दिल्ली में पहली बार विधानसभा चुनाव 1952 को हुए थे। उस समय कुल 48 सीटों पर चुनाव हुए, जिसमें कांग्रेस ने 39 सीटों पर जीत हासिल की और बहुमत प्राप्त किया। इसके बाद चौधरी ब्रह्मप्रकाश को दिल्ली का पहला मुख्यमंत्री बनाया गया, लेकिन उनका कार्यकाल विवादों में घिर गया। इसके बाद सरदार गुरमुख निहाल सिंह को दूसरा मुख्यमंत्री बनाया गया।

1956 में विधानसभा और मंत्रिपरिषद भंग:
1956 में राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिशों के बाद दिल्ली की विधानसभा और मंत्रिपरिषद को भंग कर दिया गया। इसके बाद दिल्ली में केंद्र का सीधा शासन लागू किया गया। यह दिल्ली की राजनीति के लिए एक बड़ा बदलाव था और इसने दिल्ली के प्रशासनिक ढांचे को नया रूप दिया।
मेट्रोपॉलिटन काउंसिल का गठन (1966):
दिल्ली में लोकतांत्रिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए 1966 में दिल्ली प्रशासन अधिनियम लागू किया गया, जिसके तहत मेट्रोपॉलिटन काउंसिल का गठन हुआ। इस काउंसिल में 56 सदस्य चुने जाते थे, जबकि 5 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत होते थे। काउंसिल का काम दिल्ली के प्रशासन को संभालना था, लेकिन यह केवल सलाहकार भूमिका निभाती थी, क्योंकि इसके पास विधायी शक्तियां नहीं थीं।
मेट्रोपॉलिटन काउंसिल का कार्यकाल (1966-1990):
1966 से लेकर 1990 तक मेट्रोपॉलिटन काउंसिल दिल्ली के प्रशासन का संचालन करती रही। इस दौरान कई महत्वपूर्ण कार्यकारी पार्षद बने, जिनमें मीर मुश्ताक अहमद, विजय कुमार मल्होत्रा, केदार नाथ साहनी और जग प्रवेश चंद्र जैसे नेता शामिल थे। हालांकि, काउंसिल को विधायी शक्तियां नहीं थीं, जिससे इसका कार्यक्षेत्र सीमित था।
दिल्ली को फिर से विधानसभा कैसे मिली?
1987 में केंद्र सरकार ने सरकारिया समिति का गठन किया, जिसका उद्देश्य दिल्ली के प्रशासन से जुड़ी समस्याओं का समाधान ढूंढना था। समिति ने अपनी रिपोर्ट में यह सिफारिश की कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता, लेकिन दिल्ली की जनता के मामलों को संभालने के लिए एक विधानसभा दी जा सकती है। इस सिफारिश को ध्यान में रखते हुए 1991 में संविधान के 69वें संशोधन को पारित किया गया, जिसके तहत दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) का विशेष दर्जा मिला और फिर से दिल्ली विधानसभा का गठन हुआ।
1993 में हुआ पहला विधानसभा चुनाव:
37 साल बाद 1993 में दिल्ली में विधानसभा चुनाव हुए। इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने 49 सीटों पर जीत हासिल की और मदन लाल खुराना को दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाया। हालांकि, यहां पर बीजेपी सरकार चलाने में विफल रही। उन्हें कम समय में 3 बार मुख्यमंत्री बदलने पड़े। 26 फरवरी 1996 को साहिब सिंह वर्मा को मुख्यमंत्री बना दिया गया, लेकिन 12 अक्तूबर 1998 को उनको हटा दिया गया और बीजेपी ने सुष्मा स्वराज को नया मुख्यमंत्री घोषित कर दिया। पार्टी के अंदर कार्यकाल के दौरान कलह जारी रही और फिर 1998 में सरकार फिर टूटी तो दोबारा हुए चुनावों में कांग्रेस ने जीत हासिल कर बीजेपी को झटका दे दिया।
शीला दीक्षित लगातार 3 बार रहीं मुख्यमंत्री
शीला दीक्षित (कांग्रेस) ने तीन बार दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। उन्होंने 1998 से 2013 तक लगातार मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया और उनके कार्यकाल में दिल्ली में कई महत्वपूर्ण विकास कार्य हुए।

2013 में आया था नया मोड़
दिल्ली में चुनावी इतिहास में एक बड़ा मोड़ 2013 में आया, जब आम आदमी पार्टी (AAP) ने अपनी शुरुआत की। यह पार्टी अरविंद केजरीवाल द्वारा 2012 में बनाई गई थी। 2013 के विधानसभा चुनाव में AAP ने धमाकेदार शुरुआत की और दिल्ली विधानसभा में 70 सीटों में से 28 सीटें जीतकर दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी। पार्टी ने इस स्थिति में कांग्रेस से समर्थन प्राप्त किया, जिसके बाद अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली।
4. 2015 में AAP की ऐतिहासिक जीत
2015 में हुए विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की। AAP ने 70 में से 67 सीटों पर विजय प्राप्त की, जबकि भाजपा और कांग्रेस को बहुत कम सीटें मिलीं। यह एक निर्णायक जनादेश था, जिसने यह स्पष्ट कर दिया कि दिल्ली की जनता अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में विश्वास रखती थी। इस जीत के बाद, AAP ने दिल्ली में अपने शासन को मजबूत किया और कई जनहित योजनाओं की शुरुआत की।
5. 2019 में फिर AAP भारी
दिल्ली में 2019 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने शानदार प्रदर्शन किया। दिल्ली की 7 लोकसभा सीटों में से BJP ने 6 सीटों पर जीत हासिल की। यह दिल्ली में BJP की बढ़ती हुई प्रभावी स्थिति का संकेत था। हालांकि, दिल्ली विधानसभा चुनाव में AAP ने फिर से 2020 में जीत हासिल की, जिससे दोनों प्रमुख पार्टियों के बीच एक दिलचस्प राजनीतिक संतुलन बना। आप ने 70 में से 62 सीटों पर जीत दर्ज की, जो एक जबरदस्त सफलता थी। बीजेपी को 8 सीटें मिलीं, जो 2015 में जीती गई 3 सीटों से बहुत अधिक थी, लेकिन फिर भी यह AAP के मुकाबले बहुत कम थी। कांग्रेस पार्टी ने इस चुनाव में कोई भी सीट नहीं जीती और उनका खाता भी नहीं खुला।

अब फिर भाजपा और AAP के बीच प्रतिस्पर्धा
दिल्ली में चुनावी राजनीति अब मुख्य रूप से भारतीय जनता पार्टी (BJP) और आम आदमी पार्टी (AAP) के बीच होती है। भाजपा, जो राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत पार्टी है, दिल्ली में भी प्रभावी रही है, जबकि AAP ने दिल्ली के स्थानीय मुद्दों पर अपनी पकड़ मजबूत की है और भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी छवि को आगे बढ़ाया है। दिल्ली के चुनाव अब पूरी तरह से इन दोनों दलों के बीच प्रतिस्पर्धा का रूप ले चुके हैं। आप ने स्थानीय मुद्दों और विकास कार्यों पर जोर दिया, वहीं बीजेपी ने राष्ट्रीय सुरक्षा, शीश महल और हिंदुत्व जैसे मुद्दों को प्रमुख बनाया।

दिल्ली, जो हमेशा से भारतीय राजनीति में अहम स्थान रखता है, ने अपने विभिन्न मुख्यमंत्री पदों के बीच कई दिलचस्प घटनाक्रम देखे हैं। 1952 से लेकर अब तक दिल्ली की राजनीति में कई बदलाव हुए हैं, जिनका प्रभाव आज भी देखा जा सकता है। इस लेख में हम दिल्ली के मुख्यमंत्रियों के बारे में विस्तार से जानेंगे, जिनकी कड़ी मेहनत, संघर्ष और राजनीति ने दिल्ली को एक नई दिशा दी।
1. आतिशी: नई लहर की शुरुआत (सितंबर 2024)
आतिशी, जिन्होंने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से शिक्षा प्राप्त की है, ने दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में सितंबर 2024 में कार्यभार संभाला। यह पद उन्होंने अरविंद केजरीवाल के इस्तीफे के बाद ग्रहण किया। उनकी नियुक्ति ने दिल्ली की राजनीति में एक नई उम्मीद और बदलाव की लहर शुरू की। आम आदमी पार्टी की इस नेता ने शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार के लिए कई अहम फैसले लिए हैं, जिनका असर अब दिखने लगा है।
2. अरविंद केजरीवाल: भ्रष्टाचार और शिक्षा सुधार के सूत्रधार
दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में अरविंद केजरीवाल का कार्यकाल भी महत्वपूर्ण रहा। 28 दिसंबर 2013 को उन्होंने पहली बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, लेकिन 2014 में कुछ समय के लिए इस्तीफा देने के बाद 14 फरवरी 2015 को फिर से पद पर लौटे। उनके कार्यकाल में भ्रष्टाचार, शिक्षा, और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर विशेष ध्यान दिया गया। केजरीवाल ने दिल्ली में फ्री पानी, बिजली और स्वास्थ्य सेवाओं जैसी योजनाओं के जरिए आम आदमी की जिंदगी में सुधार लाने की कोशिश की। हालांकि, सितंबर 2024 में उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था।
3. शीला दीक्षित: दिल्ली की सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने वाली नेता
शीला दीक्षित दिल्ली की राजनीति में एक बहुत बड़ा नाम हैं। वह साल 1998 से लेकर 2013 तक लगातार तीन कार्यकालों तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं। उनका कार्यकाल दिल्ली के विकास के लिए याद किया जाता है। उन्होंने दिल्ली को एक आधुनिक शहर बनाने के लिए कई योजनाओं की शुरुआत की। उनकी दूरदर्शिता और कार्यशैली ने दिल्ली को न केवल एक बड़ा शहर बनाया, बल्कि वहां की बुनियादी सुविधाओं में भी सुधार किया। उनका निधन 2020 में हुआ, लेकिन उनका योगदान हमेशा याद रहेगा।
4. सुषमा स्वराज: दिल्ली की भाजपा सरकार की पहली महिला मुख्यमंत्री
दिल्ली की राजनीति में एक और अहम नाम सुषमा स्वराज का है। वह 12 अक्टूबर से 3 दिसंबर 1998 तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं। उनके कार्यकाल में कुछ महीनों के लिए दिल्ली में भाजपा की सरकार बनी थी, हालांकि यह कार्यकाल बहुत लंबा नहीं था। इसके बाद सुषमा स्वराज ने केंद्रीय राजनीति में कदम रखा और देश की विदेश मंत्री के तौर पर भी अपनी सेवाएं दीं। उनका निधन 2019 में हुआ, लेकिन उनका योगदान भारतीय राजनीति में अमिट रहेगा।
5. साहिब सिंह वर्मा: भाजपा के लिए नई राह
साहिब सिंह वर्मा ने भाजपा के लिए दिल्ली में नई राह खोली। 26 फरवरी 1996 से 12 अक्टूबर 1998 तक वह दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे। उनके कार्यकाल में दिल्ली में भाजपा की सरकार बनी और कई महत्वपूर्ण योजनाओं की शुरुआत की गई। उन्होंने दिल्ली के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया और पार्टी को मजबूती दी।
6. मदन लाल खुराना: दिल्ली में भाजपा की एंट्री
मदन लाल खुराना का कार्यकाल 2 दिसंबर 1993 से लेकर 26 फरवरी 1996 तक रहा। उनका कार्यकाल भाजपा के लिए महत्वपूर्ण था क्योंकि इसके साथ ही भाजपा का दिल्ली की सत्ता में पदार्पण हुआ था। खुराना के नेतृत्व में दिल्ली में भाजपा की राजनीति की नींव रखी गई।
7. गुरमुख निहाल सिंह: शुरुआती दिनों का योगदान
गुरमुख निहाल सिंह दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे 12 फरवरी 1955 से लेकर 1 नवंबर 1956 तक। उनका कार्यकाल दिल्ली के शुरुआती दिनों में बहुत अहम था। हालांकि उनका कार्यकाल बहुत छोटा था, लेकिन उन्होंने दिल्ली की राजनीति में अपनी छाप छोड़ी।
8. चौधरी ब्रह्म प्रकाश: दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री
चौधरी ब्रह्म प्रकाश दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री थे। उन्होंने 17 मार्च 1952 से 12 फरवरी 1955 तक दिल्ली का नेतृत्व किया। उनका कार्यकाल दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री के रूप में याद किया जाता है।
दिल्ली विधानसभा चुनाव का इतिहास: 37 साल का अंतराल
दिल्ली में विधानसभा चुनाव का इतिहास भी दिलचस्प रहा है। साल 1956 में दिल्ली को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया था और इसके बाद 37 साल तक यहां विधानसभा चुनाव नहीं हुए। साल 1952 में दिल्ली में पहले चुनाव हुए थे, जिनमें कांग्रेस ने बहुमत हासिल किया था। हालांकि, साल 1956 के बाद दिल्ली के प्रशासन की जिम्मेदारी मेट्रोपॉलिटन काउंसिल को सौंप दी गई थी।