तमिलनाडु में अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (अन्नाद्रमुक) अपने अस्तित्व के संकट का सामना कर रही है। वर्ष 1972 में एमजी रामचंद्रन द्वारा स्थापित पार्टी, जिसे बाद में शक्तिशाली महिला नेत्री जयललिता ने कुशलतापूर्वक आगे बढ़ाया। जयललिता के निधन के बाद वह तीन गुटों में विभाजित हो गई है और वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में सभी 39 सीटें हार गई। जयललिता के निधन के बाद एडापडी पलानीस्वामी ही वह नेता हैं, जिन्होंने चार वर्षों तक तमिलनाडु में शासन किया था। दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने अन्नाद्रमुक के अधिकांश कार्यकर्ताओं, निर्वाचित जनप्रतिनिधियों और विशेष रूप से दो पत्तियों वाले प्रसिद्ध चुनाव चिह्न को बरकरार रखा।जातिगत राजनीति से तंग आकर अधिकांश कार्यकर्ता अब अन्नाद्रमुक से पलायन कर रहे हैं। वर्ष 2021 के विधानसभा चुनाव, 2024 के लोकसभा चुनाव और हाल ही में जुलाई में संपन्न विक्रवंडी विधानसभा उपचुनाव के बाद यह पलायन अन्नाद्रमुक के लिए अस्तित्व के संकट की चुनौती के रूप में आया है।
एडापडी पलानीस्वामी ने हाल ही में चेन्नई में जिलावार पार्टी कार्यकर्ताओं की बैठक बुलाई, जिसमें चुनावी हार पर उनके विचार सुने गए। वर्ष 2021 के राज्य विधानसभा चुनाव के बाद जो लोग एडापडी पलानीस्वामी से अलग हो गए थे, वे अब अलग-अलग गुटों का विलय चाहते हैं। इनमें शामिल हैं, तमिलनाडु में थेवर जाति के कद्दावर नेता ओ पन्नीरसेल्वम, उसी जाति समूह के नेता टीटीवी दिनाकरण, जो एक राजनीतिक संगठन अम्मा मक्कल मुनेत्र कड़गम के प्रमुख हैं और थेवर जाति की ही शशिकला।
एडापडी पलानीस्वामी राज्य में ताकतवर गौंडर जाति से ताल्लुक रखते हैं। वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में एडापडी समूह को भारी झटका लगा, क्योंकि इसके कई उम्मीदवार अपनी जमानत भी नहीं बचा सके। लगातार दस चुनावों में, चाहे वह नगर निगम का हो, या विधानसभा का हो या लोकसभा का, एडापडी पलानीस्वामी एमके स्टालिन के नेतृत्व वाली सत्तारूढ़ द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (द्रमुक) से हार गए हैं।
तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक गौंडर और थेवर जातियों तक सिमट कर रह गई है। इसलिए कार्यकर्ता इन गुटों में विलय चाहते हैं। राज्य में अन्नाद्रमुक का जनाधार सिमट गया है। उसकी ज्यादा बड़ी जगह या तो सत्तारूढ़ द्रमुक या फिर भारतीय जनता पार्टी द्वारा छीनी जा रही है। लोकसभा चुनाव के मतदान का पैटर्न इस बात का स्पष्ट संकेत है कि अन्नाद्रमुक के मतदाता दूसरे दलों का रुख कर रहे हैं। एमजीआर और जयललिता के वफादार पार्टी कार्यकर्ताओं ने हाल ही में अन्नाद्रमुक के अलग-अलग गुटों के विलय के लिए संपर्क करने के उद्देश्य से एक शांति समिति बनाई है। पार्टी कार्यकर्ता द्रमुक से मुकाबला करने के लिए एक मजबूत नेतृत्व चाहते हैं, जो अन्नाद्रमुक का कट्टर विरोधी है। लेकिन सभी चारों गुट अलग-अलग समय पर द्रविड़ संस्कृति के समर्थन का एक ही राग अलापते हैं और प्रकारांतर से एमके स्टालिन की मदद करते हैं।
तमिलनाडु में 1967 से द्रविड़ पार्टियां विभाजित हैं और उनके आठ संगठन हैं। ये सभी हिंदुत्व और भाजपा के वर्चस्व का विरोध करते हैं। एमजीआर एवं जयललिता ही तमिलनाडु में नरम हिंदुत्व की विचारधारा को लेकर आए थे। इसी वजह से जयललिता ने राम मंदिर और कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का पुरजोर समर्थन किया था। राजनीति की यह भिन्न वैचारिक शैली, जो द्रविड़ विचारधारा के विरुद्ध है, दो शक्तिशाली जातियों-गौंडर और थेवर के दो प्रमुख नेताओं एडपाडी पलानीस्वामी और ओ पन्नीरसेल्वम की मदद कर रही है। लेकिन अन्नाद्रमुक के समर्थक और कार्यकर्ता एमके स्टालिन और द्रमुक से राजनीतिक रूप से उसी तरह लड़ना चाहते हैं, जिस तरह जयललिता लड़ती थीं।
जातिगत राजनीति से तंग आकर अधिकांश कार्यकर्ता अब अन्नाद्रमुक से पलायन कर रहे हैं। वर्ष 2021 के विधानसभा चुनाव, 2024 के लोकसभा चुनाव और हाल ही में जुलाई में संपन्न विक्रवंडी विधानसभा उपचुनाव के बाद यह पलायन अन्नाद्रमुक के लिए अस्तित्व के संकट की चुनौती के रूप में आया है। गौंडर खेमा भाजपा से बाहर चला गया। लेकिन थेवर समूह भाजपा के साथ बना रहा। इसलिए अन्नाद्रमुक न केवल विचारधाराओं के आंतरिक संकट का सामना कर रही है, बल्कि जातिगत वर्चस्व का भी सामना कर रही है। हर कोई एक-दूसरे पर जातिगत वर्चस्व का आरोप लगा रहा है।
तमिलनाडु में वर्ष 2026 में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। अगर एमजीआर के कुछ वफादारों की शांति समिति सफल नहीं होती है, तो कार्यकर्ताओं में और विभाजन का खतरा है, और एडापडी पलानीस्वामी खेमे से पांचवें विभाजन की आशंका है। एडापडी खेमे के भीतर से एसडीपीआई और एनटीके (नाम तमिलर काच्ची) जैसी छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन करने की आवाजें सुनी जा रही हैं, जिसका नेतृत्व सीमन कर रहे हैं। सीमन गुट भी द्रविड़ विचारधारा से है। सीमन तमिल ईलम मुद्दे का कट्टर समर्थक है और खुद को लिट्टे नेता प्रभाकरण की तरह पेश करता है। क्या एडापडी को सीमन के एनटीके के साथ जाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा?
अन्नाद्रमक का भविष्य क्या है? अगर बिना किसी पूर्वाग्रह के राजनीतिक नजरिये से विश्लेषण किया जाए, तो अन्नाद्रमुक का भविष्य अंधकारमय है। सभी अलग-अलग गुटों द्वारा आपस में विलय नहीं किया गया, तो अन्नाद्रमुक में और विभाजन हो सकता है। इस बार यह विभाजन खुले तौर पर द्रमुक या भाजपा के पक्ष में होगा।
दुर्भाग्य से अन्नाद्रमुक के विभाजन के दौर में कांग्रेस ने प्रयास किया था, लेकिन उसका द्रमुक के साथ इतना मजबूत गठबंधन है कि कांग्रेस ने एडापडी पलानीस्वामी से दूरी बना ली। इसलिए कांग्रेस अन्नाद्रमुक के विभाजन से अलग-थलग है। क्या अन्नाद्रमुक के विभाजन में नई दिल्ली का हाथ है? इसका जवाब स्पष्ट रूप से हां है। जयललिता के निधन के तुरंत बाद केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने एक रणनीतिक प्रस्ताव दिया था, जिसे एडापडी पलानीस्वामी ने नहीं माना।
यदि भाजपा के प्रस्ताव को लोकसभा चुनाव में मंजूर कर लिया गया होता, तो द्रमुक को राज्य में सभी सीटें नहीं मिलतीं और एडापडी के नेतृत्व में अन्नाद्रमुक राजग सरकार के केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होती। वर्ष 2026 का राज्य विधानसभा चुनाव महत्वपूर्ण है। अगर एडापडी पलानीस्वामी फिर से अड़े रहे, तो एमके स्टालिन के नेतृत्व में द्रमुक के लिए 2026 का राज्य विधानसभा चुनाव जीतना आसान होगा। इससे डॉ. अंबुमणि रामदास के पीएमके, जीके वासन के तमिल मनीला कांग्रेस, सीमन के एनटीके जैसे बाकी आठ छोटे दलों में और भी अधिक अव्यवस्था होगी।