आर के जैन
एक रिपोर्ट के अनुसार भारतीय सेना में लगभग 12.50 लाख जवान है जिनकी औसत आयु लगभग 32 वर्ष है।
पिछले कई सालों से यह प्रयास चल रहे थे कि कार्यरत जवानों की औसत आयु घटा कर 26 वर्ष तक के स्तर पर लाई जाये क्योंकि युवाओं में जोश और जोखिम लेने का जनून ज़्यादा होता है । दूसरे यह भी मानना है कि 32 वर्ष की आयु तक के जवानों पर पारिवारिक ज़िम्मेदारियों का बोझ भी आ जाता है और वह युद्ध काल में जोखिम लेने से हिचकते हैं तथा उनकी शारीरिक चुस्ती व फुर्ती भी कम होने लगती हैं । सेना में अग्नि वीर योजना लाने का यही मक़सद है।
देखा जाए तो अग्नि वीर योजना का मक़सद सेना की रणनिति व योजना को देखते हुऐ ग़लत नही है क्योंकि एक सैनिक का चुस्त दुरुस्त,निडर व साहसी योद्धा होना ज़रूरी होता है और इसी क्रम में सेना उम्रदराज़ सैनिकों को चरणबद्ध तरीक़े से कम करते हुए युवा सैनिकों की संख्या बढ़ाने की और कदम बढ़ा रही हैं ।
अब सवाल यह है कि मात्र चार साल तक सेना में रहने के बाद उस अग्नि वीर सैनिक का भविष्य का क्या होगा ? हमारे देश में युवा बेरोज़गारों की संख्या व उनकी हालत किसी से कहने या बताने की ज़रूरत नहीं है । ग्रामीण क्षेत्रों के युवाओं जो आर्थिक कारणों से उच्च शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाते वह फ़ौज में जाना इसलिए पसंद करते है कि उनकी शैक्षिक योग्यता को देखते हुए उन्हें इससे बेहतर और आकर्षक नौकरी नहीं मिल सकती । सेना में रहते हुए अच्छा वेतन तो मिलता ही है साथ ही रिटायर होने के बाद आजीवन पेंशन व अन्य सुविधाएँ भी मिलती हैं । एक फौजी को व उसके परिवार सामाजिक मान सम्मान भी बहुत मिलता है । मैं देश भक्ति या राष्ट्र भक्ति की बात नहीं करूँगा क्योंकि हमारे देश के अधिकांश युवाओं का फ़ौज की नौकरी चुनने का कारण देश सेवा से पहले आर्थिक ज़्यादा है जो एक कड़वी सच्चाई है ।
यह भी हक़ीक़त है कि सेना में भर्ती होने वाले ज़्यादातर युवा ग्रामीण व कृषक परिवेश के होते है जिन्हें खेती किसानी करना उन्हें अब रास नहीं आता क्योंकि न तो हिस्से में अब उतनी ज़मीन बची हैं जिससे गुज़ारा हो जाये तथा दूसरे खेती करना अब लाभकारी व्यवसाय भी नहीं रहा है तो इसीलिए वह सेना या दूसरे सुरक्षा बलों में जाने के लिए महीनों कठोर परिश्रम करते हैं ताकि उनका भविष्य सुरक्षित बन सके। सेना से वापस आने के बाद मिलने वाली पेंशन तथा दूसरी किसी नौकरी या खेती की आय से उनकी ज़िंदगी आराम से कट जाती हैं ।
अग्नि वीर योजना की सबसे बड़ी ख़ामी यही है कि इसमें सेना की नौकरी मात्र चार साल की है और चार साल बाद जब वह पूर्ण युवा अवस्था को प्राप्त कर वापस आयेंगे तो एक अनिश्चित भविष्य उनके सामने खड़ा होगा । यह सब बेकार की बातें है कि वापसी पर उन्हें 11-12 लाख रूपये एक मुश्त मिलेंगे जिससे वह कोई व्यवसाय शुरू कर सकते हैं । सभी जानते हैं कि एक ग़ैर व्यवसायिक परिवार के व्यक्ति के लिए इतनी बेहद कम पूँजी से नया व्यवसाय करना आसान नहीं है । इतने कम धनराशि से तो व्यवसाय के लिए दुकान या ज़मीन भी नहीं मिलती । दूसरे अगर वह खेती करना चाहेगा तो 11-12 लाख रूपये मे मात्र दो बीघे ज़मीन ही ख़रीद सकता है जिसमें गुज़ारा नहीं हो सकता ।
दरअसल अग्नि वीर योजना बनाने वालों ने सिर्फ़ सेना की ज़रूरत को ही ध्यान में रखा है जबकि उन्हें हमारे देश के घर परिवारो की सामाजिक व आर्थिक पहलुओं को भी ध्यान में रखना चाहिए था । सरकार कितने भी दावे कर ले पर रिटायर होकर आने सभी अग्नि वीरो को पुनः नौकरी नहीं दे सकती । मैं अफ़सरों की बात नहीं कर रहा हूँ पर ज़्यादातर एक्स सर्विस मैन निजी सुरक्षा एजेंसियों में गार्डस की नौकरी कर रहे है । यह भी सच्चाई है कि ज़्यादा तर सरकारी और ग़ैरसरकारी दफ़्तरों में सुरक्षा की ज़िम्मेदारी अब निजी सुरक्षा एजेंसियों के हवाले है जो इन्हें बहुत कम वेतन देते है । इन सुरक्षा एजेंसियों में ड्यूटी 12 घंटे की होती हैं और अवकाश आदि की कोई सुविधा भी नहीं होती । युवाओं द्वारा अग्नि वीर योजना का विरोध का यही कारण है ।
मेरा मानना है कि देश की सीमाओं की रक्षा करने वाले और हर वक़्त अपनी जान जोखिम में डालने वाले युवाओं के भविष्य की ज़िम्मेदारी लेने से मुँह नहीं मोड़ा जा सकता और देश को इनकी ज़िम्मेदारी लेनी ही होगी वरना एक ऐसे जवान से जो अपने आने वाले भविष्य को लेकर चिंतित है वह कैसे अपनी ड्यूटी पूरे समर्पण व जोश के साथ कर सकेगा । अग्नि वीर योजना के वर्तमान स्वरूप को देखते हुऐ इसे युवाओं के हित में नहीं माना जा सकता ।
मैं उम्मीद करता हूँ कि सरकार सेना की ज़रूरतों व युवाओं के भविष्य दोनों का ध्यान में रखते हुए कोई न कोई रास्ता ज़रूर निकालेगी ताकि हमारे देश की सेना की आन बान व शान बनी रह सके।