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शिवपाल के सामने गजब धर्मसंकट

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कहावत है कि राजनीति और किक्रेट में अद्भुत समानता होती है। मैच की आखिरी बॉल तक कुछ नहीं कहा जा सकता। कम से कम यूपी की राजनीति के बारे में यह सच साबित होता दिख रहा है। पहले तो मैनपुरी लोकसभा सीट से तेज प्रताप यादव की जगह अचानक डिंपल यादव (Dimple Yadav) को सपा का उम्‍मीदवार घोषित हो जाना, जबकि तेज प्रताप का नाम लगभग तय माना जा रहा था। इसके बाद डिंपल यादव का नामांकन हुआ, उसमें यादव परिवार के सभी सदस्‍य आए, शिवपाल यादव (Shivpal Yadav) के सिवाय। यह स्‍वाभाविक भी था, क्‍योंकि शिवपाल की पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी से फिलहाल कोई गठबंधन नहीं है। खुद शिवपाल से जब यह सवाल पूछा गया कि क्‍या आप डिंपल के प्रचार के लिए मैनपुरी जाएंगे तो उन्‍होंने झल्‍लाकर इतना ही कहा, पता नहीं आपने हमसे यह सवाल क्‍यों कर लिया। लेकिन मंगलवार शाम, खुद समाजवादी पार्टी की ओर से जारी स्‍टार प्रचारकों की लिस्‍ट में शिवपाल यादव का नाम है।

मुलायम सिंह यादव के निधन से पहले राष्‍ट्रपति चुनाव के समय अखिलेश और शिवपाल के बीच संबंध कड़वाहट से भरे थे। हालांकि, उस समय तक दोनों पार्टियां चुनाव पूर्व हुए गठबंधन का हिस्‍सा थीं। कड़वाहट इतनी थी कि सपा की ओर से लेटर जारी करके शिवपाल के लिए कहा गया कि ‘आपको लगता है जहां सम्‍मान मिलेगा वहां जा सकते हैं।’
इसके बाद समाजवादी पार्टी के संरक्षक, संस्‍थापक मुलायम सिंह यादव गंभीर रूप से बीमार हुए। बाद में 10 अक्‍टूबर को उनका निधन हो गया। निधन के समय और उसके बाद अंतिम संस्‍कार तक चाचा और भतीजे यानि शिवपाल और अखिलेश के बीच संबंधों में कुछ नरमी दिखी। लगा कि यादव कुनबा इस आघात के बाद सबक सीखकर एक हो जाएगा। लेकिन मैनपुरी उपचुनाव के पहले फिर शिवपाल भड़क उठे। गोरखपुर में एक सभा में उन्‍होंने खुलकर कहा, जो परिवार का नहीं हो वह कभी सफल नहीं हो सकता। साथ ही यह भी जोड़ा कि अखिलेश यादव चापलूसों से घिरे हैं।

दरअसल, उस दौरान दबी जुबान से यह भी चर्चा चल रही थी कि मैनपुरी सीट से मुलायम सिंह यादव की विरासत के वारिस के रूप में शायद शिवपाल यादव को टिकट मिल जाए। लेकिन इस पर ज्‍यादा कुछ हो न सका और अंतत: अखिलेश ने अपनी पत्‍नी डिंपल यादव को ही उम्‍मीदवार बना दिया। राजनीतिक जानकारों का कहना था कि अखिलेश ने इस तरह मुलायम की विरासत पर एकाधिकार सुनिश्चित कर लिया।

अब आया डिंपल के मैनपुरी से नामांकन का दिन। इस दिन अखिलेश के दूसरे चाचा रामगोपाल यादव आए, तेज प्रताप यादव आए लेकिन न शिवपाल आए और न उनके बेटे आदित्‍य यादव आए। चर्चा थी कि शिवपाल अपनी बहू के नामांकन में जरूर आएंगे। जब मीडिया ने शिवपाल से पूछा कि वह अपनी बहू के प्रचार में मैनपुरी जाएंगे तो उनका कहना था कि सपा के इस फैसले की जानकारी उन्‍हें खुद मीडिया से मिली है।

वहीं, सपा की ओर से लगातार कहा जाता रहा कि भले ही शिवपाल यादव नामांकन में नहीं आए लेकिन वह चुनाव प्रचार में जरूर आएंगे। अखिलेश यादव के अलावा, रामगोपाल और मुलायम सिंह यादव के भाई अभयराम यादव ने भी यही कहा। रामगोपाल बोले शिवपाल नामांकन में आएं ना आएं कोई फर्क नहीं पड़ता। पूरा परिवार एक साथ है, एकजुट है। रामगोपाल ने तो यहां तक दावा किया कि डिंपल को मैनपुरी से उम्‍मीदवार शिवपाल यादव की सहमति से बनाया गया है।

शिवपाल यादव के धर्मसंकट को बीजेपी ने भांपते हुए उसे और मुश्किल कर दिया। मंगलवार को बीजेपी ने मैनपुरी लोकसभा सीट पर रघुराज शाक्य को चुनावी मैदान में उतार दिया। रघुराज शाक्य प्रगतिशील समाजवादी पार्टी से जुड़े रहे हैं। विशेषकर, शिवपाल यादव के करीबियों में उनका नाम गिना जाता रहा है।
उन्हें पिछले दिनों डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने भारतीय जनता पार्टी में शामिल कराया था।

भले ही मैनपुरी से डिंपल यादव को टिकट देने में शिवपाल यादव की सहमति न रही हो लेकिन अगर वह उनके प्रचार में मैनपुरी नहीं जाते हैं तो उनकी राजनीतिक छवि को ही नुकसान पहुंचने का अंदेशा है। मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद जनता की सहानुभूति उनकी बहू डिंपल की ओर होगी, ऐसे में शिवपाल यादव न तो जनता की नाराजगी मोल लेना चाहेंगे और न ही यह संदेश देना चाहेंगे कि टिकट के मुद्दे पर उन्‍होंने ऐसे मौके पर परिवार को छोड़ दिया।

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