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वक्फ अधिनियम में संशोधन- वोट की राजनीति परवान चढ़ी…!

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ओमप्रकाश मेहता

भारत में आजादी के बाद से ही आमतौर पर यह माना जाता रहा है कि देश का मुस्लिम मतदाता कांग्रेस के साथ है, यद्यपि इसके धारणा के पीछे कई कारण है, किंतु इसका मुख्य कारण धर्म से जुड़ा है और हमारे यहां धर्मान्धता की स्थिति क्या है? यह किसी से छुपा नही है, अब यह धारणा वोट की राजनीति में चरम पर है, आज सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी जी-जान से देश के मुस्लिम वोटर को अपने साथ जोड़ने में जुट गई है, जिसका ताजा उदाहरण वक्फ अधिनियम में संशोधन है, अब इस सर्वोच्च प्रयास में भाजपा कहां तक सफलता प्राप्त करती है? यह तो भविष्य के गर्भ में है, किंतु प्रयासों में कोई कमी परिलक्षित नही हो रही है,

यद्यपि फिलहाल चुनाव की बेला नही है, इस साल के अंत में बिहार, फिर पश्चिम बंगाल और फिर उसके बाद उत्तर प्रदेश मंे विधानसभा चुनाव होना है, लेकिन देश में सत्तारूढ़ भाजपा के ईरादें काफी ऊँचे है और वह चार साल बाद होने वाले लोकसभा चुनावों के पूर्व देश में कई राजनीतिक चुनावी परिवर्तन के संकेत भी दे रही है और इस समय की सबसे अहम् राजनीतिक चर्चा यह है कि भाजपा अब येन-केन-प्रकारेण कांग्रेस के पारपम्परिक मुस्लिम वोट को अपनी झोली में डालना चाहती है। जिसका ताजा उदाहरण वक्फ अधिनियम में संशोधन है।\

भाजपा की धारणा है कि मौजूदा वक्फ कानून के चलते वक्फ बोर्ड केवल मनमाने अधिकारों से ही लैस नही है, बल्कि उसकी भ्रष्ट कार्यप्रणाली के चलते वक्फ सम्पत्तियों का बड़े पैमाने पर दुरूपयोग भी हो रहा है और इसी कारण लाखों करोड़ रूपए की उसकी सम्पत्तियों का कोई लाभ निर्धन मुसलमानों को नही मिल पा रहा है, ऐसे मुस्लिम निर्धन परिवारों के बारे में जानना कठिन है, जिन्हें वक्फ बोर्ड से कोई किसी तरह की सहायता मिली हो, अब ऐसे में सबसे अहम् सवाल यही है कि आखिर ऐसे किसी कानून में कोई संशोधन-परिवर्तन क्यों नही होना चाहिए, जो अपने मूल उद्देश्यों को प्राप्त करने में अब तक नाकाम रहा हो, होना तो यह चाहिए था कि विपक्षी दल ऐसे सुझाव लेकर सरकार के सामने जाते जिससे वक्फ बोर्ड की कार्यप्रणाली सुधरती लेकिन उनके नेताओं ने कुल मिलाकर इससे इंकार ही किया और उल्टे विपक्षी नेताओं ने इस मसले पर हल्ला-हंगामा ही किया, समिति का कार्यकाल भी बढ़ाया गया लेकिन विपक्षी नेता इसी कुतर्क को दोहराते रहे कि वक्फ कानून में किसी भी तरह के संशोधन की जरूरत नही है। उनका यही तर्क तब भी था जब वक्फ बोर्ड की मनमानी के अनेक चौकाने वाले समाचार कर्नाटक, केरल, गुजरात, मध्यप्रदेश आदि राज्यों से आ रहे थे।


जबकि अब यह पूरी तरह स्पष्ट हो गया है कि वक्फ संशोधन विधेयक पर विपक्षी दलों का व्यवहार तुष्टीकरण और वोट बैंक की क्षुद्र राजनीति का ही परिचालक है, इसी राजनीति के चलते यह कहा जा रहा है कि वक्फ संशोधन विधेयक का उद्देश्य मस्जिदों-मदरसों आदि की जमीनों पर कब्जा करना है, इस प्रकार कुल मिलाकर यह अतिआवश्यक संशोधन पूरी तरह राजनीति का एक प्रमुख मुद्दा बना दिया गया है। विपक्ष का यह तर्क भी हास्यास्पद है कि वक्फ कानून में किसी भी तरह का संशोधन नहीं हो सकता। जब इस कानून में पहले भी कई संशोधन किए जा चुके है तो अब क्यों नहीं हो सकता?

अब ऐसे में इस कानून को लेकर किए जा रहे दुष्प्रचार पर ठोस जवाब देने की जिम्मेदारी सरकार पर बढ़ जाती है, आज सरकार को इस मसले की प्राथमिकता से संज्ञान में लेना चाहिए, क्योंकि दुष्प्रचार इसे काफी हानि पहुंचा सकता है। अब ऐसे में सरकार की जिम्मेदारी काफी बढ़ जाती है, जिसका सरकार को पूरी शिद्दत व ईमानदारी के साथ देशहित में निर्वहन करना चाहिए।

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