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सचिन पायलट के बगैर अशोक गहलोत का विधायकों से फीडबैक शुरू

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एस पी मित्तल, अजमेर

17 अप्रैल को जहां मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने लिए कांग्रेस और निर्दलीय विधायकों से फीडबैक लेने की शुरुआत की वही प्रतिद्वंदी नेता सचिन पायलट ने शाहपुरा, खेतड़ी और जयपुर के कार्यक्रमों में भाग लिया। पायलट के समर्थकों का कहना है कि सचिन पायलट के कार्यक्रम पहले ही निर्धारित हो गए, जबकि गहलोत की ओर से फीडबैक लेने की घोषणा की गई। 17 अप्रैल को सीएम गहलोत ने प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा और प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा के साथ अजमेर और जोधपुर संभाग के विधायकों की राय जानी जब सीएम गहलोत स्वयं राय ले रहे है तो फिर विधायक की राय का अंदाजा भी लगाया जा सकता है। गहलोत ने अपने समर्थन में 80 विधायकों का इस्तीफा करवाकर अपना बहुमत पहले ही साबित कर रखा है। विधायकों का फीडबैक कितना मायने रखता है, यह तो सीएम अशोक गहलोत ही जानते हैं, लेकिन 17 अप्रैल को जयपुर में रहते हुए भी प्रतिद्वंदी नेता सचिन पायलट फीडबैक के आयोजन में शामिल नहीं हुए। पायलट अजमेर संभाग के टोंक से विधायक है। पायलट ने अपने तय कार्यक्रम के अनुसार शाहपुरा, खेतड़ी और जयपुर के कार्यक्रम में भाग लिया। यानी पायलट के बगैर ही फीडबैक लिया जा रहा है। फीडबैक 20 अप्रैल तक चलेगा। गहलोत ये दिखाने चाहते हैं कि राजस्थान में अधिकांश विधायक और कांग्रेस संगठन उनके साथ है।

रंधावा सहमे नजर आए:
फीडबैक लेने वालों में गहलोत और डोटासरा के साथ-साथ प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा भी मौजूद रहे, लेकिन 17 अप्रैल को रंधावा सहमे हुए नजर आए। आमतौर पर रंधावा जब भी जयपुर आते हैं तो मीडिया के सामने कुछ न कुछ कहते हैं। 17 अप्रैल को सर्किट हाउस में मीडिया कर्मियों ने रंधावा से संवाद करने की बहुत कोशिश की लेकिन सफलता नहीं मिली। असल में गत सप्ताह दिल्ली में जो हलचल हुई उसमें रंधावा का बैकफुट पर आना पड़ा। पायलट की 11 अप्रैल के अनशन पर रंधावा ने पायलट के विरोध में कार्यवाही की बात कही, लेकिन बाद में अपने बयान से रंधावा को पलटना पड़ा। रंधावा को अभी भी पता है कि दिल्ली में कांग्रेस का राष्ट्रीय नेतृत्व सचिन पायलट को महत्व देता है। जयपुर में कितना भी फीडबैक हासिल कर लिया जाए, लेकिन अंतिम फैसला राष्ट्रीय नेतृत्व ही करेगा। गहलोत के समर्थक माने या नहीं लेकिन विधानसभा चुनाव के मद्देनजर राजस्थान में कांग्रेस में बड़े बदलाव होंगे। राष्ट्रीय नेतृत्व अकेले अशोक गहलोत के दम पर चुनाव लडऩे पर सहमत नहीं है।

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