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आश्चर्यजनक है लेकिन असत्य हो?

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शशिकांत गुप्ते

सीतारामजी ने एक कॉमेडी शो के लिए स्क्रिप्ट लिखी है।
इस स्पष्टीकरण के साथ कि,
यह एकदम काल्पनिक कहानी है। इस कहानी का किसी व्यक्ति विशेष, या किसी संस्था से कोई संबंध नहीं है।
भगवान नाम होने कोई सच में भगवान नहीं हो जाता है।
कोई भगवंत भी हो सकत हैं और गुणवंत भी हो सकता है।
देश का “मान” रखने के लिए एक सूबे के मुखिया बनने के साथ ही शपथ ली थी, सोमरस का रसास्वादन कभी नहीं करेंगे।
ये महाशय देश की सबसे बड़ी पंचायत में गलती से थोड़ी चख कर चले गए थे। सम्भवतः तब ही से इन्होंने तौबा कर ली होगी।
अब नहीं कभी नहीं। “देश में तो बिलकुल नहीं।”
लगता है जर्मनी में जो कुछ हुआ वह गलत खबर है। खबर गलत ही होना चाहिए।
मुझे इल्जाम न देना
कदम यूँ ही लड़खड़ाए
जमाना ये समझा कि हम पी के आए

काश जो कुछ हुआ वह फेंक न्यूज ही हो?
यह तो सिर्फ कहानी है। ऐसी कल्पनातीत घटना पर प्रख्यात शायर अकबर इलाहबादीजी की एक गज़ल के शेर याद आतें हैं।
हंगामा है क्यों बरपा, थोड़ी सी जो पी ली है
डाका तो नहीं डाला चोरी तो नहीं की है
ना तज़ुर्बाकारी से, वाइज़ की ये बातें है
इस रंग को क्या जाने, पूछो तो कभी पी

(वाइज़ का मतलब उपदेशक)
नशा कोई भी मानव के दिमाग़ पर चढ़ता है। हो सकता है इन महाशय को जर्मनी में थोड़ा सुरूर हुआ होगा। बुनियादी तौर पर ये महाशय कॉमेडियन ही है। इनके साथ ही जर्मनी में कॉमेडी हो गई होगी? इनका सुरूर उतरा या नहीं यह प्रश्न तो अलग रह गया लेकिन इन्हें विमान से उतार दिया गया? इस तरह की ग़लत खबर जरूरी वाइरल हो गई।
विरोधियों ने व्यंग्यात्मक रूप से वक्तव्य दिया। जनाब ने देश का ‘मान’ रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी?
अहम प्रश्न तो यह है कि, इन्हें सूबे के मुखिया पद पर विराजमान जिन्होंने किया, वे तो हाथों झाड़ू थामे हुए ही हैं। झाड़ू कचरा साफ करती है। झाडू नशा मुक्त कर नहीं सकती है। झाड़ू के बलपर ही वे एक सियासी दल के मुखिया बने हुए हैं। सम्भवतः आजीवन मुखिया बने ही रहेंगे। कारण इन्हें लोकतंत्र पर पूर्ण विश्वास है?
ये बहुत उदारमना हैं, स्वयं केंद्र के अधीनस्थ सूबे के मुखिया है, लेकिन अपने से जुनियर को बड़े सूबे का मुखिया बनाया है।
ये महाशय हैं,अपनी पहचान सबसे अलग रखतें हैं। महत्वाकांक्षी भी बहुत है। देश की एक सौ पैंतीस करोड़ जनता से गठबंधन करने की योजना बना रहे हैं। मुफ्त पानी मुफ्त बिजली भी दे ही रहें हैं। राजस्व की आय में वृद्धि के लिए इन्होंने हाला को लोगों के हलक में सुलभ रीति से पहुँचाने के लिए नीति बनाई। विरोधियों को समझ में नहीं आई।
विरोधियों ने हाला की नीति को लेकर सूबे में हाहाकार मचा दिया।
जो लोग हाला को लोगों हलक तक सस्ते दामों में घर तक पहुँचाने की नीति बनाएंगे। उनके अपने सदस्य नहीं पिएंगे यह तो असम्भव है।
सम्भवतः जर्मनी में जो कुछ हुआ वह यही तो सिद्ध करता है। स्तुति योग्य कार्य की निंदा नहीं करनी चाहिए।
झाड़ू थामे मुखिया स्वयं को सबसे अलग दिखाने का यह एक तरीका है। देश के सभी समाचार पत्रों में बेशकीमती विज्ञापनों की भरमार करना।
देश की सबसे बड़ी पंचायत में भलेही अपना कोई एक भी सदस्य न हो लेकिन प्रधान सेवक बनने के लिए प्रयत्नशील रहना भी अपने आप में अलग पहचान है।
बात निकलती है तो दूर तलक जाती है। अभी पश्चिमी सूबे में दो दो हाथ करने है। देखना है झाड़ू में कितना है दम।
नाई नाई कितने बाल … वाली कहावत सिद्ध होगी तब सब पता चल जाएगा।
देखना है, भगवंत जो गुणवंत भी है, उनका मान पंजाब में बना रहता है या नहीं?

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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