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जनविरोधी, गैरजनतांत्रिक, निर्दयी, क्रूर और मनमाने तीन काले कानून

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,मुनेश त्यागी 

    पहली जुलाई 2024 को इंडियन पेनल कोड, सीआरपीसी और एविडेंस एक्ट भूतकाल की बात हो जाएंगे और उस दिन मोदी सरकार द्वारा बनाए गए तीन काले कानून लागू हो जाएंगे। उनके नाम है,,, भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम। इन कानूनों को लेकर बहुत सारे पूर्व आईएएस और आईपीएस अधिकारियों, बहुत सारे वकीलों और जनता में काफी रोष व्याप्त है। कई वकील संगठनों ने और कई काउंसिल बार काउंसिलों ने इन कानूनों को पहली जुलाई से लागू करने का विरोध किया है और सरकार से मांग की है कि इन कानून की पर्याप्त जांच व्यवस्था किए बिना इन्हें लागू नहीं किया जाना चाहिए।

      इन काले कानून के माध्यम से सरकार ने अनेक बलिदानों के बाद प्राप्त की गई आजादी छीन ली है और उस पर मनमानी और निरंकुश राजशाही और तानाशाही थोप दी है। इन तीनों कानूनों को सरकार, अंग्रेज़ी मानसिकता से छुटकारा पाने और जनता को जल्दी न्याय देने के नाम पर लाई है। जबकि हकीकत यह है कि सरकार ने केवल कुछ शब्द बदले हैं, सजा बढाई है, अन्याय करने वाले कारणों और प्रावधानों को नहीं हटाया और बदला है। नए कानूनों को लाकर सरकार ने भारत में मनुवादी न्याय प्रणाली लागू करने की ही कोशिश की है और संविधान द्वारा दी गई आजादी का हरण और अपहरण करने की कोशिश की है। इन कानूनों में सस्ता और सुलभ न्याय देने वाले प्रावधानों की बहुत कमी है।

      हकीकत यह है कि ये तीनों कानून सरकार के मनमानेपन और घनघोर अन्याय से भरपूर हैं। इन काले कानूनों पर जनता को या विपक्षी दलों को, वकील संगठनों या वकीलों को बहस करने का कोई मौका नहीं दिया गया है। इन तीनों कानून के लागू हो जाने के बाद देश में पुलिस राज कायम हो जाएगा, संवैधानिक अधिकारों का लगभग खत्मा हो जाएगा, लोगों के, खास तौर से विपक्षी दलों के कार्यकर्ताओं के बोलने, लिखने, प्रदर्शन करने और विरोध करने जैसे बुनियादी संवैधानिक अधिकारों का खत्म हो जाएगा। 

     इन काले कानून के लागू होने के बाद विपक्षी और सरकार विरोधियों को देशद्रोह के नाम पर कठोरतम और अकल्पनीय सजा और दंड दिये जायेंगे। ये तीनों काले कानून जनविरोधी, गैरजनतांत्रिक, मनमाने, निर्दयी, क्रूर और न्याय के रास्ते में बड़ी मुश्किलें पैदा करने वाले हैं। इन काले कानूनों में बहुत सारी खामियां हैं। इन कानूनों को सरकार ने जैसे बिना सोचे समझे या एक गहरी साजिश के बाद बनाया है और अब लागू करने जा रही है। आखिर क्या कारण है कि सरकार ने इन कानूनों को बनाते वक्त कानून के जानकारों और जनता से कोई विचार विमर्श नहीं किया और उनको इन कानूनों पर सुझाव देने का कोई समय और मौका नहीं दिया। इन काले कानूनों की कुछ खामियां इस प्रकार हैं,,,,

     इन कानूनों में सुधार की गुंजाइश को खत्म कर दिया गया है। एकांत कारावास की सजा मानवाधिकारों और भारतीय संविधान के प्रावधानों के खिलाफ है। सर्वोच्च न्यायालय के बहुत सारे फैसलों के बाद भी मौत की सजा को खत्म नहीं किया गया है। कई अपराधों में दी जाने वाली सजाओं को तर्कहीन, मनमाने और अनुचित तरीके से बढ़ा दिया गया है। पोक्सो कानून के साथ जबरदस्त टकराव है।

ये कानून महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों पर बहुत बड़ा कुठाराघात करने जा रहे हैं। वैवाहिक बलात्कार को बलात्कार की श्रेणी से बाहर कर दिया गया है। अलगाव के दौरान पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ जबरदस्ती यौन संबंध बनाने को बलात्कार की श्रेणी से बाहर कर दिया गया है।

      राजद्रोह की धारा 152 को और ज्यादा मनमानी, कठोर और दुरुपयोगी बना दिया गया है। इन काले कानूनों के द्वारा असहमति और विरोध की आवाज का गला घोट दिया गया है। पुलिस की हिरासत में हुई मौत या दी गई यातनाओं को अपराध नहीं माना गया है। इस प्रकार पुलिस को अभियुक्तों के साथ जुल्म ज्यादतियां करने की पूरी छूट दे दी गई है।

     इन काले कानूनों के द्वारा लोक सेवकों के खिलाफ धरने या प्रदर्शन करने को अपराध घोषित कर दिया गया है, यानी अब अगर परेशान जनता किसी अधिकारी के शोषण, जुल्म और अन्यायपूर्ण व्यवहार के खिलाफ कोई धरना या प्रदर्शन करेगी तो जनता को ही अपराधी माना जाएगा। 

    पुलिस हिरासत 15 दिन से बढ़कर 90 दिन कर दी गई है जो पुलिस को मनमाने अधिकार देती है। अब पुलिस अपने आकाओं के इशारों पर खुलकर खेलेगी और जनता के साथ बेरोकटोक और निर्भय होकर अकल्पनीय, गैरकानूनी, मनमानी, निर्दयतापूर्वक और निरंकुश कार्यवाही करेगी। कॉग्निजेबल ऑफेंस में पुलिस को एफआईआर न करने का विवेकाधिकार दे दिया गया है। पुलिस को दी गई शक्तियों के कारण पुलिस अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करेगी, सबूत को नष्ट करें करेगी या गायब कर देगी और पीड़ित को अकल्पनीय हानि पहुंचाई जाएगी।

     इन काले कानूनों के द्वारा राज्य सरकारों के सजा माफ करने के अधिकार पर रोक लगा दी गई है। लोक सेवक के खिलाफ मुकदमा दायर नहीं किया जा सकता और उसका अभियोजन लगभग असंभव बना दिया गया है। विचाराधीन कैदी को जमानत के अधिकार से वंचित कर दिया गया है। अग्रिम जमानत देने के कोई दिशा निर्देश नहीं दिए गए हैं।

    इन कानूनों में अभियोजन निदेशक की मनमानी नियुक्ति के प्रावधान कर दिए गए हैं। अब सरकार अपनी मनमानी से, अपने चाहे और अपनी राजनीति को आगे बढ़ाने वाले लोगों को अभियोजन निदेशक बनाएगी। इलेक्ट्रॉनिक ट्रायल में सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं किया गया है जिसे जान पूछ कर विपक्षियों के खिलाफ प्रयोग किया जाएगा।

     डिजिटल साक्ष्य से छेड़छाड़ और हेरा फेरी करने से रोकने के लिए पर्याप्त इंतजाम नहीं किए गए हैं।इन कानूनों में कई सारे प्रावधान बहुत दमनकारी है, अलोकतांत्रिक, मनमाने, क्रूरतापूर्ण और संविधान की मूल भावनाओं के खिलाफ है। इन कानूनों में मौजूद कई सारे प्रावधान प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ हैं जो किसी भी अवस्था में वादकारियों के साथ न्याय करने की स्थिति में नहीं रह गये हैं।

     पूरी न्यायपालिका यानी जज, वकील, पुलिस अभी इन कानूनों में शिक्षित, प्रशिक्षित नहीं है। इन कानूनों को जल्दबाजी में लागू करने से मुकदमों के निस्तारण में देरी होगी, अदालतों में मुकदमों की संख्या बढ़ेगी जिससे विचाराधीन कैदियों की संख्या में बढ़ोतरी होगी। इससे जनता को सस्ता और सुलभ न्याय नहीं बल्कि अकल्पनीय और दूर्भावनापूर्ण तरीके से एक साजिश के तहत थोपा गया अन्याय मिलेगा।

     यह बहुत ही अचंम्भे की बात है कि सरकार सस्ता और सुलभ न्याय देने की बात कर रही है, मगर वह इस बात को छुपा रही है कि यहां वादकारियों के साथ अन्याय क्यों हो रहा है? वह उन परिस्थितियों का उल्लेख नहीं कर रही है जिनकी वजह से जनता को सस्ता और सुलभ न्याय नहीं मिल रहा है और उसके साथ लगातार अन्याय होता चला जा रहा है। हमारे देश में अन्याय होने के मुख्य कारण हैं कि हमारे देश में 5 करोड़ से ज्यादा मुकदमें अदालतों  में पिछले कई कई सालों से लंबित हैं, मुकदमों के अनुपात में जज नहीं हैं , स्टेनो नहीं हैं , सरकारी कर्मचारी नहीं हैं, मुकदमा की अनुपात में अदालतें नहीं हैं, अदालतों में वकीलों और वादकारियों के बैठने की समुचित व्यवस्था नहीं है, न्याय व्यवस्था पर होने वाले खर्चे में कोई सुधार या बढ़ोतरी नहीं की जा रही है। बस सरकार सिर्फ खाना पूर्ति करने, वाहवाही लूटने और जनता को बहकाने का काम कर रही है। उसका जनता को न्याय देने में कोई विश्वास नहीं है। पिछले 10 सालों से हम देखते चले आ रहे हैं कि जनता को सस्ता और सुलभ न्याय देना, उसके एजेंडे या विचार विमर्श में ही नहीं है। देश की जनता ने उसे कभी न्याय पर बात करते नहीं देखा है।

      भारत के अनेक वकीलों और बहुत सारे वकील संगठनों ने इन काले कानूनों का विरोध किया है। पूरे देश में वकील इन कानून में मौजूद प्रावधानों का विरोध कर रहे हैं और सरकार से मांग कर रहे हैं कि इन कानूनों को लेकर, इनके जन विरोधी, क्रूर और अन्यायपूर्ण प्रावधानों पर बहस हो, वकीलों की बात सुनी जाए, सरकार उनके सुझावों पर गम्भीरता से गौर करे और इन कानूनों में पर्याप्त सुधार होने तक, इन कानून को लागू करने से रोका जाए। अखिल भारतीय स्तर का वकीलों का राष्ट्रीय संगठन ऑल इंडिया लॉयर्स यूनियन राष्ट्रीय स्तर पर इन कानूनों के लागू करने का मजबूती से विरोध कर रहा है।

 वकीलों में इन कानूनों का विरोध बढ़ता जा रहा है। कई वकील संगठनों ने और कई बार राज्य एसोसिएशनों घोषित किया है कि वे 1 जुलाई 2024 को इन कानूनों के लागू होने का विरोध करेंगे। मामले की गम्भीरता को देखते हुए, भारत की बार काउंसिल को वकीलों से यह अपील करनी पड़ी है कि भारत की बार काउंसिल, इन कानूनों को लेकर सरकार से बात करेगी और उनके अन्याय पूर्ण प्रावधानों को दूर करने का पूर्ण प्रयास करेगी। इन कानूनों के खिलाफ वकीलों में छाई भावनाओं और संवेदनाओं को देखते हुए भारत की बार काउंसिल को यह प्रस्ताव करने को मजबूर होना पड़ा है।

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