सूडान में सेना ने रविवार को ओबेद शहर पर एक साल से ज्यादा समय से चल रही घेराबंदी को तोड़ दिया। इससे दक्षिण-मध्य सूडान में महत्वपूर्ण रणनीतिक क्षेत्र तक पहुंच बहाल हुई और कुख्यात अर्धसैनिक समूह “रैपिड सपोर्ट फोर्स” (आरएसएफ) के खिलाफ युद्ध में महत्वपूर्ण आपूर्ति मार्ग मजबूत हो सके। बता दें कि संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय अधिकार समूहों के अनुसार, खार्तूम और अन्य शहरों में हुए संघर्ष में भारी अत्याचार हुए हैं, जिसमें सामूहिक बलात्कार और जातीय हिंसा भी शामिल हैं। इन घटनाओं को युद्ध अपराध और मानवता के खिलाफ अपराध माना जा रहा है।

सैन्य प्रवक्ता ने दी जानकारी
सैन्य प्रवक्ता ब्रिगेडियर जनरल नबील अब्दुल्ला ने कहा कि सेना ने व्हाइट नाइल प्रांत में आरएसएफ को उसके अंतिम गढ़ से भी खदेड़ दिया। इससे पहले अप्रैल 2023 में सूडान में सेना और आरएसएफ के बीच बढ़ते तनाव के बाद युद्ध शुरू हो गया था। इसके बाद से सूडान में युद्ध और अराजकता फैली हुई है। सेना ने अल-सय्यद धुरी में ओबेद शहर की सड़क को फिर से खोलने में सफलता हासिल की, जो उत्तरी कोर्डोफन प्रांत की राजधानी है। ओबेद शहर में एक बड़ा एयरबेस और सेना का महत्वपूर्ण इन्फैंट्री डिवीजन है। यह शहर खार्तूम को दक्षिण दारफुर प्रांत की प्रांतीय राजधानी न्याला से जोड़ने वाली रेलवे पर स्थित है।
वित्त मंत्री ने सेना की सराहना की
ओबेद पर सेना की प्रगति को वित्त मंत्री जिब्रील इब्राहिम ने भी सराहा। उन्होंने इसे उत्तरी दारफुर प्रांत की राजधानी एल-फशर की घेराबंदी हटाने और कोर्डोफन क्षेत्र में मानवीय सहायता पहुंचाने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम बताया। सेना ने 2023 के सितंबर में एक आक्रामक अभियान शुरू किया था, जिसके बाद से आरएसएफ को कई मोर्चों पर हार का सामना करना पड़ा। सेना ने रणनीतिक क्षेत्रों और खार्तूम के आसपास के क्षेत्रों पर फिर से कब्जा कर लिया है और अब रिपब्लिकन पैलेस पर कब्जा करने के करीब है।
इसके अलावा, आरएसएफ और उसके सहयोगी कई अन्य युद्ध क्षेत्रों में भी असफल रहे हैं, जैसे कि गीज़ीरा प्रांत में और देश की सबसे बड़ी तेल रिफाइनरी पर भी सेना का कब्जा हो गया है। हालांकि, दो साल से चल रहे इस संघर्ष का कोई स्थायी समाधान नहीं निकला है और अंतर्राष्ट्रीय दबाव और मध्यस्थता के प्रयास भी नाकाम रहे हैं। इस बीच, आरएसएफ और उसके सहयोगियों ने एक समानांतर सरकार बनाने का भी कदम उठाया है, जिससे देश के विभाजन की चिंताएँ बढ़ गई हैं।