इन दिनों झुलसा देने वाली गर्मी से जन-जीवन अस्त-व्यस्त है। देश के कई हिस्सों में तापमान 50 डिग्री सेल्सियस के करीब पहुंच रहा है। अमेरिकी गैर-लाभकारी संस्था बर्कले अर्थ के डाटा से पता चलता है कि मई, 2024 दुनिया के अब तक के इतिहास में सबसे गर्म मई है। इन दिनों पूरे उत्तर-पश्चिमी भारत में भीषण गर्मी का प्रकोप जारी है। दिल्ली, गुरुग्राम, हरियाणा, राजस्थान, बिहार, उत्तर प्रदेश में अधिकतम तापमान इस सच्चाई को साफ बयान कर रहे हैं। लू लगने और गर्मी जनित बीमारियों की वजह से अस्पतालों के बाह्य रोगी विभाग में पहुंचने वाले मरीजों की संख्या बढ़ गई है।
पूरे एशिया में रिकॉर्ड तोड़ गर्मी पड़ रही है। वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन ग्रुप के एक नए अध्ययन से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन ने अप्रैल-मई में पूरे एशिया में हीटवेव्स को बढ़ा दिया था, जिससे अरबों लोग प्रभावित हुए। अप्रैल-मई में, एशिया के कई क्षेत्रों में अब तक के सबसे गर्म दिन दर्ज किए गए। म्यांमार, लाओस, वियतनाम और फिलीपीन में अभूतपूर्व उच्च तापमान देखा गया। भारत के कई हिस्सों में दोपहर का तापमान 46-48 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया, जबकि युद्धरत फलस्तीन और इस्राइल को भी 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक की गर्मी का सामना करना पड़ा है। जाहिर है, जलवायु परिवर्तन ने लोगों का जीना दूभर कर दिया है।
रिकॉर्ड तोड़ गर्म महीनों का सिलसिला जारी रहा, तो गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले एशियाई लोगों के लिए जीवनयापन मुश्किल हो जाएगा। क्लाइमेट सेंट्रल ने कहा है कि भारत में 54.3 करोड़ लोगों को अप्रैल-मई के दौरान कम से कम एक दिन भीषण गर्मी का अनुभव होगा। साथ ही दिल्ली में तो गर्मी और लू कहर बरपा रही है। जर्मन वॉच द्वारा जारी ‘ग्लोबल क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स’ यानी वैश्विक जलवायु संकट सूचकांक के अनुसार, भारत अत्यधिक गर्मी की मार झेल रहा है।
ग्लोबल क्लाइमेट शिफ्ट इंडेक्स (सीएसआई) के अनुसार, मई के दौरान जो गर्मी पड़ रही है, वह क्लाइमेट चेंज की वजह से सामान्य से तीन से छह डिग्री सेल्सियस अधिक है। यदि जलवायु परिवर्तन नहीं होता, तो तापमान तीन से छह डिग्री कम रहता।
जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र का अंतर-सरकारी पैनल (आईपीसीसी) अपनी रिपोर्ट में बार-बार बता रहा है कि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी नहीं आई, तो 50 साल के अंदर एक तिहाई इन्सानों पर ‘लगभग असहनीय’ गर्मी की मार पड़ेगी। प्रोसिडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऐंड साइंसेज जर्नल में कुछ साल पहले की गई यह भविष्यवाणी अब साफ तौर पर हकीकत में बदलती नजर आ रही है कि ‘लगातार बढ़ते तापमान के कारण 3.5 अरब लोगों को उस आबोहवा से वंचित होना पड़ेगा, जिसका इन्सान पिछले 6,000 साल से आदी रहा है।’
दुनिया की लगभग एक तिहाई आबादी को आशियाना देने वाला भूभाग (एशिया) ग्लोबल वार्मिंग के चलते सहारा क्षेत्र के सबसे गर्म हिस्सों जितना गर्म हो रहा है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा हाल ही में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, अब अगर दुनिया के सभी देश अपनी वर्तमान उत्सर्जन-कटौती प्रतिज्ञाओं ( एनडीसी) को पूरा कर भी लें, तो दुनिया इस शताब्दी में किसी न किसी समय ग्लोबल वार्मिंग के 2.5 और 2.9 डिग्री स्तर के बीच के तापमान तक पहुंच जाएगी। इन्सानी गतिविधियों ने जलवायु को इतना गर्म कर दिया है, जो कम से कम पिछले 2,000 वर्षों में सबसे अधिक है और पिछला दशक 125,000 वर्षों में से सबसे गर्म दशक था। धरती की गर्मी अपने में सोख कर समुद्र भी गर्म होकर उबल रहे हैं, विशेषकर हिंद महासागर। हिंद महासागर का तापमान अब तक की रफ्तार से कहीं ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है। लगातार बढ़ने से इसकी सतह का तापमान साल भर 28 डिग्री सेल्सियस से अधिक रहने का अनुमान है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि पहले हिंद महासागर में अत्यधिक गर्मी के हर साल 20 दिन होते थे, लेकिन बहुत जल्द ये दस गुना बढ़ जाएंगे। अब हर वर्ष अत्यधिक गर्मी के दिन 220 से 250 हो जाएंगे।
जाहिर है, धरती से लेकर समुद्र तक अत्यधिक गर्मी की मार झेल रहे हैं। भीषण गर्मी समाज के हर वर्ग को, हर जीव-जंतुओं के जीवन को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है। हालांकि अलग-अलग लोगों और जीवों पर इसका असर अलग अलग पड़ता है, लेकिन सबसे ज्यादा प्रभावित समाज के गरीब और वंचित तबके के लोग होते हैं।