भारत के अफीम और धर्म के नशे में डूबे लोगों को सरकार और उसकी गिद्ध मीडिया नगारा बजा कर बताती रहती है कि अमीर धन्नासेठ के टैक्स के पैसों से देश चलता है, जिससे लोगों को दो वक्त की रोटी नसीब हो पाती है. 2014 में अन्तर्ब्राह्मांडिय बनी मोदी सरकार ने तो डंके की चोट पर लोगों को समझा दिया है कि वह केवल और केवल अमीरों के लिए ही काम करेगी, ताकि अमीरों से चंद टुकड़े लेकर वह गरीबों, जिसकी तादाद अब 80 करोड़ हो चुकी है, को 5 किलो अनाज देगी.
35 साल तक भीख मांगकर खाने वाला नरेन्द्र मोदी देश की जनता को भिखारी बना दिया है, जो अब 5 किलो अनाज पाने के लिए लाईन में लग गई है. अब जब पैंडोरा पेपर्स लीक के जरिए यह साबित हो चुका है कि ये अमीर धन्नासेठों ने कई ट्रिलियन डॉलर की बेहिसाब दौलत देश की जनता से चुराकर विदेशों में गुप्त रुप से छिपा रखा है, जिसके कारण ही देश की जनता भिखारी बन गई है और दाने दाने को मोहताज है.
तब यह नरेन्द्र मोदी के अमीर धन्नासेठों की सरकार बजाय उन अमीरों पर कार्रवाई करने और उन काले धनों को देश में लाने के लोगों को बरगलाने और उन अमीर धन्नासेठों की सुरक्षा में जी-जान से जुट गया है, जिसकी एक झलक हमने राकेश झुनझुनवाला के जूतों को चाटते हुए देख चुके हैं. बहरहाल, हम यहां पनामा पेपर्स लीक की तर्ज पर पैंडोरा पेपर्स को जानने की कोशिश करते हैं.
117 देशों के 600 खोजी पत्रकारों ने 14 कंपनियों की 1.2 करोड़ फाइलों को खंगालने के बाद कुछ नामचीन हस्तियों के चेहरे से नकाब उतारा है. इस डेटा को वॉशिंगटन डीसी स्थित इंटरनेशनल कॉन्सोर्शियम इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट यानी आईसीआईजे ने हासिल किया और दुनिया भर के 140 मीडिया संस्थानों ने अब तक के इस सबसे बड़े ग्लोबल इन्वेस्टिगेशन में हिस्सा लिया. इन धन्नासेठों ने अपने देश, अपने प्रशंसकों को मूर्ख बनाते हुए विदेशी बैंकों में टैक्स चोरी का पैसा जमा कर रखा है. क्या आप इन्हें कपड़ों से पहचान सकते हैं ?
पैंडोरा पेपर्स लीक में 64 लाख दस्तावेज़, लगभग 30 लाख तस्वीरें, 10 लाख से अधिक ईमेल और लगभग पांच लाख स्प्रेडशीट शामिल हैं. लीक फ़ाइलें बताती हैं कि कैसे दुनिया के कुछ सबसे शक्तिशाली लोग- जिनमें 90 देशों के 330 से अधिक राजनेता शामिल हैं, अपनी संपत्ति छिपाने के लिए गुप्त ऑफ़शोर कंपनियों (गुमनाम कंपनियों) का इस्तेमाल करते हैं.
इन गुमनाम कंपनियों के जरिए बेहिसाब दौलत छिपा कर रखा जाता है..आईसीआईजे के अनुमान के मुताबिक़ ये दौलत 5.6 ट्रिलियन डॉलर लेकर 32 ट्रिलियन डॉलर तक हो सकता है. यानी इन चंद लोगों के पास कई देशों की कुल बजट से भी ज्यादा दौलत मौजूद है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का कहना है कि टैक्स हेवन के इस्तेमाल से दुनिया भर में सरकारों को हर साल 600 अरब डॉलर के टैक्स का घाटा होता है.
पत्रकार गिरीश मालवीय लिखते हैं – पेंडोरा पेपर्स पर भारतीय मीडिया में अजीब-सी चुप्पी है. बिके हुए मीडिया ने 2016 में आए ‘पनामा पेपर्स’ के मामले को भी ऐसे ही दबा दिया था जबकि इस खुलासे ने कई देशों की सरकार बदल दी थी. इस बार भी पड़ोसी देश के प्रधानमंत्री इमरान के नजदीकियों की पेंडोरा पेपर में उपस्थिति को तो हेडलाइन बनाया जा रहा है लेकिन मोदी के नजदीकी अनिल अम्बानी, गौतम अडानी के भाई शांतिलाल अडानी, नीरव मोदी और किरण मजूमदार शॉ से संबंधित खुलासे पर कोई विश्लेषण नही है, सिर्फ सचिन तेंदुलकर को हेडलाइन बनाया जा रहा है.
कमाल की बात यह है मुकेश अम्बानी के भाई अनिल अम्बानी भारतीय कोर्ट के सामने कहते हैं कि वो दीवालिया हो गए हैं लेकिन इस खुलासे में पता चला है कि इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार अनिल अंबानी और उनके प्रतिनिधियों की जर्सी, ब्रिटिश वर्जिन आईलैंड्स और साइप्रस में 18 ऑफशोर कंपनियां हैं. यह सभी कंपनियां 2007 से 2010 के बीच बनी हैं, जिनमें से 7 कंपनियों ने कर्ज लिया और 1.3 बिलियन डॉलर (9648 करोड़ रुपये से ज्यादा) का निवेश किया.
यानी साफ-साफ मनी लांड्रिंग की जा रही है. कोई और देश होता तो अब तक अनिल अम्बानी जेल की रोटियां तोड़ रहे होते. सबसे चौकाने वाला नाम बायोकॉन की किरन मजूमदार शॉ का है. इसमें बताया गया है कि किरण मजूदमदार शाह के पति ने इनसाइडर ट्रेडिंग के आरोप में प्रतिबंधित किए जा चुके एक व्यक्ति की मदद से, एक ट्रस्ट की मदद से गड़बड़ी की है.
दरअसल इसी साल जुलाई में सेबी ने एलेर्गो कैपिटल प्राइवेट लिमिटेड और इसके सबसे ज्यादा शेयरधारक कुनाल अशोक कश्यप पर अगले एक साल तक शेयर मार्केट में ट्रेडिंग करने से रोक लगा दी थी. कुनाल पर गलत तरीके से साढ़े तीन साल में 12 फीसद के ब्याज के साथ 24.68 लाख रुपये कमाने के बाद यह कार्रवाई की गई थी. इसके अलावा बायोकॉन लिमिटेड के शेयरों में अंदरूनी व्यापार के लिए भी प्रत्येक पर 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया था.
उस समय सेबी को यह जानकारी नहीं थी कि कुनाल कश्यप जुलाई 2015 में मॉरिशस में बनी ग्लेनटेक इंटरनेशनल द्वारा बनाए गए डीनस्टोन ट्रस्ट के सेटलर हैं. ग्लेनटेक के 99 फीसद शेयर मैक्कलुम मार्शल शॉ के पास हैं और इस कंपनी के पास बायोकॉन के शेयर हैं. बता दें कि मैक्कलुम मार्शल शॉ एक ब्रिटिश सिटिजन हैं और 7630 करोड़ की बायोटेक्नोलॉजी इंटरप्राइज बायोकॉन लिमिटेट की एग्जक्यूटिव चेयरपर्सन किरन मजूमदार शॉ के पति हैं.
नीरव मोदी की कहानी तो खासी दिलचस्प है उस पर एक अलग से लेख लिखनी होगी. कहा जा रहा है कि पैंडोरा पेपर्स में पांच भारतीय राजनेताओं के नाम भी आए हैं, लेकिन उनके नाम सार्वजनिक नहीं किए गए हैं, यानी पिक्चर अभी बाकि है मेरे दोस्त.
गुमनाम कंपनियों की तादाद
अमीरों द्वारा अपने बेहिसाब दौलत को छिपाने के लिए गुमनाम कंपनियों को बनाया जाता है. ये वो कंपनियां होती है, जिसके असली मालिक का पता लगाना काफी मुश्किल होता है. दुनिया भर में इन गुमनाम कंपनियों की कितनी तादाद है, इसका सही आंकड़ा मिलना असंभव है, लेकिन विभिन्न जांच पड़तालों में इसकी जो बेहिसाब संख्या सामने आई है, वो होश उड़ाने वाली है. बीबीसी अपने एक रिपोर्ट में बताता है कि अमरीका में व्हाइट हाउस से महज़ कुछ दूरी पर, पूर्व-तटीय राज्य डेलवेयर में 945,000 गुमनाम कंपनियां मौजूद हैं, जो कि यहां की आबादी के लगभग बराबर है.
नेवाडा, एरिज़ोना और व्योमिंग के साथ ही डेलवेयर, अमरीका के उन चार राज्यों में है, जिसकी वित्तीय नियमों में ढीलेपन के कारण आलोचना हो चुकी है. वहां रजिस्टर्ड कई कंपनियों पर ‘घोस्ट कंपनी’ होने का भी शक है. यानी कि ऐसी कंपनी जो असल में मौजूद ही नहीं है. भ्रष्टाचार विरोधी अभियान चलाने वाले ट्रांन्सपेरेंसी इंटरनेशनल इन राज्यों की व्याख्या, ट्रांसनेशनल क्राइम हेवेन (अंतरदेशीय अपराध का स्वर्ग) की तरह करता है.
12000 कंपनियों की पनाहगाह द केमैन आइलैंड्स के यूग्लैंड हाउस मामले पर 2008 में न्यू हैंपशायर में एक बहस के दौरान राष्ट्रपति ओबामा ने कहा था, ‘वह या तो सबसे बड़ी इमारत है या फिर रिकॉर्ड के आधार पर सबसे बड़ा टैक्स घोटाला है.’ यूग्लैंड हाउस की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक़, अब इस इमारत में 18,000 कंपनियों का रजिस्टर्ड ऑफ़िस है.
देशों के पत्रकार जो इन टैक्स चोर धन्नासेठों की असलियत बार बार दुनिया के सामने लाते हैं, दरअसल वह यह जोखिम अपनी जिन्दगी की कीमत से चुकाते हैं. माल्टा में पनामा पेपर्स का पर्दाफाश करने वाली माल्टा की एक महिला पत्रकार-ब्लॉगर डेफ़ने कारूआना गलिट्स की एक कार बम धमाके में मार डाला गया. उन्होंने माल्टा के प्रधानमंत्री जोसेफ़ मस्कट और उनकी पत्नी के पनामा पेपर्स से जुड़े होने के आरोप लगाए थे.
पनामा पेपर्स लीक जिसने कई देशों की सरकारें बदल दी, पाकिस्तान तक के प्रधानमंत्री को सत्ता छोड़ना पड़ा, भारत में यह ऐसे फुस्स हो गया मानो यह कभी था ही नहीं. इसी तरह पैंडोरा पेपर्स लीक, पैगासस जासूसी कांड भी इस देश में कोई हलचल पैदा नहीं कर सकती. नृशंस सत्ता, उसकी टुकड़खोर मीडिया, कमजोर संवैधानिक संस्थायें और धर्म और अफीम के नशे में धुत्त देश की जनता आखिर इसकी परवाह ही कब करती है.
‘प्रतिभा एक डायरी’ से