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एनिमल:रणबीर कपूर के करियर की सबसे बेस्‍ट परफॉर्मेंस

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आज से दस साल पहले अनुराग कश्यप की ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ को इंडियन सिनेमा की सबसे हिंसक फिल्म का दर्जा दिया गया था। लेकिन आज रिलीज हुई निर्देशक संदीप रेड्डी वांगा ने खून-खराबे के मामले में ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ को पछाड़ दिया है। ‘कबीर सिंह’ फेम संदीप रेड्डी वांगा ने ट्रेलर लॉन्च पर ही कह दिया था कि यह अब तक की सबसे वायलेंट फिल्म होगी। वायलेंस के अलावा फिल्म में और भी कई एलिमेंट हैं और वो हैं रणबीर कपूर का करंट दौड़ने वाला परफॉर्मेंस, जो फिल्म के शीर्षक के मुताबिक एनिमल इंस्टिक्ट को हर तरह से साकार करता नजर आता है। ऐसा किरदार जो अपने पिता की आन-बान और जान के लिए सिविलाइज्ड सोसायटी के सारे नियम -कानून तोड़ जानवर बन जाता है। यहां यह बताना भी जरूरी है कि यह फिल्म कमजोर दिलवालों को रास नहीं आएगी।

‘एनिमल’ की कहानी

तकरीबन साढ़े तीन घंटे की इस फिल्म की कहानी का आरंभ होता है, बूढ़े रणबीर कपूर से जहां से कहानी फ्लैशबैक में जाती है। स्कूल में पढ़ने वाला विजय अपने अरबपति बिजनेसमैन पिता बलबीर सिंह (अनिल कपूर) को न केवल अपना आदर्श मानता है, बल्कि उसे दीवानगी की हद तक चाहता है। अपने पिता के जन्मदिन पर महज उन्हें हैपी बर्थ डे बोलने के लिए वह न केवल टीचर की मार खाता है, स्कूल से भागकर घर भी आ जाता है। मगर अपने बिजनेस में दिन-रात मसरूफ रहने वाला बलबीर बेटे को वो प्यार और समय नहीं दे पाता, जिसकी चाहत विजय करता है।

युवा होते साइको विजय (रणबीर कपूर) की एक ही धुन है कि वो किसी तरह अपने पिता का अटेंशन हासिल करे और उन्हें प्रभावित कर सके। मगर उसकी हिंसक वृत्ति और हरकतें उसे पिता से दूर करती जाती हैं। स्कूल में पढ़ने वाला विजय एक दिन कॉलेज में पढ़ने वाली अपनी दीदी के साथ रैगिंग करने वालों को सबक सिखाने के लिए मशीनगन चला देता है। तब बलबीर सिंह उसे अनुशासित करने के लिए हॉस्टल भेज देता है। विजय को अहसास होता है कि उसकी गैरमौजूदगी में उसके जीजा ने उसके पिता के बिजनेस एम्पायर कर कब्जा कर लिया है। वह अपने जीजा के साथ भी बदतमीजी करता है और उस वक्त बलबीर सिंह को अहसास होता है कि हॉस्टल से आने के बाद भी भी विजय में कोई बदलाव नहीं आया है।

यहां खुद को अल्फा मेल (समूह का सबसे शक्तिशाली पुरुष) कहलाने वाले विजय को गीतांजलि (रश्मिका मंदाना) से पहली नजर का प्यार होता है। तब वह गीतांजलि की मंगनी तुड़वाकर उसके सामने सीधे शादी का प्रस्ताव रख देता है। वह गीतांजलि को अपने पिता और परिवार से मिलवाने लाता है, मगर उसे एक बार फिर पिता की बेरुखी और गुस्से का शिकार होना पड़ता है। वो गीतांजलि को लेकर अमेरिका चला जाता है। आठ साल विदेश में बिताने के बाद एक दिन जब उसे पता चलता है कि उसके पिता को गोली मार दी गई है, तो वह स्वदेश लौटता है। अपने पिता की विरासत को संभालने के लिए कटिबद्ध विजय पिता पर जानलेवा हमला करने वालों के खून का प्यासा हो चुका है, बावजूद इसके कि वह खुद दो बच्चों का बाप बन चुका है। मगर पिता का बदला लेने का जुनून उसे जानवर बनाकर एक ऐसे रक्तरंजित खेल में शामिल कर देता है, जहां धड़ से अलग हुए सिर और खून की होली खेलने वाला तांडव शुरू हो जाता है।

क्या विजय अपने पिता पर जानलेवा हमला करने वालों से प्रतिशोध ले पाएगाा? क्या वह सभ्य समाज का हिस्सा बन पाएगा? उसके इस खूनी खेल में उसकी पत्नी और परिवार का क्या होगा? विजय के इस हिंसक और खतरनाक बर्ताव की वजह क्या है? ये जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी।

‘एनिमल’ का ट्रेलर

‘एनिमल’ मूवी रिव्‍यू

निर्देशक संदीप रेड्डी वांगा ने अपनी फिल्म का केंद्र बनाया वीभत्स, भयानक और रौद्र रस को। संदीप फिल्म में इन तीनों रसों का अतिरेक करते नजर आते हैं। ये रस फिल्म की शुरुआत से ही कहानी का टोन सेट कर देते हैं। हालांकि कहानी आगे बढ़ने के साथ आप इसकी भावनात्मक लेयर तक भी पहुंचते हैं। संदीप ने रणबीर के किरदार को जो करैक्टरस्टिक दिए हैं, वो कई लोगों को हजम नहीं भी हो सकते हैं। किरदार की अल्फा याने मर्दवादी और महिला विरोधी सोच, अपनी नायिका के प्रति वर्चस्व का एकाधिकार, अपने तमाम काले कारनामों का जस्टिफिकेशन और नायक होने के बावजूद उसका इस हद तक ब्लैक हो जाने पर लोगों को आपत्ति भी हो सकती है। इसके बावजूद यह चरित्र जुगुप्सा जगाता है, मगर आप इससे नफरत नहीं कर पाते।

फिल्म का फर्स्ट हाफ फ्लाइंग रानी की तरह तेज गति से आगे बढ़ता है। वायलेंट सीन्स आपको विचलित करते हैं, मगर कुछ देर बाद आप उस जानलेवा दुनिया का हिस्सा बन जाते हैं। सेकंड हाफ में कहानी की रफ्तार थोड़ा लड़खड़ाती है। तृप्ति डिमरी का ट्रैक रणबीर के चरित्र के आर्क को गिरा देता है। मगर फिर प्री क्लाइमेक्स और क्लाइमेक्स आपके रोंगटे खड़े कर देता है। वायलेंस के मामले में ये फिल्म ‘गॉडफादर’ और ‘किल बिल’ जैसी फिल्मों की याद दिलाती है। वांगा ने बाप-बेटे के इमोशन को कहानी का कोर बनाया है, मगर इस खून-खराबे के आधिक्य वाली कहानी में लॉ एंड ऑर्डर का नदारद होना सवाल पैदा करता है।

हीरो मशीनगन लेकर दनदनाता हुआ मास किलिंग कर रहा है, मगर उसे पकड़ने वाला कोई नहीं है। निर्देशक वांगा ही इसके एडिटर भी हैं। वे फिल्म की लंबाई कम करके फिल्म को क्रिस्प बना सकते थे। एक्शन दृश्यों में अमित रॉय की सिनेमैटोग्राफी दमदार है। हर्षवर्धन रामेश्वर के बैकग्राउंड म्यूजिक की तारीफ करनी होगी, जो फिल्म की भयावहता को बनाए रखता है। संगीत की बात करें, तो ‘सतरंगा’, ‘पापा मेरी जान’, ‘सारी दुनिया जला देंगे’ जैसे गाने सिचुएशन के मुताबिक अच्छे बन पड़े हैं।

अभिनय की बात करें, तो इसे यदि हम रणबीर कपूर के करियर की सबसे बेस्‍ट परफॉर्मेंस कहें, तो गलत न होगा। इस हिंसक और विक्षिप्त किरदार को रणबीर ने हर तरह से परतदार बनाया है। मार-काट के दृश्यों में जहां उनकी वहशत झलकती है, वहीं रोमांटिक दृश्यों में वे इरॉटिक अंदाज में दिखते हैं, मगर सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाले दृश्य उनके बाप-बेटे के बीच के हैं। क्लाइमैक्स में बाप-बेटे के बीच का दृश्य आपको कराहियत दे जाता है। अपने अभिनय की विशिष्ट शैली से वे दर्शकों को स्तब्ध करते जाते हैं।

इस नायक प्रधान फिल्म में रश्मिका अपने आक्रामक तेवरों से अपनी उपस्थिति दर्ज कराती हैं। रणबीर को थप्पड़ मारने वाला दृश्य हो या फिर रणबीर के धोखा दिए जाने के बाद वाला सीन, वे अपनी अभिनय प्रतिभा का लोहा मनवाती हैं। गूंगे किलर के रूप में बॉबी भी कम खूंखार नहीं लगे हैं। उनका किरदार कहानी का टर्निंग पॉइंट साबित होता है, मगर उन्हें फिल्म में काफी कम स्क्रीन टाइम मिला है।

अनिल कपूर ने पिता की भूमिका को परतदार बनाया है। साइको बेटे की करतूतों पर उनके चेहरे पर असमंजस और बेबसी के भाव उनके अभिनय के सालों के अनुभव को साबित करते हैं। एक अरसे बाद शक्ति कपूर को पॉजिटिव भूमिका में देखना सुखद लगता है। सुरेश ओबेरॉय और प्रेम चोपड़ा ने अपनी भूमिकाओं में अच्छा साथ निभाया है। उपेंद्र लिमये का किरदार इंटेंस सीन में ह्यूमर लाने का काम करता है। रणविजय की मां बनीं चारू शंकर, बलबीर के दामाद बने सिद्धार्थ कार्णिक, आबिद हक के रोल में सौरभ सचदेवा और रणविजय की बहनों के चरित्रों में सलोनी बत्रा और अंशुल चौहान ने भी भूमिकाओं के साथ न्याय किया है।

ऐक्टर:

रणबीर कपूर,अनिल कपूर,रश्मिका मंदाना,बॉबी देओल,शक्ति कपूर,तृप्ति ड‍िमरी,सुरेश ओबेरॉय,प्रेम चोपड़ा,उपेंद्र लिमयेडायरेक्टर : संदीप रेड्डी वांगाश्रेणी:Hindi, Action, Drama, Romanceअवधि:3 Hrs 21 Min

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