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रिलायंस इंफ्रा के पक्ष में आया 4600 करोड़ का मध्यस्थता फैसला: 48 घंटों में 1000 करोड़ जमा करेगी DMRC

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नई दिल्ली
दिल्ली मेट्रो रेल निगम (DMRC), दिल्ली एयरपोर्ट मेट्रो एक्सप्रेस प्राइवेट लिमिटेड के पक्ष में आए 4,600 करोड़ रुपये के मध्यस्थता फैसले में अगले 48 घंटों में एक एस्क्रो खाते में 1,000 करोड़ रुपये जमा करेगी। यह बात डीएमआरसी ने सोमवार को दिल्ली उच्च न्यायालय को सुनवाई के दौरान बताई। डीएएमईपीएल, अनिल अंबानी की रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर की अनुषंगी इकाई है। डीएमआरसी ने यह भी कहा कि वह डीएएमईपीएल को देय 4,600 करोड़ रुपये के भुगतान के एवज में उस पर बकाया कर्ज का भार उठाने के लिए भी तैयार है।

अनिल अंबानी (Anil Ambani) की अगुवाई वाले रिलायंस ग्रुप (Reliance Group) के तहत आने वाली रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर की अनुषंगी इकाई डीएएमईपीएल, डीएमआरसी की एयरपोर्ट मेट्रो लाइन के विकास से जुड़ी हुई थी। रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर की इकाई ने 2008 में दिल्ली मेट्रो के साथ देश का पहला प्राइवेट सिटी रेल प्रॉजेक्ट 2038 तक चलाने का अनुबंध किया था। 2012 में शुल्क और संचालन पर विवादों के बाद, अंबानी की फर्म ने राजधानी के एयरपोर्ट मेट्रो प्रॉजेक्ट का संचालन बंद कर दिया और अनुबंध के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए दिल्ली मेट्रो के खिलाफ मध्यस्थता का मामला शुरू किया। साथ ही टर्मिनेशन फीस भी मांगी।

डीएमआरसी की तमाम याचिकाएं हो चुकी हैं निरस्त
सुप्रीम कोर्ट के दो-न्यायाधीशों के पैनल ने इसी साल सितंबर माह में 2017 के आर्बिट्रेशन अवॉर्ड को अनिल अंबानी की इकाई के पक्ष में बरकरार रखा। रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, मध्यस्थता न्यायाधिकरण का अवॉर्ड ब्याज सहित 46.6 अरब रुपये (63.2 करोड़ डॉलर) से अधिक का है। मध्यस्थता पंचाट ने डीएमआरसी को आदेश दिया था कि वह डीएएमईपीएल को 4,600 करोड़ रुपये का भुगतान करे। इस बारे में डीएमआरसी की तरफ से दायर तमाम याचिकाएं निरस्त हो चुकी हैं। उच्चतम न्यायालय ने भी गत 23 नवंबर को अपने फैसले पर पुनर्विचार की मांग वाली याचिका खारिज कर दी थी।

फाइनेंस की कमी से जूझ रही दिल्ली मेट्रो!
न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत से डीएमआरसी की तरफ से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वित्त की कमी से जूझ रही दिल्ली मेट्रो अचानक आई इस देनदारी से निपटने के उपाय तलाशने में लगी है। मेहता ने कहा, ‘‘हम संभावनाओं की तलाश में लगे हुए हैं। अगर हमें भुगतान करना है तो हमें उसके लिए बैंकों से उधार लेना होगा। हम डीएएमईपीएल का कर्ज अपने ऊपर ले सकते हैं और फिर हम बैंकों से इसका निपटान खुद करेंगे।’’ डीएमआरसी के ही वकील पराग त्रिपाठी ने कहा कि जब डीएमआरसी खुद बैंकों का निपटान करेगी, तो उसमें काफी लचीलापन रहने की संभावना होगी क्योंकि इसमें जनहित का मसला भी शामिल है।


डीएएमईपीएल का क्या है कहना
दूसरी तरफ डीएएमईपीएल के वकील राजीव नायर ने कहा कि इस बारे में उन्हें न्यायालय से निर्देश लेने में कोई आपत्ति नहीं है लेकिन पहले देय रकम का निर्धारण हो जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि उनकी गणना के हिसाब से यह रकम 7,000 करोड़ रुपये से भी अधिक बनती है। नायर ने कहा कि डीएमआरसी को पहले 50 फीसदी रकम अदालत में जमा करनी चाहिए। इस पर सॉलिसिटर जनरल मेहता ने ऐतराज जताते हुए कहा कि डीएमआरसी के लिए अभी 1,000 करोड़ रुपये से अधिक जमा करा पाना संभव नहीं है।

इस पर न्यायालय ने डीएमआरसी को 48 घंटों में 1,000 करोड़ रुपये एक एस्क्रो खाते में जमा करने का निर्देश देते हुए कहा कि उसे भुगतान की कुल रकम के बारे में भी निर्देश लेने होंगे। मामले की अगली सुनवाई 22 दिसंबर को होगी।

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