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गलत सिद्ध हुए हैं मोदी सरकार के ये तमाम नारे

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मुनेश त्यागी

      केन्द्र सरकार नौ साल पहले “सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास” का नारा देकर सत्ता में आई थी। लोगों ने प्रधानमंत्री मोदी के इन नए नारों पर ऐतबार किया, उनका साथ दिया और उन्हें सत्ता में बैठा दिया। मगर आज हम देख रहे हैं कि मोदी सरकार के ये तमाम नारे एकदम गलत सिद्ध हुए हैं और अधिकांश लोग इन्हें जुमले बताने लगे हैं।

      केंद्र सरकार ने पिछले नौ सालों में इस देश की अधिकांश जनता,,,, किसानों, मजदूरों, नौजवानों, छात्रों और महिलाओं की बेहतरी के लिए लगभग कोई काम नहीं किया है। उसने सिर्फ और सिर्फ देश और दुनिया के बड़े पूंजीपतियों की तिजोरियां भरने का काम किया है, उनकी धन दौलत में हजारों हजार गुना वृद्धि की है। मोदी सरकार तीन साल पहले किसानों को पूंजिपतियों का गुलाम बनाने के लिए तीन काले कानून लाई थी जिनका किसानों ने डटकर मुकाबला किया और 700 से ज्यादा किसानों ने अपने प्राणों की आहुति दी और अंततः इन सरकार को इन तीनों काले कृषि कानूनों को वापस करने पर  मजबूर कर दिया था।

     इसी के साथ साथ सरकार चोरी-छिपे मजदूरों को आधुनिक गुलाम बनाने के लिए चार श्रम संगीताएं लेकर आई है जिसमें मजदूरों से उनके तमाम अधिकार छीन लिए गए हैं, स्थाई नौकरी का अधिकार छीन लिया गया है, यूनियन बनाने का अधिकार लगभग खत्म कर दिया गया है और स्थाई नौकरी की जगह अस्थाई नौकरी और ठेकेदारी प्रथा को लागू कर दिया है। यह भी बड़ी अचंभे की बात है कि इन मजदूर विरोधी कानूनों को लाने से पहले सरकार ने भारत में मौजूद दसियों लेबर यूनियनों से और फेडरेशनों से कोई सलाह मशविरा नहीं किया, कोई बातचीत नहीं की, जिसे लेकर अधिकांश मजदूर, उनके नेता और श्रम प्रतिनिधि एकदम आश्चर्यचकित और सकते हैं। उनमें से अधिकांश का कहना है कि जो सरकार सबका साथ सबका विकास का नारा देकर सरकार में आई थी, अब वह कुछ के विकास और अधिकांश के विनाश पर क्यों उतर आई है?

      मोदी सरकार ने जनता की बुनियादी समस्याओं रोटी कपड़ा मकान शिक्षा स्वास्थ्य रोजगार महंगाई प्रदूषण और लगातार बढ़ते अन्याय को रोकने का कोई काम नहीं किया है। जनता अब उनकी नीतियों को समझ गई है और मोदी सरकार का विरोध करने लगी है। उससे सवाल पूछने लगी है, उसकी जन विरोधी नीतियों पर सवाल खड़े करने लगी है। जनता की इस प्रतिक्रिया को लेकर, सरकार असमंजस में है और उसमें बेचैनी बढ़ती जा रही है।

      और सरकार जिस तरह से भारत के संविधान पर हमला कर रही है, उसके नीति निर्देशक तत्वों और बुनियादी प्रावधानों पर हमले कर रही है और उनको जनता के खिलाफ इस्तेमाल कर रही है, जिस तरह से नौजवानों में बेरोजगारी बढ़ रही है, जिस तरह से शिक्षा और स्वास्थ्य को लेकर जनता बेहद परेशान है, जिस तरह से आरक्षण के प्रावधानों को खत्म कर दिया गया है और सरकारी नौकरियों को लगभग खत्म कर दिया गया है और जिस तरह से किसानों की लगातार मांग करने के बावजूद भी उनकी फसलों का वाजिब दाम नहीं दिया जा रहा है, इस सबको लेकर जनता के गरीब तबकों समेत, एससी एसटी और ओबीसी में अपनी शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार को लेकर बेचैनी बढ़ रही है और वह अब सरकार के खिलाफ विपक्षी पाले में जाने का मूड बना रही है।

       अपनी इन नाकामियों को लेकर सरकार तरह-तरह के कदम उठा रही है। अब सरकार ने नई चाल चली है कि जनता के विरोध को रोकने के लिए, उसे गलत दिशा देने के लिए, उसने जनता के बीच नफरत की, हिंदू मुस्लिम की नफरत की मुहिम चलानी शुरू कर दी है और इस प्रकार वह जनता का भाईचारा और साम्प्रदायिक सौहार्द तोड़ने पर आमादा हो गई है। अब वह गुजरात की सांप्रदायिक मुहिम को देश के दूसरे हिस्सों में चलना चाहती है। मणिपुर, नूंह और हरियाणा के दूसरे कई शहरों में सांप्रदायिक उन्माद की घटनाएं बढ़ती जा रही है।

       सरकार, कारपोरेट और हिंदुत्ववादी ताकतों के गठजोड़ की वजह से, हमारे देश की कौमी एकता को, आजादी को, साझी संस्कृति को, साझी इबादत को, साझी सियासत को, साझी विरासत को, गंगा जमुनी तहजीब को, संविधान को और कानून के शासन को खतरा पैदा हो गया है। इन्होंने मिलकर हिंदुस्तानियत और जनता के आपसी मेलजोल, आपसी प्यार मोहब्बत और आपसी भाईचारे पर लगातार हमला किया हुआ है।

     अब यहीं पर हमारा काम है कि हम सरकार की जन विरोधी नीतियों पर चर्चा करें, एक साझी समझ और जनता के हितों को आगे बढ़ाने वाला, एक साझा न्यूनतम कार्यक्रम तैयार करें और इस साझे कार्यक्रम को लेकर जनता के बीच में जाएं। जनता को सरकार की जनविरोधी नीतियों के बारे में बताएं और सारी जनता,,,, किसानों, मजदूरों, छात्रों, नौजवानों, महिलाओं, एससी, एसटी, ओबीसी और सारे गरीबों के बीच भाईचारा कायम करने की हर मुमकिन कोशिश करें।

      इस भाईचारे की मुहिम को विस्तार देने और कामयाब बनाने के लिए हम जागरुक नागरिकों को, अपने शहर, गांव, मौहल्ले और समाज के समस्त धर्मनिरपेक्ष जहन और जनता का कल्याण करने वाले तमाम लोगों को एकजुट करना पड़ेगा, उनको ढूंढ ढूंढ कर अपने साथ लाना पड़ेगा। इसके लिए हमें किसानों, मजदूरों, छात्रों, नौजवानों के साथ-साथ बुद्धिजीवियों, लेखकों, कवियों, वकीलों, रिटायर्ड जजों, अध्यापकों, पत्रकारों और मीडिया कर्मियों को भी साथ लेना होगा, उनको एकजुट करना होगा और उन्हें बड़े पैमाने पर अपने साथ जोड़कर, भाईचारे की इस ज़रुरी मुहिम को मजबूती के साथ आगे बढ़ाना होगा।

       इसी के साथ-साथ सरकार जो जनविरोधी काम कर रही है, झूठ बोल रही है, लोगों को धोखा दे रही है और लोगों की एकता तोड़ने के जन विरोधी, संविधान विरोधी और कानून विरोधी हरकतों पर उतर आई है, उसके बारे में भी जनता को अवगत कराना होगा। उसे सरकार के जनविरोधी कारनामों की जानकारी देनी होगी और उसे देश और समाज को बचाने की मुहिम में अपने साथ करना होगा।

      इसी के साथ-साथ हमें भारत की साझी संस्कृति और विरासत के तथ्यों को और इतिहास को, जनता के बीच में ले जाना होगा और उसे दिखाना और बताना होगा कि यहां पर, इस देश के हिंदू और मुसलमानों ने इस समाज को आगे बढ़ाने में मिलजुल कर काम किया है, यहां पर कभी भी धर्म युद्ध नहीं हुए हैं और उसे यह भी बताना होगा कि यहां पर सरकार जनता की एकता को तोड़ने के लिए, उसके संयुक्त अभियान को कमजोर करने के लिए, जान पूछ कर जनता में हिंदू मुस्लिम ध्रुवीकरण की नफरत की मुहिम चला रही है जो ऐतिहासिक तथ्यों के खिलाफ है।

     यही हमारा आज का मुख्य काम है। इसी भाईचारे को बनाए रखने के लिए और विस्तार देने के लिए हमें अपने जन-मुक्तिकारी कार्यक्रम को जनता के बीच ले जाकर भाईचारे की मुहिम चलानी है, जनता के बीच आपसी भाईचारे और सांप्रदायिक सद्भाव और आपसी एकजुट को मजबूत करना है और इस मुहिम को समाज के कोने-कोने में ले जाना है। आज भारत को बचाने की यही सबसे बड़ी मुहिम है।

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