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अमृतकाल का जन विरोधी और जहरीला बजट

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मुनेश त्यागी 

       जनता के लिए भारत का लगातार घटता बजट इस बार और घट गया है। इसकी एक भयावह तस्वीर देखिए ,,,,, मनरेगा बजट 73000 करोड से घटकर 60000 करोड कर दिया गया है। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना 12954 से घटाकर 10787 करोड कर दी गई है, राष्ट्रीय शिक्षा मिशन 39553 करोड से घटाकर 38953 करोड कर दिया गया है, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन 37160 से घटकर 36785 करोड कर दिया गया है। सरकार द्वारा पेश किया गया बजट, इस देश के मजदूरों, किसानों और आम जनता के लिए अमृतकाल का बजट विषैला साबित हुआ है । 

     यह एक जुमलेबाज, लोकलुभावन और शब्दजाल से परिपूर्ण बजट है। इसमें वादों और नारों की भरमार है। इसमें देश की गंभीर आर्थिक स्थिति पर एक शब्द तक नहीं बोला गया है। यह बजट निर्यात वृद्धि में ठहराव, रुपए के मूल्य में निरंतर गिरावट, उच्च ऋण जीडीपी अनुपात घटती, बढ़ती बेरोजगारी, किसानों मजदूरों के हितों को बचाने आदि पर बिल्कुल चुप है। शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के बजट कम कर दिए गए हैं। बजट में पेट्रोलियम सब्सिडी में भारी कटौती से अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों पर विपरीत प्रभाव पड़ने जा रहा है जिससे कीमतों में भारी बढ़ोतरी होगी और इसका सबसे ज्यादा विपरीत प्रभाव आम गरीब जनता पर पड़ने वाला है।

       बजट में अमीरों पर टैक्स की दर को और कम कर दिया गया है जिससे यह बजट पूर्ण रूप से और अमीरपरस्त और पूंजीपतिपरस्त हो गया है। भोजन पर सब्सिडी में 31% की कमी की गई है जबकि भारत दुनिया के सबसे अधिक भूखे और कुपोषित लोगों का देश है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में आयुष्मान भारत के लिए आवंटन में 34% की भारी कमी की गई है। नेशनल हेल्थ मिशन के लिए बजट पिछले साल के मुकाबले 1% कम कर दिया गया है। शिक्षा के बजट में कमी की गई है राष्ट्रीय शिक्षा मिशन के बजट में 2% की कमी की गई है।

       भारत रोजगार योजना के लिए आवंटन में 65 फ़ीसदी की कमी की गई है। योजनाओं पर वास्तविक खर्च पिछले साल 23165 करोड का था जिसमें जिसे घटाकर 12435 करोड कर दिया गया है। पेंशन फंड में 4.2% की कटौती कर दी गई है। पीएम किसान आवंटन में 12% की कमी की गई है। उर्वरक सब्सिडी में 22% की कमी की गई है। आवास के लिए आवंटन में 90200 करोड़ की कमी की गई है।

        बजट में महिला दलित आदिवासी अल्पसंख्यकों के बजट में कमी कर दी गई है। विकास के लिए अम्बरैला कार्यक्रम में 66 फ़ीसदी की कटौती की गई है। मातृ वंदना योजना में 40 करोड़ की कटौती की गई है। अनूसूचित जाति के लिए मात्र 3% और अनूसूचित जनजाति के लिए 2.7 प्रतिशत का प्रावधान किया गया है जो कि उनकी संख्या के अनुपात में काफी कम है कुल मिलाकर यह बजट कारपोरेशन हितैषी, जनविरोधी और राष्ट्र विरोधी है।

       अमृतकाल का यह पहला बजट लोगों के लिए जहरीला साबित हुआ है। इसमें बेरोजगारों, किसानों, मजदूरों, छात्रों, महिलाओं, शेड्यूल कास्ट, शेड्यूल ट्राइब और अल्पसंख्यकों का लगभग ध्यान नहीं के बराबर रखा गया है। इसमें रोजगार बढ़ाने, खरीदने की शक्ति और घरेलू मांग बढ़ाने के केंद्रीय मुद्दों की अनदेखी की गई है। यह बजट आर्थिक संकट को और ज्यादा बढ़ाने का ही काम करेगा।

      मनरेगा के बजट में 33% की कमी कर दी गई है, खाद्य सब्सिडी में 90000 करोड़ की कटौती, उर्वरक सब्सिडी में 50000 करोड़ की कटौती, पेट्रोलियम सब्सिडी में 6900 करोड़ रुपए की कटौती की गई है। आंगनवाड़ी योजना कर्मियों के वेतन में कोई बढ़ोतरी नहीं की गई है। किसानों की आय दोगुनी करने के किसान फंड को 68000 से घटाकर 60000 करोड़ कर दिया गया है।

     यह बजट जनता को सस्ते और सुलभ न्याय देने के वादे का बिल्कुल विरोधी है भारत की न्यायपालिका का बजट .08 परसेंट है। इतने कम बजट की वजह से, भारत की न्याय व्यवस्था चरमरा गई है और नाकाम हो चुकी है। भारत के संविधान में सबको सस्ता और सुलभ न्याय देने की घोषणा की गई है, मगर सरकार पिछले 30 साल से इस ओर से आंखें मोदी हुई है। मोदी सरकार ने भी पिछले 8 बरस में इस विषय को लेकर कुछ नहीं किया है। हमारे देश में आज 5 करोड़ से ज्यादा मुकदमे पेंडिंग हैं। मुकदमों के अनुपात में न्यायिक अधिकारी नहीं हैं। मुकदमों के अनुपात में न्यायालय नहीं हैं। अनेकों न्यायालयों में बाबू, पेशकार और स्टेनो नहीं है जिस कारण कई कई वर्ष तक वहां कोई काम नहीं हो रहा है। वादकारी वर्षों से सस्ते और सुलभ न्याय को तरस रहे हैं। मगर सरकार इस समस्या की ओर ध्यान दिलाने के बावजूद भी कोई कार्य नहीं कर रही है और वर्तमान बजट में भी सरकार ने भारत की न्यायपालिका के बजट में कोई इजाफा नहीं किया है। इस प्रकार इस वर्ष भी दस करोड़ लोगों और संस्थाओं को कोई न्याय नहीं मिलने वाला है।

     इस बजट में इनकम टैक्स छूट देकर सरकार ने नौकरी पेशा लोगों की वाहवाही लूटने की कोशिश की है मगर हमारे देश में 80 करोड़ से ज्यादा लोग गरीब हैं करोड़ों करोड़ों लोग बेरोजगार हैं जिनके पास रोजगार और आमदनी का कोई साधन नहीं है। सरकार इन लोगों को रोजगार देने और गरीबी से निकालने की कोई बात नहीं कर रही है। सरकार इनकम टैक्स का झुनझुना लोगों के हाथ में पकड़ाने की बात कर रही है। मगर असली सवाल यह है कि यहां पर लगभग 100 करोड़ लोगों के पास तो आय का कोई साधन ही नहीं है, उन्हें इनकम इनकम टैक्स छूट की से निराशा के अलावा और क्या मिलने वाला है?

     भारत के अमीरों और धनपतियों के लिए टैक्स में छूट के कारण 2023-24 में ₹35000 करोड़ की हानि होने जा रही है। जनता की हालत सुधारने के लिए, रोजगार बढ़ोतरी, मजदूरी बढ़ोतरी, मनरेगा में बढ़ोतरी खाद्यान्न वितरण में बढ़ोतरी, पैतृक संपदा कर लगाया जाए जाने, खाने पीने की चीजों से और दवाइयों से जीएसटी हटाई जाए, किसानों को फसलों का वाजिब दाम देकर, लागत खर्चों में कमी करके, बिजली खाद और गैस के दामों में वाजिब कमी करके ही किसानों मजदूरों और आम जनता को बजट का लाभ दिलाया जाए। तभी जाकर यह तथाकथित अमृत काल का बजट, जन विकास का बजट बन पाएगा।

    यह बजट किसान मजदूर छात्र नौजवान वादकारी और तमाम मेहनतकश जिसमें औरत और आदमी सभी शामिल हैं, उन सब के हितों और कल्याण का विरोधी है। इससे उनका कोई भला नही होने जा रहा है। इसमें केवल देसी विदेशी पूंजीपतियों का कल्याण करने और हित साधने की योजना प्रस्तुत की गई है। सरकार जन विरोधी बजट को जन हितेषी बता रही है। यह एक खुल्लम-खुल्ला झूठ है। ऐसा जनविरोधी बजट हमें स्वीकार नहीं है।

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