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एएमयू संविधान के तहत अल्पसंख्यक दर्जे की हकदार,सुप्रीम कोर्ट ने आर्टिकल 30  का किया जिक्र

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सुप्रीम कोर्ट ने 57 वर्ष पहले अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर दिए अपने ही फैसले को पलट दिया है। मामले में सुनवाई के दौरान 7 जजों की संवैधानिक पीठ ने आज 4:3 के बहुमत से फैसला सुनाते हुए कहा कि एमयू संविधान के आर्टिकल 30 के अंतर्गत अल्पसंख्यक दर्जे की हकदार है।

अब नियमित पीठ करेगी फैसला 

बता दें कि शीर्ष अदालत की पांच जजों की पीठ ने 1967 में ‘अजीज बाशा बनाम भारत गणराज्य’ मामले में दिए अपने फैसले में कहा था कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान के दर्जे का दावा नहीं कर सकती। हालांकि 1981 में सरकार ने एएमयू अधिनियम में संशोधन करके यूनिवर्सिटी का अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा फिर बरकरार कर दिया था। सात जजों की पीठ ने आज सुनवाई के दौरान 4-3 के बहुमत से दिए अपने आदेश में कहा कि कोई भी संस्थान यदि कानून के अंतर्गत बना है तो भी वह अल्पसंख्यक संस्थान का दावा कर सकता है। अब एएमयू का अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार रहेगा अथवा नहीं, नियमित पीठ इसका फैसला करेगी।

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है। SC ने अपने फैसले में कहा है कि एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे को नए सिरे से तय करने के लिए तीन जजों की एक समिति बनाई गई है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में आर्टिकल 30 (Article 30) का भी जिक्र किया है। सीजेआई चंद्रचूड़ (CJI Chandrachud) ने कहा कि संस्थान को स्थापित करने और उसके सरकारी तंत्र का हिस्सा बन जाने में अंतर है, आर्टिकल 30 (1) का उद्देश्य यही है कि अल्पसंख्यकों का बनाया गया संस्थान उनके जरिये ही चलाया जाए। अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक संस्थान हो सकते हैं। आइए जानते हैं कि है क्या आर्टिकल 30-

अनुच्छेद 30 भारतीय संविधान (Indian Constitutions) का एक महत्वपूर्ण आर्टिकल है। इसमें अल्पसंख्यक वर्गों के शिक्षा संस्थानों की स्थापना और प्रबंधन के अधिकार के बारे में है। यह आर्टिकल अल्पसंख्यक वर्गों को अपने धर्म की रक्षा और प्रसार, भाषा, संस्कृति के लिए शिक्षा संस्थान स्थापित करने और चलाने का अधिकार देता है।

आर्टिकल 30 की जरूरी बातें 

-अल्पसंख्यक वर्गों को अपने शिक्षा संस्थानों में प्रवेश और शिक्षा के लिए अपनी भाषा और संस्कृति का उपयोग करने का अधिकार है।

-माइनॉरिटी वर्गों को अपने शिक्षा संस्थान स्थापित करने का अधिकार है।

-अल्पसंख्यक वर्गों को अपने शिक्षा संस्थानों में अपने धर्म और संस्कृति की शिक्षा देने का अधिकार है।

-अल्पसंख्यक वर्गों के शिक्षा संस्थानों को राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त होना आवश्यक है।

-राज्य अल्पसंख्यक वर्गों के शिक्षा संस्थानों को वित्तीय सहायता प्रदान कर सकता है।

क्यों मिलता है ये दर्जा

अब सवाल है कि अल्पसंख्यक दर्जा क्यों दिया जाता है, दरअसल भारत में तमाम अल्पसंख्यकों के विकास और उनकी पढ़ाई को लेकर ये व्यवस्था की गई थी. ऐसे संस्थानों में इन अल्पसंख्यकों को आरक्षण मिलता है और उनका शैक्षणिक विकास होता है. यही वजह है कि इन संस्थानों को कुछ खास अधिकार दिए जाते हैं, यानी तमाम तरह के नियम-कायदे ये खुद तय कर सकते हैं. ऐसे संस्थानों की लिस्ट काफी लंबी है, देश के कई बड़े विश्वविद्यालय इसमें आते हैं. फिलहाल अब तीन जजों की बेंच एएमयू के दर्जे पर आखिरी फैसला सुनाएगी. 

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने नहीं माना था संस्थान

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2006 में अपने फैसले में एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना था। इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई। 2019 में याचिका पर सुनवाई के दौरान शीर्ष कोर्ट की तीन जजों की पीठ ने मामला 7 सदस्यीय पीठ के पास भेज दिया था। सुनवाई के दौरान प्रश्न उठा था कि ऐसा कोई विश्वविद्यालय, जिसका प्रशासन सरकार संचालित कर रही हो, वह अल्पसंख्यक संस्थान होने का दावा कर सकता है?

फरवरी में फैसला सुरक्षित रख लिया था फैसला

सात सदस्यीय पीठ ने मामले पर सुनवाई पूरी करके इसी वर्ष एक फरवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने अब फैसले को पलटते हुए स्पष्ट कर दिया है कि कानून द्वारा बनाए संस्थान को भी अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जा सकता है। पीठ ने अंतिम फैसले के लिए मामला नियमित पीठ के पास भेज दिया है।

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