अग्नि आलोक
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‘अल्लाह_हू_अकबर’ ध्यानयोग- तंत्र की दृष्टि में 

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    (इस्लाम योग-तंत्र आधारित दर्शन। अनुयायियों ने राजनैतिक स्वार्थवश दुरुपयोग कर कलंकित किया।)

         डॉ. विकास मानव 

इस्लाम के नारा ए तकबीर (स्तुति), “अल्लाह हू अकबर” पर यहां विमर्श करते हैं योग-तंत्र की दृष्टि से।

अल्लाह:

इसका पदच्छेद होगा~

                              अ + ल् + ल् + आ + ह

–  अ है पूर्व काल का द्योतक,

–  ल् है मूलाधार चक्र, पृथ्वी तत्त्व, का बीज,

–  आ है अ का दीर्घ काल स्वर और 

–  ह ‌है विसर्ग, कर्मसंज्ञक तथा विशुद्धि चक्र, आकाश तत्त्व का द्योतक। विसर्ग ह् (:) में अ लगा कर इसे स्थिर किया गया है।

अर्थ हुआ, पूर्व काल में, सृष्टि के आदि से, मूलाधार चक्र पर ध्यान केंद्रित करने से, दीर्घ समय में, आकाश तत्त्व का बोध होता है विशुद्धि चक्र, कंठ ‌में और वहां जो भी प्रार्थना की जाती है, वह क्रिया में परिवर्तित होती है‌ भू लोक में।

    मुख्य योगासन है वज्रासन इस्लाम में, अहोरात्र में पांच बार नमाज ‌अता करने के लिए। इसके दीर्घ काल तक अनुशीलन करने से मूलाधार चक्र से विशुद्धि चक्र ‌तक चेतना का विकास होना‌ संभव है।

वज्र इन्द्र का अस्त्र है। इसलिए इस्लाम मूर्ति पूजा का विरोध करता है और इन्द्र के अस्त्र को‌ वज्रासन से जाग्रत करने की उपासना का अनुमोदन करता है। इन्द्र दश इन्द्रियों का स्वामी है, पांच ज्ञानेन्द्रियां और पांच कर्मेंद्रियां। सभी मनुष्यों में मन रूपी सूक्ष्म तत्त्व ही इन्द्र है।

    लेकिन जो इस विधा को नहीं मानते, उन्हें प्रताड़ित करना, बलात्कार करना, जबरन धर्म परिवर्तन कराना, हत्या करना, अनाप शनाप जजिया कर ‌लगाना, आदि से इस्लाम बदनाम हो गया है। यह अतिवादी और उग्रवादी संगठनों के रूप में अभिव्यक्त हो गया है विकृत राजनैतिक कारणों और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं से।

     अन्यथा, इस्लाम आध्यात्मिक योग-तंत्र की एक शाखा मात्र ही है। इस्लाम की मान्यता है कि पैगम्बर मुहम्मद अंतिम नबी (अल्लाह का दूत) हैं और उन्होंने स्वयं किसी नवीन आध्यात्मिक विधा का प्रवर्तन नहीं किया है।‌ पूर्वकाल में भी हुए और भविष्य में भी अनेक नबी होंगे जिन्हें अल्लाह भेजेगा मानव कल्याण के लिए।

  भारतीय योग-तंत्र मुंड में स्थित सहस्रार – आज्ञा चक्र तक की आध्यात्मिक यात्रा के बोध का‌ वर्णन करता है, जबकि इस्लाम केवल विशुद्धि चक्र कंठ तक का ही।

हू :

–  हू है आदेशात्मक, विशुद्धि चक्र में रुद्र ग्रन्थि के वेध के लिए।

*  यहां हू पर अनुस्वार नहीं लगा है। इससे प्रतीत होता है कि इस्लाम में अनुस्वर बिन्दु का बोध नहीं है। क्योंकि बिन्दु अनहदनाद का द्योतक है और विशुद्धि चक्र से ऊपर मुंड में प्रकट होता है, आज्ञा चक्र – सहस्रार में।

–  यह‌ बिन्दु, अनुस्वार, ही ओंकार का प्लुत स्वर है, अर्धमात्रा है, जो तीनों गुणों की साम्यावस्था, निर्गुण ब्रह्म, का द्योतक भी है और यह लुप्त है इस्लामिक आध्यात्मिक विचारधारा में।

‘अकबर’ का पदच्छेद है~

                           अ + क (ख) + ब (व) + र,

–  अ है पूर्व काल का द्योतक,

–  क वर्ण को ख वर्ण के अर्थ में भी उपयोग किया जाता है। ख वर्ण है आकाश तत्त्व, अंतरिक्ष का द्योतक।

–  व है स्वाधिष्ठान चक्र का बीज, जल तत्त्व, भावनाओं का द्योतक।

–  र है अग्नि तत्त्व, मणिपुर चक्र, प्रकट करने के उद्देश्य से।

अर्थ हुआ :

   आदिकाल (अ) से ही विशुद्धि चक्र (ह), आकाश तत्त्व (ख) में जो भी भाव (व) अग्नि (र) के साथ व्यक्त किया जाता है, वह भू धरा पर फलित हो जाता है।

     यह “अल्लाह हु अकबर” की योग-तंत्र की दृष्टि से व्याख्या हुई है। इसे साधारण रूप से कह दिया गया है कि अल्लाह ही महान है (इसके सिवा अन्य कोई भी नहीं)।

अर्थात्, यह योग-तंत्र की क्रिया, अल्लाह ही महान ‌है, जो चेतना को मूलाधार चक्र से विशुद्धि चक्र पर्यन्त ले जाती है, अंतर्दृष्टि का विकास करके।

भारतीय वैदिक सभ्यता और संस्कृति का योग-तंत्र इससे उत्तम है, अनुस्वार के कारण। इसमें अपरा ‌और परा भेद से दो विद्याएं हैं।

श्रीमद्भगवद्गीता (7/4-5) के अनुसार :

भूमिरापोऽनलो वायु: खं मनो बुद्धिरेव च।

   अहंकार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा: ॥4॥

     अपरेयमितस्त्वन्यां प्रकृतिं यान्ति मे पराम्।

  जीवभूतां महाबाहो ययेदं धार्यते जगत् ॥5॥

      भूमि, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार, यह आठ प्रकार की प्रकृति, अपरा है और इनसे परे जीव तथा पंचमहाभूतों को मैं (श्री भगवान्) धारण करता हूं अपनी परा शक्ति से।

    यहां स्पष्ट है कि इस्लाम अपरा प्रकृति के अंतर्गत आता है और भारतीय वैदिक योग-तंत्र परा शक्ति, आज्ञा चक्र – सहस्रार, से सृष्टि को, प्रकृति को, धारण करने की विवेचना करता है।

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