डॉ. प्रिया
हार्ट डिजीज के कारण हार्ट फेल्योर होता है। हार्ट फेल्योर तब होता है जब किसी व्यक्ति को स्वस्थ रखने के लिए हार्ट कुशलतापूर्वक पंप नहीं कर पाता है।
फिजिकल एक्टिविटी पर हार्ट फेल्योर के प्रभाव और लक्षण और अधिक स्पष्ट रूप से दिखते हैं। हार्ट फेल्योर वाले रोगियों को अन्य लक्षणों के अलावा सांस की तकलीफ का भी अनुभव होता है।
बाएं तरफ हार्ट फेल्योर को कम इजेक्शन फ्रेक्शन (HFREF) के साथ हार्ट फेल्योर और प्रीजर्व इजेक्शन फ्रेक्शन (HFPEF) के साथ हार्ट फेल्योर में बांटा जाता है। दोनों तरह के फेल्योर हार्ट के चैंबर (ventricle) में परिवर्तन के कारण होते हैं। इससे वे कमजोर और कठोर हो जाते हैं।
इसका परिणाम यह होता है कि हार्ट कम कुशलता के साथ ब्लड पंप कर पाता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हृदय कितनी ताकत से पंप करता है। यह कभी भी वेंट्रिकल से सारा ब्लड पंप नहीं करता।
इजेक्शन फ्रैक्शन ब्लड के उस प्रतिशत को बताता है, जो प्रत्येक हार्ट बीट के साथ भरे हुए वेंट्रिकल से बाहर पंप किया जाता है।इजेक्शन फ्रैक्शन की गणना करके डॉक्टर मापते हैं कि मरीजों का दिल कितना कुशल है। यह मापने के लिए इमेजिंग प्रोसेस का उपयोग किया जाता है कि लेफ्ट वेंट्रिकल से कितना ब्लड पंप होता है। एचएफपीईएफ तब होता है जब हार्ट का बायां वेंट्रिकल धड़कनों के बीच सामान्य रूप से आराम नहीं कर पाता है। ऐसा वेंट्रिकल के हार्ड होने के कारण होता है।
जब हृदय पूरी तरह से आराम नहीं कर पाता, तो अगली धड़कन से पहले यह ब्लड से नहीं भर पाता. एचएफपीईएफ या डायस्टोलिक हार्ट फेल्योर के साथ ईएफ सामान्य सीमा में रहता है। हार्ट फेल्योर के लगभग आधे रोगियों में एचएफपीईएफ होता है।
*एचएफआरईएफ:*
एचएफआरईएफ तब होता है जब हृदय का बायां वेंट्रिकल पूरी तरह से सिकुड़ता नहीं है। यह पूरे शरीर में ब्लड को ट्रांसफर करने के लिए पर्याप्त रूप से पंप नहीं कर पाता है।
इससे बाएं हार्ट की तरफ दबाव और बाएं कक्ष का आकार बढ़ जाता है, जिससे लक्षण बिगड़ जाते हैं। जिन मरीजों का ईएफ 40% से कम या उसके बराबर है उनमें एचएफआरईएफ है।
एचएफपीईएफ या एचएफआरईएफ के इलाज के लिए कई दवाएं उपलब्ध हैं।
दवाओं के अलावा कैथेटर आधारित तकनीक जैसे कि परक्यूटेनियस कोरोनरी इंटरवेंशन या स्टेंट), इम्प्लांटेबल कार्डियोवर्टर डिफाइब्रिलेटर, पेसमेकर या बाएं वेंट्रिकुलर एसिस्ट डिवाइस, या हार्ट फंक्शन को बेहतर बनाने के लिए सर्जरी का उपयोग किया जा सकता है।
*एट्रियल फ्लो रेगुलेटर :*
एट्रियल फ्लो रेगुलेटर एक छोटा डिवाइस है, जिसका उपयोग इंटरएट्रियल शंट को खुला रखने और इसके आकार को बनाए रखने के लिए किया जाता है। डिवाइस में सेंट्रल ओपनिंग के साथ दो डिस्क हैं, जो ब्लड को फ्लो रेगुलेटर के माध्यम से प्रवाहित करने में मदद करते हैं। यह हार्ट के लेफ्ट साइड से राइट साइड की ओर ले जाने में मदद करते हैं।
यह डिवाइस इलास्टिक मेटल के तारों (nitinol) से बनाया गया है। इसे एट्रियल फ्लो रेगुलेटर के आकार में बुना और ढाला जाता है। निटिनोल का उपयोग दशकों से मेडिकल डिवाइस को बनाने के लिए सुरक्षित रूप से किया जाता रहा है।
इसे विशेष डॉक्टर इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट की मदद से न्यूनतम इनवेसिव ट्रांसकैथेटर तकनीक का उपयोग करके प्रत्यारोपित किया जाता है।
कई क्लिनिकल अध्ययन और केस रिपोर्ट बताते हैं कि हाल के वर्षों में एट्रियल फ्लो रेगुलेटर और अन्य डिवाइस को सुरक्षित रूप से प्रत्यारोपित किया जा सकता है और लेफ्ट हार्ट फेल्योर वाले रोगियों के लक्षणों में सुधार किया जा सकता है।
*गर्मी का मौसम : पहाड़ों पर छुट्टियां बिताने का ख्याल छोड़ दें हार्ट पेसेंट*
गर्मी की छुट्टियों में ठंडक पाने के लिए ऊंचाय वाले स्थान की यात्रा की प्लानिंग स्वाभाविक है।
40 पार के लोगों को ऊंचाई वाले स्थान की यात्रा करने का ख्याल छोड़ देना चाहिए. नहीं छोड़ना है तो कुछ बातों का जरूर ख्याल रखना चाहिए।
हृदयरोगियों के लिए पहाड़ों की यात्रा जोखिम भरी हो सकती है। अधिक ऊंचाई के कारण लंग्स और ब्रेन संबंधी समस्याएं भी हो सकती हैं। इसके कारण शरीर के तापमान में तेजी से कमी हो सकती है। इस स्थिति को हाइपोथर्मिया कहते हैं।
ऊंचाई वाले स्थान की यात्रा करने पर ड्राईनेस, सांस लेने में तकलीफ, ऑक्सीजन की कमी, तेज सिरदर्द, उल्टी, मांसपेशियों में खिंचाव, डीहाईद्रेशन आदि की समस्या हो सकती है।
*1. आंत को मजबूत बनाएं :*
यदि आप मैदानी इलाके से पहाड़ की यात्रा करने वाली हैं, तो सबसे पहले अपने आंत का ख्याल रखें। हिल स्टेशनों में पकाए जाने वाले भोजन में आमतौर पर ऐसे मसाले का प्रयोग किया जाता है, जो स्वाभाविक रूप से शरीर में गर्मी पैदा करते हैं।
ऐसे खाद्य पदार्थ को आपको आम दिनों में पचाने में दिक्कत हो सकती है। अलग-अलग तरह की दालें आपके लिए गरिष्ठ हो सकती हैं, जो एसिडिटी, गैस की समस्या पैदा कर सकती हैं। यदि आपकी आंत मजबूत है, तभी आप यहां के भोजन को पचा पाएंगी।
*2. स्मोकिंग की आदत छोडनी होगी :*
स्मोकिंग फेफड़ों की क्षमता को कम कर देता है। पहाड़ पर हवा की कम मौजूदगी फेफडों के लिए कठिन बना सकता है। इससे सांस की तकलीफ और खांसी हो सकती है।
यहां तक कि अगर आपको छुट्टियों के दौरान धूम्रपान करने की इच्छा नहीं होती है, तो नियमित रूप से धूम्रपान करने से पहले ही आपके फेफड़ों को इतना नुकसान हो चुका है कि आप आसानी से पहाड़ों से नहीं निपट सकते।
*3. अस्थमा के मरीज के लिए विशेष सावधानी :*
यदि आप अस्थमा या अन्य सांस की तकलीफ से गुजर रही हैं, तो विशेष रूप से सावधान रहें। अस्थमा की दवा हमेशा अपने साथ रखें। नाक को कवर करने के लिए रूमाल, दुपट्टा और फेस मास्क भी साथ रखें।
खुद को हाइड्रेटेड रखें। किसी भी प्रकार की समस्या होने पर दवाओं और इन्हेलर का प्रयोग करें।
*4. सांस फूलने पर ऊंचाई चढना बंद करें :*
घबराहट होने, सांस फूलने, बहुत अधिक उल्टी होने पर ऊंचाई चढना तत्काल बंद कर दें। ध्यान रखें कि कभी भी खाली पेट यात्रा नहीं करें। हाइट पर कैलोरी की अधिक खपत होती है, इसलिए पेट भरकर खाना खाएं। नारियल पानी, फ्रूट जूस, हर दिन 8-10 ग्लास पानी पीना नहीं भूलें।
*5. ब्लड वेसल्स का ख़ास ख्याल :*
ठंड में ब्लड वेसल्स सिकुड़ जाते हैं। इससे ब्लड सर्कुलेशन में दिक्कत हो सकती है। यदि आप पूरी तरह फिट हैं, तो भी समस्या हो सकती है। यदि आपको कोरोनरी हार्ट प्रॉब्लम है, तो यात्रा से पहले अपने डॉक्टर से जरूर बात करें।
संभव है कि वे आपको समुद्र तल से 4500 मीटर से अधिक यात्रा करने की सलाह नहीं देंगे। यदि आपको एक्यूट माउंटेन सिकनेस है, तो डॉक्टर आपको ऊंचाई की यात्रा करने की बिल्कुल सलाह नहीं देंगे।
*6. शरीर के आराम का भी रखें ध्यान :*
यदि ठंडे प्रदेशों की यात्रा कर रही हैं, तो गर्म कपड़े की कई परतों से शरीर को गर्म रखने का प्रयास करें। यदि किसी पहाड़ की चढ़ाई कर रही हैं, तो थोड़ी देर आराम करने के बाद ही ऊपर चढ़ें। एक बार में ही बहुत अधिक चढ़ाई करने पर हाइपोथर्मिया की शिकायत हो सकती है।
किसी भी प्रकार के हीटर से शरीर को गर्म करने की बजाय रजाई-कंबल की मदद से स्वाभाविक रूप से शरीर को गर्म होने दें।