सुसंस्कृति परिहार
कल से दो खबरों ने न्याय पर भरोसा रखने वालों को झिंझोड़ के रख दिया है पहला मामला प्रयागराज जैसी कथित पावन भूमि से माननीय जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में टिप्पणी की, कि एक व्यक्ति द्वारा 11 वर्षीय लड़की के स्तनों को पकड़ना, उसके पायजामे के नाड़े तोड़ना और उसे पुलिया के नीचे घसीटना, उस पर ‘बलात्कार के प्रयास’ का आरोप लगाने के लिए पर्याप्त नहीं है। जिससे व्यापक आक्रोश फैल गया है और सर्वोच्च न्यायालय से हस्तक्षेप करने की मांग की गई है। समाज के सभी वर्गों और राजनीतिक स्पेक्ट्रम के लोगों ने न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा के फैसले की आलोचना की है।

दूसरी ओर इस फैसले ने निर्भया कांड के दौरान महिला सुरक्षा हेतु बने कानून की धज्जियां उड़ा दी हैं जिसमें दस सेकंड से अधिक घूरने को भी दुष्कर्म की नियत माना है।इस खबर के आने से महिला संगठन भी आक्रोशित हैं।
एक सीनियर एडवोकेट शोभा गुप्ता ने सीजेआई को पत्र लिखकर मामले का स्वतः संज्ञान लेने को कहा है। वरिष्ठ अधिवक्ता शोभा गुप्ता ने अपनी और संगठन ‘We the women of India’की ओर से सीजेआई को एक पत्र लिखा है।
उधर ,केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के हाल के एक फैसले की कड़े शब्दों निंदा की है। इस फैसले में कहा गया था कि किसी महिला गलत तरीके से पकड़ना और उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ना रेप नहीं माना जाएगा, बल्कि यह निर्वस्त्र करने के इरादे से किया गया हमला माना जाएगा। कोर्ट के इस फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए केंद्रीय मंत्री ने इसे गलत फैसला भी बताया है. साथ ही उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से इस मामले पर ध्यान देने का आग्रह किया है। उन्होंने कहा कि इस तरह के फैसले से समाज में गलत संदेश जाएगा।केंद्रीय मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने यह बयान न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा द्वारा जारी आदेश के जवाब में आया है, जिन्होंने दो व्यक्तियों के पक्ष में फैसला सुनाया था। बलात्कार के आरोप में उन्हें सम्मन भेजने के निचली अदालत के फैसले को चुनौती दी थी।
मामला इस तरह था एक 11साल की नाबालिग बालिका को दो युवक पवन और आकाश बदनियत से एक नाले में ले जाते उसका नाड़ा खोलते हुए उसके यौनांग को छूते हैं चीखती बच्ची की आवाज़ सुन राहगीर पहुंच कर उसे इन दरिंदो से बचाते हैं और मिश्रा जी जाने किसके दबाव में इसे दुष्कर्म नहीं मानते। जबकि दरिंदो के इरादे स्पष्ट हैं खुशकिस्मती से बच्ची बच गई।जज साहब के फैसले से दोनों दरिंदो के साथ देश भर यह संदेश पहुंचा है जिससे ऐसे बिगड़ैलों का मनोबल बढ़ेगा।बिना देर किए ऐसे जज पर एक्शन सुको को तत्काल लेना चाहिए।
अब आते हैं ,दिल्ली हाई कोर्ट के जज के घर से बड़ी मात्रा में नकदी मिलना जो बहुत ही खतरनाक संकेत है। इससे न्यायपालिका पर लोगों का भरोसा प्रभावित हो सकता है हालांकि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जज का तबादला कर दिया है, लेकिन अभी तक कोई सार्वजनिक बयान नहीं दिया गया है। उन्हें इलाहाबाद हाईकोर्ट भेजा गया है जिसका वरिष्ठ अधिवक्ता विरोध कर रहे हैं उनका कहना यह कूड़ाघर नहीं है।जिस चाहे कचरे को यहां फेंक दें।
ये माननीय जज हैं यशवंत वर्मा जी। मज़ेदार बात यह है कि होली के दिन वर्मा जी के घर आग लगती है।दमकल कर्मी जब आग बुझाते हैं तो पता चलता है कि यहां तो एक कमरे में भारी मात्रा में कैश रखा हुआ है।बात फैलती है लेकिन मीडिया तक देर से पहुंचती है।अभी ख़बरें आनी शुरू हुईं ही थीं उन पर ब्रेक लग गया अब बताया ये जाने लगा दमकल कर्मियों ने ऐसा कुछ नहीं देखा। इस समाचार ने ऐसे रंग बदले कि गिरगिट भी शरमा जाए।
तो इस बदलाव की पृष्ठभूमि और भारी कैश की बरामदगी जिसे खारिज कर दिया गया है, के पीछे का सच ये है कि माननीय जज के घर से ढेर सारी नगदी बरामद हुई है, ज्ञात हो यशवंत वर्मा ने ही उस याचिका को खारिज किया था, जिसमें मोदी की भ्रष्ट चुनावी बॉन्ड स्कीम की वैधता को चुनौती दी गई थी। दूसरे सत्येन्द्र जैन और अन्य कई फैसलों में माननीय ने सरकार के साथ परोपकार नीति अपनाई है । तो कैश मिलना और फिर मामला गायब हो जाना समझ में आ ही जाता है।
विशेष बात ये है कि दोनों जज प्रयागराज जैसी पुण्य भूमि में जन्मे हैं और ढेरों आशीर्वाद से फल फूल रहे हैं पा रहे हैं।इधर स्थानांतरण पर रोक की खबर भी शुरू हो गई है।अब तो देखना यह होगा सीजेआई संजीव खन्ना जी इन महान जजों के प्रति क्या रवैया अख़्तियार करते हैं।
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