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बीस साल बाद अमरीका को वियतनाम की तरह अफगानिस्तान से भी दुम दबा कर भागना पड़ा

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हिसाम सिद्दीकी

नई दिल्ली! बीस साल बाद तालिबान ने अफगानिस्तान पर फिर से मुकम्मल कब्जा कर लिया है। अमरीका को वियतनाम की तरह अफगानिस्तान से भी दुम दबा कर भागना पड़ा है। तालिबान के काम करने के तरीकों से भले ही हम इत्तेफाक न करें, लेकिन इतना तो तस्लीम करना ही पडे़गा कि तालिबान ने दुनिया की सबसे बड़ी ताकत अमरीका को अपने मुल्क से भगाया है। बीस सालों तक तकरीबन पौने दो लाख र्ं175390) मौतों और हजारों करोड़ डालर खर्च करके अमरीका ने अफगानिस्तान में जो फौज तैयार की थी, वक्त आने पर वह खामोश रही और कोई हिंसा किए बगैर तालिबान ने बड़ी आसानी के साथ काबुल पर कब्जा कर लिया। अमरीका ने अफगानिस्तान में अशरफ गनी को अपना कठपुतली सदर बनाया था तालिबान ने पन्द्रह अगस्त को काबुल का घेराव किया तो सबसे पहले अशरफ गनी ही अपनी कार में अमरीकी डालर्स का खजाना भरकर भाग खडे़ हुए। उस वक्त तक काबुल का हवाई अड्डा काम कर रहा था उनका हवाई जहाज कजाखिस्तान गया जहां उन्हें उतरने की इजाजत नहीं मिली तो कतर की राजद्दानी दोहा चले गए। उनके डिफेंस मिनिस्टर बिस्मिल्लाह खान मोहम्मदी ने ट्वीट किया कि अशरफ गनी ने हमारे हाथ बांद्दकर देश फरोख्त कर दिया और भाग खडे़ हुए। चीन, पाकिस्तान और रूस ने फौरन ही तालिबान की हिमायत कर दी जो भारत के लिए अच्छा शगुन नहीं है। इस बार तालिबान भी काफी तब्दील लगते हैं। उन्होने कहा है कि ख्वातीन की आजादी बहाल रखी जाएगी। काबुल पर कब्जा करने में भी उन्होने हिंसा नहीं की शायद इसलिए कि वह दुनिया से खुद को तस्लीम कराना चाहते हैं। पूरे मुल्क पर तालिबान का कब्जा होने के बाद कहीं से भी हिंसा की कोई खबर नहीं आई। तालिबान ने यह भी कहा है कि वह अमरीका की बनाई हुई फौज को माफ कर देंगे। यूनाइटेड नेशन्स सिक्योरिटी कौंसिल ने तालिबान से कहा कि दुनिया की नजर उनपर है इसलिए उन्हें एहतियात से काम लेना चाहिए। अमरीकी सदर जो बाइडेन ने फिर दोहराया कि अफगानिस्तान से फौज वापस बुलाने के अपने फैसले पर वह अडिग हैं उन्होने यह भी कहा कि सदर अशरफ गनी बगैर लड़े ही भाग गए तो अशरफ गनी ने कहा कि वह खून-खराबा नहीं चाहते थे।
चीन, रूस, ईरान और पाकिस्तान वगैरह ने तालिबान के साथ जो रवैय्या जाहिर किया है वह भारत के लिए बड़ी फिक्र की बात है। तालिबान का आना भारत खुसूसन कश्मीर में दहशतगर्दी में इजाफा करेगा इसमें कोई शक व शुब्हा नहीं है। पूरे मुल्क पर तालिबान का कब्जा होने के बाद पाकिस्तानी वजीर-ए-आजम इमरान खान ने कहा कि जंग में फंसे अफगानिस्तान के लोगों ने गुलामी की बेड़ियां तोड़ दी हैं। जब आप किसी की सकाफत को अपनाते हैं तो इसका नतीजा गुलामी ही होता है। अफगानियानों ने उसी गुलामी की बेड़ियों तोड़ी हैं। चीन ने कहा कि तकरीबन चालीस सालों से जारी जंग का खात्मा हुआ है। हम अफगानिस्तान के साथ दोस्ताना ताल्लुकात चाहते हैं। अफगानिस्तान के लोगों को अपनी किस्मत और मुस्तकबिल का फैसला करने का अख्तियार है। हम उनके जज्बे का एहतराम करते हैं। हम अफगानिस्तान की नौतामीर के लिए मुसबत रोल अदा करना चाहते हैं। रूस ने कहा कि वह काबुल में अपने सिफारतखाने (दूतावास) को बंद नहीं करेगा और तालिबान के साथ बेहतर ताल्लुकात रखेगा। इरान, सऊदी अरब, कतर और यूनाइटेड अरब अमीरात ने कोई वाजेह (स्पष्ट) बयान खबर लिखे जाने तक नहीं दिया था लेकिन इन सभी मुल्कों का तालिबान के साथ रवैय्या हमदर्दी वाला ही है। कतर की राजद्दानी दोहा को तो काफी दिनों से तालिबान की दूसरी राजद्दानी ही कहा जा रहा है। इसीलिए अशरफ गनी ने मुल्क से भागते वक्त अपना इस्तीफा दोहा ही भेजा था।
तालिबान ने अफगानिस्तान पर मुकम्मल कब्जा करने के बाद एलान किया कि जो भी सरकारी मुलाजमीन हैं वह अपने काम पर वापस आ जाएं। यह भी कहा कि अमरीका की खिदमत में बीस सवाल से लगे लोगों को माफ कर दिया जाएगा उनके खिलाफ कोई भी इंतकामी कार्रवाई नहीं की जाएगी। टेलीवीजन स्टूडियोज में तालिबान ने अपने ऐंकर बिठा दिए लेकिन पहले से काम कर रही ख्वातीन एेंकर्स को हटाया नहीं गया है। दोनों को साथ-साथ काम करते देखा गया इसी दरम्यान तालिबान ने एलान किया कि ख्वातीन की आजादी बरकरार रखी जाएगी वह भी अपने काम पर वापस आएं। उन्होंने इतना जरूर किया है कि हर सरकारी मोहकमे और ओहदों को अपने कब्जे में ले लिया है।
भारत ने गुजिश्ता बीस सालों में खुसूसन मोदी सरकार आने के बाद अफगानिस्तान में बेशुमार पैसा लगाया है। पार्लियामेंट समेत कई सड़कों पुलों और सरकारी इमारतों की तामीर कराई है। पार्लियामेंट बनकर तैयार हुई तो उसकी इमारत का इफ्तेताह करने खुद वजीर-ए-आजम मोदी गए थे। अब चीन कह रहा है कि वह अफगानिस्तान की तामीरे नौ (पुनर्निमाण) का काम कराएगा। हालात ऐसे हो गए है कि भारत चारों तरफ से घिरा नजर आने लगा है। पड़ोसी मुल्कों के साथ भारत के ताल्लुकात खराब हो चुके हैं अब बात रूस और ईरान तक पहुच गयी है। सभी जानते हैं कि बीस साल तक तालिबान को पाकिस्तान ने ताकत पहुचाए रखी जाहिर है आईएसआई इस मुहिम के पीछे है। तालिबान के कब्जे के बाद इमरान खान ने जो उतावलापन दिखाया है उससे जाहिर है कि इमरान खान कुछ ज्यादा ही खुश हैं। शायद वह अब चीन, रूस और हर सूरत में भारत के दोस्त रहे ईरान की मदद से अफगानी दहशतगर्दों को कश्मीर में सरगर्म करेंगे।
इस दरम्यान भारत ने सत्रह अगस्त को एयर फोर्स का सी-17 जहाज भेजकर अपनी एम्बेसी में फंसे एम्बेसडर समेत दीगर मुलाजमीन और आईटीबीपी के जवानों को काबुल से निकाल लिया इन लोगों को हवाई अड्डे तक जाने या फ्लाइट के आप्रेशन में तालिबान ने कोई रूकावट नहीं डाली। हालांकि हवाई अड्डे को एक दिन पहले ही बंद कर दिया गया था। सरकारी मुलाजमीन के अलावा अफगानिस्तान में भारत के सैकड़ों शहरी खुसूसन सिख फंसे हुए हैं। खबर लिखे जाने तक उन्हें निकालने की कोशिशें जारी थीं। भारत के लिए मामलात काफी पेचीदा हो गए हैं। सत्रह अगस्त को वजीर-ए-आजम मोदी की कयादत में अफगानिस्तान मसले पर लम्बी मीटिंग भी हुई अब सबसे बड़ा मसला यह पैदा हो गया है कि अफगानिस्तान में एक तरफ चीन की बेशुमार दौलत, रूस, ईरान और सऊदी अरब की हिकमते अमली (रणनीति) और पाकिस्तान की आईएसआई इन सबसे तो ऐसा लगता है कि भारत को अब कश्मीर में उलझाया जाएगा भारत ईरान तक जो सिल्क रोड बना रहा था उसका काम भी रूक गया और उसमें बहुत ज्यादा पैसा भी फंस गया।
जिस अंदाज में बगैर किसी बड़ी झड़प या खून-खराबे के तालिबान ने पूरे अफगानिस्तान पर आसानी के साथ कब्जा कर लिया उससे तो लगता है कि अमरीका ने उन्नीस साल नौ महीनों में अपने तीन हजार पांच सौ छियासी (3586) फौजियों समेत तकरीबन पौने दो लाख लोगों की जानें खत्म करा दीं और एक हजार तिरासी बिलियन डालर खर्च कर दिया इसके बावजूद वह तालीबान का कुछ बिगाड़ नहीं सका। अफगानिस्तान में गुजिश्ता बीस सालों में जितना खून-खराबा हुआ उतना तो शायद दुनिया की किसी जंग में नहीं हुआ होगा। इस दौरान इक्यावन हजार एक सौ तिरसठ (51163) आम लोग, छः हजार नौ (6900) अफगानी फौजी, पांच हजार एक सौ इक्यान्नवे तालिबान और तीन सौ से ज्यादा सहाफी मारे गए हैं। अमरीकी रवैय्ये की वजह से यह सब तो जाया ही गया है। अशरफ गनी के भागने से साबित हो गया कि अफगानिस्तान पर अमरीका की थोपी हुई सरकार थी।
जहां तक तालिबान की मजबूती का सवाल है तो भले ही बीस सालों में पांच हजार से ज्यादा तालिबान मारे गए हों उनकी आमदनी मे कभी कोई कमी नहीं आई। चीन, रूस, ईरान, पाकिस्तान और सऊदी अरब ने कुल मिलाकर पांच सौ मिलियन डालर का चंदा उन्हें दिया। इन सालों में तालिबान ने ग्यारह हजार आठ सौ नवासी (11889) करोड़ की आमदनी की है। चार सौ सोलह (416) मिलियन डालर तो तालिबान ने नशीली दवाएं फरोख्त करके ही कमाए। वह कहते हैं कि कुदरत उनके इलाके में गेंहू तो पैदा नहीं करती, अफीम पैदा करती है तो हम इसी का तो कारोबार करेंगे। उन्होंने चार सौ चौंसठ (464) करोड़ की कमाई माइनिंग से की। सूखे मेवे वगैरह एक्सपोर्ट करके दो सौ चालीस (240) मिलियन डालर, डोनेशन से दो सौ चालीस मिलियन डालर, एक सौ साठ (160) करोड़ तावान वसूली से और एक सौ साठ (160) बिलियन डालर हफ्ता वसूली टैक्स से कमाए है। उन्होंने दस हजार दहशतगर्दों को भारत पाकिस्तान सरहद के पार पाकिस्तान में इकट्ठा कर रखे हैं। सवाल यह है कि वह इतनी मोटी कमाई करते रहे और अमरीका हुकूमत करता रहा उसे पता भी नहीं चला। अब भी तालिबान के पास जितना भी असलहा है वह सब अमरीकी ही है यह कैसे मुमकिन हो सका।

हिसाम सिद्धकी लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार हैं और उर्दू अखबार जदीद मकज के संपादक

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