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भूखों मरता कथित एक उभरता आर्थिक विश्व महाशक्ति,भारत !

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-निर्मल कुमार शर्मा

‘सच्चाई छुप नहीं सकती ,
बनावट के वसूलों से… ,
कि खूशबू आ नहीं सकती ,
कभी कागज के फूलों से…’

Narendra Modi enters 20th year as democratically elected head of  government- The New Indian Express
        उक्त गीत प्रख्यात गीतकार स्वर्गीय आनन्द बक्शी ने लिखा था,इस गीत को मीनाकुमारी, राजेश खन्ना और मुमताज द्वारा अभिनीत ऐतिहासिक दुश्मन फिल्म में एक अत्यंत लोकप्रिय गीत के रूप में अस्सी के दशक में लोगों द्वारा खूब सराहा गया था। वर्तमान बीजेपी सरकार के खेवनहार,कथित प्रधानजनसेवक,श्री नरेन्द्र दास दामोदर दास मोदी को उनके चाटुकार प्रिंट और दृश्य मिडिया के पत्रकार भारत के अब तक हुए प्रधानमंत्रियों में कथित सबसे सुयोग्य,कुशल,दिलेर,दृढसंकल्पित, दृढनिश्चयी,प्रतिबद्ध,हिंदूहृदयसम्राट आदि उपाधियों से नवाजते रहते हैं ! वैसे कटुसच्चाई और कटुयथार्थ यह है कि श्री नरेन्द्र दास दामोदर दास मोदी की प्रशंसा में उक्त वर्णित कसीदे पढ़ने के लिए उक्त वर्णित शब्द बिल्कुल भ्रामक,झूठ और चाटुकारिता की पोली नींव पर खड़े हैं,गढ़े गये हैं। गुजरात के भूतपूर्व मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्र दास दामोदर दास मोदी की बहुप्रचारित गुजरात के विकास मॉडल की हवा उसी समय निकल गई थी,जब अमेरिका का भूतपूर्व बड़बोला और झूठा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने बहुप्रचारित,अरबों रूपये मंहगे 'नमस्ते ट्रंप 'कार्यक्रम में भाग लेने अहमदाबाद आया था,क्योंकि तब गुजरात की गरीबी और गरीबों को ढकने के लिए इस कथित विकास पुरूष श्री नरेन्द्र दास दामोदर दास मोदी को सड़क से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप सहित इस देश के लोगों को भी गुजरात के कथित विकास मॉडल की गरीबी और गरीब न दिखें इसलिए एक ऊँची दिवार खड़ी करनी पड़ गई थी !
 
         अब तक हुए प्रधानमंत्रियों में कथित सबसे सुयोग्य,कुशल,दिलेर,दृढसंकल्पित, दृढ़निश्चयी,प्रतिबद्ध,हिंदूहृदयसम्राट विकास पुरूष श्री नरेन्द्र दास दामोदर दास मोदी इस देश के गरीबों,बहुजनों,दलितों,आदिवासियों,किसानों, मजदूरों, युवा बेरोजगारों,बच्चों,कुपोषण, भूखमरी,बेरोजगारी आदि भयावहतम् समस्याओं पर बिल्कुल ध्यान न देकर अपने पिछले 7 साल के अपने कार्यकाल में केवल 'चारधाम सड़क चौड़ीकरण योजना,कुँभ मेला,सरदार पटेल की सबसे ऊँची मूर्ति,अयोध्या में रामलला का मंदिर, बुलेट ट्रेन,नागरिकता संशोधन बिल,दंगे-फसाद,नोटबंदी, वंदेमातरम,गोहत्या,मंदिर-मस्जिद,रेलवे,बीएसएनएल,ईसरो और तमाम नवरत्न कंपनियों फायदा पहुँचानेवाली कंपनियों का निजीकरण,मॉबलिंचिग द्वारा सैकड़ों अल्प संख्यकों को मार देने,किसानों को सीधे मंत्रीपुत्र द्वारा कुचल देने जैसे जघन्यतम् अपराध कर देना और अब गांधी-गोडसे अनावश्यक विवाद खड़ा कर देने के बेसिरपैर,आत्मघाती, आमजनविरोधी व मुख्य मुद्दों और समस्याओं से ध्यान भटकाने का ही काम किया है,इसीलिए इस देश के 12 करोड़ लोगों की नौकरी चली गई है,जिससे वे लोग भूखमरी के कगार पर खड़े होने को अभिशापित हैं ! फलस्वरूप इसी देश में 58 प्रतिशत बच्चे ठीक से खाना न मिलने से कुपोषित हैं,91.4 प्रतिशत बच्चों में आयरन की कमी है,41 प्रतिशत गर्भवती औरतें रक्त की कमी से बुरी तरह जूझ रहीं हैं ! जब कि मोदी जी इसभयावह स्थिति में भी अपनी विलासितापूर्ण जीवन जीने के लिए इतने उद्दत हैं कि अपने लिए भारतीय वायुसेना के हवाईजहाजों को प्रयोग करने की जगह महाबली और दुनिया की आर्थिक महाशक्ति अमेरिका के राष्ट्रपतियों की तर्ज पर 84अरब 58 करोड़ रूपये मूल्य के अमेरिका से सभी सुख-साधनों से संपन्न दो विमान मंगवाने की अपनी ख्वाहिश पूरी करके ही दम लिए हैं ! अपनी वास्तुकला के लिए फ्रैंच वास्तुकार और लब्धप्रतिष्ठित इंजीनियरों द्वारा निर्मित भारतीय गणराज्य के पुराने संसदभवन के ठीक-ठाक रहते हुए भी लगभग 2 खरब की लागत से एक नया संसद बनाने की सनकभरी योजना को कार्यरूप देने में उन्हें कोई झिझक और शर्म महसूस नहीं हो रही है ! ऐसे बहुत से पागलपन,सनकभरे और फिजूलखर्ची तथा मूर्खतापूर्ण कार्यों के उदाहरण दिए जा सकते हैं,जो इस देश के गरीबों,बहुजनों,दलितों, आदिवासियों,किसानों, मजदूरों,युवा बेरोजगारों, बच्चों,कुपोषण,अशिक्षा,भूखमरी,बेरोजगारी आदि भयावहतम् समस्याओं को उपेक्षित और दरकिनार करके श्रीमान मोदी जी ने अनावश्यक रूप से अनाप-शनाप प्रोजेक्ट्स में इस गरीब देश के लोगों के पेट पर लात मारकर अरबों-खरबों रूपये बहा रहे हैं। सरकारी आँकड़े के अनुसार श्रीमान मोदीजी अपने झूठ के महल के प्रचार के लिए प्रतिदिन लगभग 2 करोड़ रूपये पानी की तरह बहा देते हैं ! सरकारी आँकड़ों के अनुसार पिछले 4 वर्ष में मोदीजी केवल अपनी छवि चमकाने के लिए और अपनी सरकार की झूठी उपलब्धियों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए अपनी भाँड़ मिडिया को 50 अरब रूपये दिए हैं ! 
           दुनिया की दो सुप्रतिष्ठित संस्थानों क्रमशः जर्मनी की वेल्ट हंगर हिल्फ और आयरलैंड की कंसर्न वर्ल्डवाइड ने अल्पपोषण, कुपोषण, बच्चों की वृद्धि और बाल मृत्यु दर को आधार बनाकर 116 देशों की संयुक्त रूप से मिलकर कल वैश्विक भूख सूचकांक की रिपोर्ट को जारी कर दिया है,जिसमें भारत अपने पड़ोसी, गरीब और छोटे-छोटे देशों यथा पाकिस्तान, नेपाल,बाग्लादेश और म्यांमार से भी नीचे 101 वें नंबर के फिसड्डी पायदान पर लड़खड़ा कर खड़ा है,जबकि चीन,कुवैत और ब्राजील जैसे 18 देश इस दुनिया के प्रथम पंक्ति के खुशहाल देशों की सूची में शामिल हैं ! इस सूची में भारत के बाद इस दुनिया के सबसे ज्यादे भुखमरी,युद्ध आदि से त्रस्त अफगानिस्तान,नाइजीरिया,कांगो,हैती, मोजाम्बिक,लाइबेरिया,मेडागास्कर,यमन और सोमालिया जैसे गुमनाम देश ही हैं ! इस रिपोर्ट ने मोदी,गोदी मिडिया,मोदी के भांड लेखकों, सम्पादकों,टीवीऐंकरों और मोदीसरकार के पालतू अर्थशास्त्रियों को पूरी तरह से नंगा और निर्वस्त्र करके रख दिया है,जो ये कहते नहीं थकते थे कि मोदी जैसे सुयोग्य प्रधानमंत्री, कथित प्रधानजनसेवक जी के हाथों यह देश इसके गरीबों,गाँवों,मजदूरों, किसानों आदि सभी का भविष्य बिल्कुल सुरक्षित है ! यह वैश्विक भूख सूचकांक रिपोर्ट बताती है कि आउटर पर खड़ी इस कथित विश्व महाशक्ति के लोग भूख से बिलबिला रहे हैं ! 
                भारत में सन् 1982 से 1 सितम्बर से 7 सितम्बर तक एक सप्ताह राष्ट्रीय पोषण सप्ताह मनाने की शुरूआत की गई है ! सरकारी दावे के अनुसार इस सप्ताह को मनाने का मुख्य उद्देश्य आम जनता में पोषण के बारे में जागरूकता फैलाना,कुपोषण से बचाव के उपायों के बारे में जागरूकता बढ़ाना,आम जनजीवन में स्वस्थ जीवन शैली को बढ़ावा देने आदि कार्यक्रम आयोजित किया जाना है !भारत सरकार द्वारा संपूर्ण देश को कुपोषण जैसी गंभीर समस्या से मुक्त कराने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर पोषण अभियान चलाया जाता है, इसीलिए सन् 2018 से सितम्बर माह को पोषण माह के रूप में भी मनाया जाता है, इसके अंतर्गत आमजन को उनकी जीवनशैली और खाद्यशैली को बदलने की सलाह दी जाती है। इसके लिए सरकार एकीकृत बाल विकास सेवा मतलब आइसीडीएस नामक एक संस्था का निर्माण किया गया है, इसके अंतर्गत किए कार्यक्रमों में आम जनता में पूरक पोषण,स्वास्थ्य शिक्षा,टीकाकरण,स्वास्थ्य जाँच,प्री स्कूल शिक्षा,पोषण अभियान के अंतर्गत विशेषरूप से युवतियों व गर्भवती महिलाओं तथा अपना स्तनपान कराने वाली महिलाओं में पोषण की कमी को दूर करने के प्रयास किए जाते हैं,जबकि यह सब बिल्कुल झूठ,भ्रम और बकवास तथा देश के पैसे का बंटाधार करने का एक स्टंटबाजी के सिवा कुछ भी नहीं है !
          अकेले भारत में 19 करोड़ लोग इस सीमा तक गरीबी के दलदल में धंसे हैं जो रात को भूखे पेट सो जाते हैं,भारत के अलावे दुनिया के इन 50 करोड़ भूखे लोगों में अधिकतर अफ्रीका के सहारा क्षेत्र के देशों जैसे हैती,चाड,तिमोर, मेडागास्कर,मोजांबिक,नाइजीरिया,कांगो,सूडान जैसे देशों के लोग ज्यादे हैं,जहाँ न ढंग के उद्योग-धंधे हैं,न समुन्नत कृषि है,न वहाँ सिंचाई की समुचित व्यवस्था है । इसके अतिरिक्त इसी विश्व में 3 अरब ऐसे लोग रहते हैं,जो जैसे-तैसे अपना पेट तो भर  लेते हैं,लेकिन उस खाने में पौष्टिकता नाम की कोई चीज ही नहीं होती !अफ्रीका जैसे देशों में तो भूखमरी के स्पष्ट कारण हैं,लेकिन भारत जैसे देश में तो यहाँ के किसान इस देश के प्रति,अपने कृषि के प्रति,अपने कृषियोग्य जमीन के प्रति इतने समर्पित और प्रतिबद्ध हैं कि उनकी फसल की कई दशकों से जायज कीमत न मिलने के कारण साल दर साल कर्ज में डूबकर,निराश होकर,लाखों की संख्या में खुदकुशी करने को मजबूर हो रहे हैं,इसके बावजूद भी अपनी कठोरतम् मेहनत से इस पूरे राष्ट्रराज्य के उपभोग होने लायक अन्न से भी लगभग दो गुना अन्न,फल, सब्जी और अन्याय खाद्य पदार्थ पैदा कर देते हैं,अगर इस सुखद स्थिति में भी भारत में भूखमरी है,तो वह यहाँ की सरकारों के भ्रष्ट और दिशाहीन तथा बेपरवाह कर्णधारों की गलत नीतियों,दलालों और यहाँ के रिश्वतखोर सरकारी अफसरों और कर्मचारियों के कदाचार और भ्रष्टाचार की वजह से है,भारत में भूखमरी के लिए उक्त तीनों त्रयी पूर्णतः जिम्मेदार है ।
              भारत में भूखमरी की समस्या यहाँ की सत्तासीन सरकारों के कर्णधारों द्वारा जानबूझकर की गई एक समस्या है ! मान लीजिए आप उस बाजार से गुजर रहे हों,जहाँ की दुकानों,मॉलों, होटलों में खाद्यपदार्थ खचाखच भरे हुए हों,लेकिन आपके जेब में इतना पैसा नहीं है कि आप उन सुस्वादिष्ट और पौष्टिक आहार को खरीद कर खा सकें,तो आप निश्चित रूप से कुछ ही दिनों में खाना न मिलने से भयंकर कुपोषण के शिकार होकर मौत के मुँह में चले जाएंगे ! भारत जैसे देश की ठीक यही हालत है ! यहाँ सरकारी गोदामों में प्रचुरमात्रा में गेहूँ और चावल ठसाठस भरे पड़े हैं,लेकिन दूसरी तरफ लोग भूख से बिलबिलाकर मर रहे हैं ! भारत में कुपोषण और भूखमरी की समस्या आम लोगों में व्याप्त बेरोजगारी से पैदा हुई गरीबी है,खाने की चीजों को खरीदने के लिए लोगों के पास पैसा ही नहीं है,उनके अन्दर क्रय शक्ति ही नहीं है। कोई भी व्यक्ति जानबूझकर कुपोषित नहीं रहना चाहेगा। सामान्य ही सही और नियमित खाना मिलने पर कोई व्यक्ति कुपोषित हो ही नहीं सकता ! इसलिए यह सरकारी पोषण सप्ताह और पोषण माह मनाना तथा इसके लिए तमाम गोष्ठियों और सेमिनारों को आयोजित करना एक छद्म,पाखंड और गरीबों के प्रति एक निर्मम सरकारी दिखावा करने के अतिरिक्त कुछ नहीं है ! आज सरकार की दुर्नीतियों की वजह से पिछले 44 सालों में इस देश के सर्वाधिक युवा बेरोजगार हैं,यक्षप्रश्न है बेरोजगारी से त्रस्त कोई युवा पौष्टिक भोजन कैसे खा सकता है,उसी प्रकार इस देश की 70 प्रतिशत आबादी कृषि पर अवलंबित है,आज किसानों को उनकी फसलों की लागतमूल्य भी नहीं मिल पा रही है,उस स्थिति में यहाँ करोड़ों किसान और उसका परिवार पौष्टिक भोजन कैसे खा सकता है ? जाहिर है नहीं खा सकते ! इसीलिए हर आधे घंटे में एक किसान और बेरोजगारी से त्रस्त एक युवा इस देश में आत्महत्या करने को बाध्य हो रहे हैं ! इसलिए उक्तवर्णित सरकारी पोषण सप्ताह मनाने के इस ढोंग की कलई तभी उतर जाती है,जब देश के विभिन्न भागों से बेरोजगारी, तंगहाली से त्रस्त लोगों की भूख से मौत होने की खबरे समाचार पत्रों और दृश्य मिडिया के माध्यम से अक्सर अक्सर सुनने को मिलती रहतीं हैं,पोषण सप्ताह और पोषण माह मनाने का यह सरकारी कार्यक्रम सिवा एक ढोंग और प्रपंच के कुछ भी नहीं है।   
             भूख एक ऐसी मानवीय या जैविक या शारीरिक आवश्यकता है,जिसे भुक्तभोगी ही महसूस कर सकता है,इस समस्या को हर तरह से सम्पन्न और अघाए लोगों को नहीं समझाया जा सकता है । अब प्रश्न है कि इस देश के सरकारों के कर्णधारों को अपने देश की कुल आबादी के पाँचवे हिस्से के बराबर यानि लगभग तीस करोड़ भूख से त्रस्त गरीब और कुपोषित लोगों को मानवीयता के आधार पर उन्हें पहले भूख और कुपोषण की समस्या से निबटने की तरकीब निकालनी चाहिए थी। निश्चित रूप से दुनिया की कोई भी मानवीय,करूणाशील और दयाशील सरकार या सभ्यता अपने देश के सभी नागरिकों को सर्वप्रथम भोजन की व्यवस्था को प्राथमिकता देती । फिर मानव प्रजाति का सबसे बड़ा यह विद्रूप प्रहसनकाल भारत जैसे देश में ही क्यों चल रहा है ? यहाँ की मिडिया में भी ऐसे लोग नहीं बचे हैं,जिनमें मानवीय गरिमा बची हो या जो सत्य को दृढता से अपनी बात कह सकें !लिख सकें ! 
            आजकल अधिकतर समाचार पत्रों का भी एक नया ट्रेंड यह शुरू हो गया है कि कटुसच्चाई से भरे यथार्थ लेखों को भी प्रकाशित न करके, उनकी जगह छिछले स्तर के हल्के-फुल्के लेखों को प्रकाशित करके अपनी पत्रकारिता के कर्तव्य का इतिश्री भी कर लिया जाय,जिससे सत्ताधारी वर्ग की नाराजगी भी न मोलना पड़े ! कुछ गिने-चुने मिडिया संस्थानों, समाचार पत्रों और न्यूज चैनलों को छोड़ दें तो सामान्यतः ज्यादेतर मिडिया संस्थानों और कथित बड़े-बड़े समाचार पत्रों में यही स्थिति हो गई है । यह आधुनिक पत्रकारिता का चरित्र पत्रकारिता के पेशे के सिद्धान्त के लिए बहुत ही शर्मनाक है । पत्रकारिता का यह शर्मनाक चरित्र पत्रकारिता के दामन पर एक बदनुमा दाग है,जो समाचार पत्र,पत्रकार या संपादक इस तरह की कायरतापूर्ण कृत्य कर रहे हैं वे मध्य युग में अपने राजा-महाराजाओं की प्रशस्ति में गीत गाने वाले चारण कवियों से कतई भिन्न नहीं हैं । उन्हें स्वयं को पत्रकार या सम्पादक कहलाने का कतई अधिकार ही नहीं है । आदर्श पत्रकारिता तो स्वर्गीय गणेश शंकर विद्यार्थी जैसे बहादुर,अपने सिद्धांत के प्रति प्रतिबद्ध और दिलेर लोगों ने पत्रकारिता की दुनिया में एक मशाल जलाकर दिखाया,जो कभी भी सूर्य अस्त न होने वाले शक्तिशाली ब्रिटिश साम्राज्यवादियों के सामने सीना तानकर खड़े रहे,जेल जाना पसंद किया, अपना सिर कटा लिया,फाँसी पर झूल गए परन्तु अपने सिद्धांत से कभी भी समझौता नहीं किया । शर्म आती है वर्तमान समय की इस दुमहिलाने वाली और चाटुकारिताभरी पत्रकारिता पर,जिसने पत्रकारिता के स्वाभिमानी व्यवसाय और लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ पर एक बदनुमा कलंक लगा दिया है । निश्चित रूप से जब इस दौर का इतिहास लिखा जायेगा तो आज के दौर के इस कथित पत्रकारिता की कायरता पूर्ण चरित्र को भी जरूर लिखा जायेगा,जो सत्य के खिलाफ केवल और केवल सत्ता की जीहुजूरी करने को ही पत्रकारिता समझने का भ्रम पाले हुए हैं !

-निर्मल कुमार शर्मा,’गौरैया एवम् पर्यावरण संरक्षण तथा समाचार पत्र-पत्रिकाओं में निष्पृह, बैखौफ व स्वतंत्र लेखन ‘

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