सपा को मैदान से हटाई है वे भाजपा के पुराने गढ़ थे वहां जीत मुश्किल थी। इसलिए कांग्रेस को किसी तरह का नुक़सान नहीं हुआ है। ज़रूरत मनोबल को बनाए रखने की है क्योंकि अभी पता नहीं भाजपा कैसी कैसी शातिराना हरकतें करने वाली है। सत्ता का गुरुर टूटेगा जरूर।

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