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विपक्ष में उठापटक के बीच भाजपा में सीटों पर समझौता आखिरी दौर में,मकरसंक्रांति के बाद सीटों की पहली सूची!

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विपक्षी गठबंधन इंडिया के दलों में खटपट के बीच भाजपा ने अपने सहयोगी दलों से सीटों पर समझौता लगभग फाइनल कर लिया है। उत्तर प्रदेश, बिहार के साथ-साथ पूर्वोत्तर के राज्यों में भी सीटों पर समझौता हो चुका है। यूपी और बिहार की चार-चार लोकसभा सीटों पर किस दल को लड़ाया जाएगा, यह विपक्षी दलों की स्थिति साफ होने के बाद तय किया जाएगा। एनडीए के सभी दलों की इस पर अंतिम सहमति भी बन गई है। बिहार में भाजपा का गणित नीतीश कुमार के कारण अटक सकता है, क्योंकि अभी भी इस बात की आशंका जताई जा रही है कि वे पासा पलट कर भाजपा के खेमे में आ सकते हैं। यदि वे एक बार फिर एनडीए में आते हैं, तो सीटों के बंटवारे में बड़ा उलटफेर हो सकता है…

भाजपा सूत्रों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में इस बार भी अनुप्रिया पटेल को पूर्वांचल की दो सीटें मिलेंगी। अपना दल (एस) को इस बार भी मिर्जापुर और रॉबर्ट्सगंज की सीट मिलेगी। पिछले चुनाव में अपना दल (एस) ने अपनी सीटों की संख्या बढ़ाने के लिए पूरी मशक्कत की थी, लेकिन भाजपा ने उनकी बात नहीं मानी। इस बार भी भाजपा उनकी सीटों की संख्या नहीं बढ़ाएगी और इस पर दोनों दलों में सहमति बन गई है।

यूपी में भाजपा के भरोसेमंद सहयोगी बनकर उभरी निषाद पार्टी के प्रवीण निषाद को इस बार भी भाजपा के टिकट पर मैदान में उतारा जा सकता है। वहीं, अखिलेश यादव से खटपट के बाद भाजपा के खेमे से मजबूती से बैटिंग कर रहे ओम प्रकाश राजभर की पार्टी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी को एक टिकट मिल सकता है। उनकी पार्टी के उम्मीदवार को वाराणसी के पास की एक राजभर जाति बहुल सीट से भाजपा के टिकट पर उतारा जा सकता है। राजभर को उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में ज्यादा हिस्सेदारी देकर उनको संतुष्ट करने की कोशिश की जा सकती है।   

इसी बीच यूपी में विपक्षी दलों के बीच से दो प्रतिष्ठित नेता भाजपा ज्वाइन कर सकते हैं। ऐसी स्थिति में इन सीटों पर उन्हीं उम्मीदवारों को भाजपा के टिकट पर उतारा जा सकता है। ये दोनों सीटें पूर्वांचल की हैं।

भाजपा सूत्रों के अनुसार, इसी प्रकार बिहार में भी सहयोगी दलों में समझौते को लेकर सहमति बन गई है। लोजपा को एक करते हुए उसे एक बार फिर छह सीटें दी जा सकती हैं, तो जीतनराम मांझी को एक से दो सीटें मिल सकती हैं। दो सीटों पर अभी अंतिम सहमति नहीं बन पाई है कि इन सीटों पर किस दल को चुनाव लड़ने का अवसर दिया जाएगा। इन सीटों पर विपक्षी खेमे के दल-उम्मीदवार की स्थिति साफ होने के बाद अंतिम निर्णय किया जाएगा।

बिहार में भाजपा का गणित नीतीश कुमार के कारण अटक सकता है, क्योंकि अभी भी इस बात की आशंका जताई जा रही है कि वे पासा पलट कर भाजपा के खेमे में आ सकते हैं। यदि वे एक बार फिर एनडीए में आते हैं, तो सीटों के बंटवारे में बड़ा उलटफेर हो सकता है। सीटों के चयन पर भी पुनर्विचार करने की जरूरत पड़ सकती है।      

सूत्रों की मानें, तो इसी प्रकार दक्षिण और पूर्वोत्तर में भी सहयोगियों से सीटों पर बातचीत लगभग अंतिम दौर में पहुंच चुकी है। मकरसंक्रांति के बाद सीटों की पहली सूची घोषित की जा सकती है। विधानसभा चुनावों की रणनीति पर चलते हुए जिन सीटों पर भाजपा को अब तक सबसे ज्यादा मुश्किल आती रही है, उन पर सबसे पहले उम्मीदवारों की घोषणा की जा सकती है।

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