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 समाजवाद पर “झूठ मिसाइल” से हमला

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अजय असुर

नागपुर मुख्यालय से समाजवाद पर मिसाइल हमला हुआ है, यह मिसाइल है “झूठ मिसाइल”। हमला इस प्रकार है— “स्थानीय कॉलेज में अर्थशास्त्र के एक प्रोफेसर ने अपने एक बयान में कहा कि– “उसने पहले कभी किसी छात्र को फेल नहीं किया था, पर हाल ही में उसने एक पूरी की पूरी क्लास को फेल कर दिया है।”… क्योंकि उस क्लास ने दृढ़तापूर्वक यह कहा था कि, “समाजवाद सफल होगा” और “न कोई गरीब होगा और न कोई धनी होगा”, क्योंकि उन सब का दृढ़ विश्वास है कि, यह सबको समान करने वाला एक महान सिद्धांत है…

तब प्रोफेसर ने कहा– अच्छा ठीक है! आओ हम क्लास में समाजवाद के अनुरूप एक प्रयोग करते हैं। सफलता पाने वाले सभी छात्रों के विभिन्न ग्रेड (अंकों) का औसत निकाला जाएगा और सबको वही एक काॅमन ग्रेड दिया जायेगा।

पहली परीक्षा के बाद…

सभी ग्रेडों का औसत निकाला गया और प्रत्येक छात्र को B ग्रेड प्राप्त हुआ। जिन छात्रों ने कठिन परिश्रम किया था वे परेशान हो गए और जिन्होंने कम पढ़ाई की थी वे खुश हुए। दूसरी परीक्षा के लिए कम पढ़ने वाले छात्रों ने पहले से भी और कम पढ़ाई की और जिहोंने कठिन परिश्रम किया था, उन्होंने यह तय किया कि वे भी मुफ़्त का ग्रेड प्राप्त करेंगे और उन्होंने भी कम पढ़ाई कीl

दूसरी परीक्षा में…

सभी का काॅमन ग्रेड D आया। इससे कोई खुश नहीं था और सब एक-दूसरे को कोसने लगे।

जब तीसरी परीक्षा हुई…

तो काॅमन ग्रेड F हो गय। 

जैसे-जैसे परीक्षाएँ आगे बढ़ने लगीं, स्कोर कभी ऊपर नहीं उठा, बल्कि और भी नीचे गिरता रहा। आपसी कलह, आरोप-प्रत्यारोप, गाली-गलौज और एक-दूसरे से नाराजगी के परिणाम स्वरूप कोई भी नहीं पढ़ता था, क्योंकि कोई भी छात्र अपने परिश्रम से दूसरे को लाभ नहीं पहुंचाना चाहता था। अंत में सभी आश्चर्यजनक रूप से फेल हो गए और प्रोफेसर ने उन्हें बताया कि इसी तरह समाजवाद की नियति भी अंततोगत्वा फेल होने की ही है, क्योंकि इनाम जब बहुत बड़ा होता है तो सफल होने के लिए किया जाने वाला उद्यम भी बहुत बड़ा करना होता है। परन्तु जब सरकारें मेहनत के सारे लाभ मेहनत करने वालों से छीन कर वंचितों और निकम्मों में बाँट देगी, तो कोई भी न तो मेहनत करना चाहेगा और न ही सफल होने की कोशिश करेगा l

उन्होंने यह भी समझाया कि इससे निम्नलिखित पाँच सिद्धांत भी निष्कर्षित व प्रतिपादित होते हैं –

1.यदि आप राष्ट्र को समृद्ध और समाज को को सक्षम बनाना चाहते हैं, तो किसी भी व्यक्ति को उसकी समृद्धि से बेदखल करके गरीब को समृद्ध बनाने का क़ानून नहीं बना सकते।

2.जो व्यक्ति बिना कार्य किए कुछ प्राप्त करता है, तो वह अवश्य ही अधिक परिश्रम करने वाले किसी अन्य व्यक्ति के इनाम को छीन कर उसे दिया जाता है।

3.सरकार तब तक किसी को कोई वस्तु नहीं दे सकती जब तक वह उस वस्तु को किसी अन्य से छीन न ले।

4.आप सम्पदा को बाँट कर उसकी वृद्धि नहीं कर सकते।

5.जब किसी राष्ट्र की आधी आबादी यह समझ लेती है कि उसे कोई काम नहीं करना है, क्योंकि बाकी आधी आबादी उसकी देख-भाल जो कर रही है और बाकी आधी आबादी यह सोच कर ज्यादा अच्छा कार्य नहीं कर रही कि उसके कर्म का फल किसी दूसरे को मिलना है, तो वहीं से उस राष्ट्र के पतन और अंततोगत्वा अंत की शुरुआत हो जाती है।

जरूर पढ़ें और यदि समझ में आये तो देश हित में औरों को भी समझाएं (खासकर इस देश के तथाकथित नेतागण को ,जो अपने वोट बैंक के लिए तुष्टिकरण का कोई भी सीमा कूद रहे हैं…”

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*उपरोक्त “झूठ मिसाइल” पर हमारा जवाब:-*

समाजवाद और पूँजीवाद के बीच भीषण जंग चल रही है, इस जंग में पूँजीवादी ताकतें हार पर हार खाती जा रही हैं। ऐसी परिस्थिति में पूँजीवादी ताकतें बौखला गई हैं। बौखलाहट के कारण ही पूंजीपति वर्ग एकतरफ गांधीयन समाजवाद, लोहिया समाजवाद, लोकतांत्रिक समाजवाद, आध्यात्मिक समाजवाद, वैदिक समाजवाद के नाम पर नकली समाजवाद का प्रचार करके जनता को गुमराह कर रहा है। दूसरी तरफ वैज्ञानिक समाजवाद की शक्तियों का दमन भी कर रहा है। बदनाम करने के बाद दमन करना आसान होता है इसलिए वैज्ञानिक समाजवाद को तथा उसकी शक्तियों को बदनाम करने का षड्यंत्र कर रहा है।  उपरोक्त लेख उसी षड्यंत्र का हिस्सा है।

  उपरोक्त लेख के जरिए आम जनता के मन में यह बैठाने का प्रयास किया है कि “यह कम्युनिस्ट ठीक नहीं होते, यह जिस समाजवाद की बात करते हैं उस सामाजवाद को लाने के लिये सभी कमाने वालों की सम्पत्ति छीनकर निठल्लों को दे दी जाती है।”  

उनका यह तर्क पूरी तरह से झूठ पर आधारित है। ऐसा समाजवाद में नहीं बल्कि पूँजीवाद में होता है। जहाँ सभी मजदूर हाड़तोड़ परिश्रम करते हैं, उनकी सारी कमाई निठल्ला पूंजीपति वर्ग हड़प लेता है।

 इसी तरह समाजवाद को बदनाम करने के लिये अपनी तरफ से एक फर्जी नारा गढ़कर जनता के दिमाग में डाल दिया गया कि समाजवाद लाने के लिये “धन-धरती बंटकर रहेगी।” 

सच्चाई यह है कि समाजवाद में किसी की सम्पत्ति छीनकर निठल्लों में बाँटी नहीं जाती। और ना ही इस तरह समानता आ सकती है। निजी संम्पत्ति के समाज में एक नहीं लाखों बार सबका छीनकर बराबर-बराबर बांट दीजिये, कुछ ही समय में पुनः गैर बराबरी अनिवार्य रूप से आ ही जाएगी। अत: किसी की मेहनत की कमाई छीनकर बराबर-बराबर बाँट देने से समाजवाद नहीं लाया जा सकता। समाजवाद में उत्पादन के साधनों का मालिक किसी व्यक्ति विशेष को बनाने की बजाय पूरे समाज को बना दिया जाता है।

सामाजवाद को बदनाम करने के लिये कहा जाता है कि “समाजवाद एक मुफ्तखोरी व्यवस्था है जहाँ एक व्यक्ति कमाता है और बाकी सब बैठकर खाते हैं। बिना कुछ किये मुफ्त में सब मिलता है। जो करता है उसकी मेहनत का मजा निठल्ले लोगों को बैठे-बैठे मिल जाता है।” यह कथन  पूरी तरह से गलत है और समाजवाद को बदनाम करने के लिये शासक वर्ग द्वारा प्रायोजित एक प्रोपगंडा है। दरअसल ऐसा तो पूँजीवाद में होता है। समाजवाद में सभी लोगों को योग्यता के हिसाब से काम तथा काम के हिसाब से दाम दिया जाता है। मुफ्त शिक्षा, चिकित्सा उन्हीं को मिलती है जो काम करते हैं या जो विकलांग या निराश्रित होते हैं उन्हें भी मुफ्त में मिलता है।

समाजवाद को बदनाम करने के लिये हमारे दिमाग में ढेर सारी कहानियां नागपुर मुख्यालय में गढ़ी जाती हैं और गढ़कर गरीब जनता के दिमाग में ठूंस दी जाती हैं।

ऐसे नक्कालों से सावधान होने की जरूरत है।

*अजय असुर*

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