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आसिफ की प्यास बनाम हताश कथित हिंदुत्व ….!

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सुसंस्कृति परिहार 

एक नाबालिक 14वर्षीय हिंदुस्तानी बालक आसिफ़ को मंदिर की टंकी से पानी पीने  पर नन्हें बालक के पिता और उसका नाम जानने के बाद, बुरी तरह पीटने की कलंक कथा देश के कोने-कोने में पहुंच चुकी है ।तमाम देशवासी स्तब्ध हैं इस घटना से।सारी आसिफ़ केम्पेन चल रहा है पर उत्तर प्रदेश सरकार के योगी जी और प्रधानमंत्री मोदी के मुखारबिंद से संवेदना के दो शब्द भी ना निकलना । गुनहगार के प्रति सहानुभूति ही प्रदर्शित करता है  जबकि पुलिस ने गुनहगार को गिरफ्तार कर अपना दायित्व वहन ज़रुर कर लिया गया है।     

              इस घटना का मासूम आसिफ़,उसके परिवार और उनकी कौम पर क्या असर हुआ होगा ? यह विचारणीय है। इससे पहले कश्मीर में नन्हीं मासूम आसिफ़ा को हम कैसे भूल सकते हैं जिसे मंदिर जैसी पवित्र जगह में अपवित्र कर  मौत के घाट उतारा गया था। इसमें शामिल लोगों के पक्ष में कथित हिंदुत्व वादी पार्टी ने जुलूस भी निकाला था। कितनी माब लिंचिंग की घटनाओं को अंजाम दिया गया ।बेकसूर लोग इसके शिकार हुए।ख़ास बात ये इन तमाम घटनाओं की कोई ख़ास प्रतिक्रिया इनके समाज की ओर से नहीं आई।इसे हिंदुत्व की सफलता के रुप में नहीं देखा जाना चाहिए। ख़ामोशी भारी भी पड़ सकती है आखिरकार सहने भी एक सीमा होती है ।

               उत्तर प्रदेश के ग़ाज़ियाबाद शहर की इस घटना की चर्चा पाकिस्तान सहित अन्य देशों तक भी पहुंची ही होगी।तभी तो पाकिस्तान के अंग्रेज़ी अख़बार डॉन ने लिखा है कि एक मुसलमान लड़के को मंदिर में प्रवेश करने और पानी पीने के लिए बुरी तरह पीटा गया।अख़बार लिखता है कि गुरुवार को ग़ाज़ियाबाद ज़िले (यूपी) के डासना कस्बे में मंदिर के केयरटेकर श्रृंगी नंदन यादव ने मंदिर से पानी पीने के लिए 14 वर्षीय मुस्लिम लड़के की पिटाई की.अख़बार ने अपनी रिपोर्ट में मुस्लिम लड़के के पिता का बयान छापा है, जिन्होंने कहा, “मेरा बेटा प्यासा था, इसलिए वो मंदिर में लगी एक टंकी से पानी पीने चला गया. उससे उसकी पहचान पूछने के बाद उसे पीटा गया. उसे काफ़ी चोट आई है. उसके सिर में चोट है. यह सरासर ग़लत है. क्या पानी का भी कोई धर्म होता है? मुझे नहीं लगता कि किसी भी धर्म में प्यासे को पानी देने से मना किया गया है. इस मंदिर में भी पहले इस तरह की पाबंदी नहीं थी, लेकिन कुछ नियम अब बदले गये हैं.”इधर ट्विटर पर लोग sorry asif हैसटैग के साथ लिख रहे है की आसिफ आइंदा कभी प्यास लगे तो गुरुद्वारा चले जाना वहां कोई धर्म जाति नहीं पूछता ।यह हिंदु समाज को सोचना होगा कि भारत के सनातन धर्म को किस मोड़ पर विकृत होता देख रहे हैं जहां वसुधैव कुटुंबकम् की बात की जाती रही हो वहां जातिवाद के नाम पर एक धर्म विशेष के प्रति इस कदर नफरत का भाव किसने और क्यों पैदा किया ?संसार का कोई भी धर्म इस तरह के द्वेष भाव को नहीं फैलाता।वैसे भी दुनिया में हिंदु धर्मावलंबियों की संख्या ज़्यादा नहीं है तिस पर इस तरह की नीतियों को प्रशय देने वाले हिंदुत्व की रक्षा नहीं कर रहे वल्कि उसको नष्ट कर रहे हैं ।ऐसे लोगों को  मंदिरों से ना केवल हटाना होगा बल्कि वहां भी प्रहार करने की आवश्यकता है जहां से ऐसे घृणित विचार जन्म ले रहे हैं ।इस पर अंकुश इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि यह संविधान विरोधी कृत्य है साथ ही साथ इंसानियत के भी खिलाफ दष्टता का प्रतीक है ।ऐसे दुष्कर्मी को कठोरतम दंड दिया जाना चाहिए।

            यह तय है कि पिछले छै सात साल में भारत में जो राजनैतिक कसाव के लिए जो वैचारिक बदलाव आया है वह वोट की खातिर भले ही फायदेमंद रहा हो लेकिन अब समाज सचेत और सावधान हुआ है ।सारी आसिफ़ इसी विश्वास को जताता है उम्मीद है विविध धर्मों के साथ हमारा देश अल्लामा इक़बाल को सदैव याद रखेगा ।सारे जहां से अच्छा हिंदोस्ता हमारा।अब कोई आसिफ़ और,आसिफा परेशान नहीं होगी ।ना हु कोई पहलू खान और अख़लाक हलाक होंगे।हताश नये कथाकथित हिंदुत्ववादियों की समझ को सही दिशा देने की महती आवश्यकता है और समाज को ही इस काम की जिम्मेदारी लेनी होगी ।वोट की खातिर धर्मों से छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए।

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