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मुम्बई में राजनीतिक  हत्याओं से डर पैदा करने की कोशिश 

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शकील अख्तर

बाबा सिद्दकी और उनके बेटे जिशान बहुत गंदे आरोप लगाते हुए कांग्रेस से गए थे। मगर देखिए राहुल को इसके बाद भी उनका मन साफ था। कोई गुस्से नाराजगी की भावना नहीं। खुद उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष खरगे ने परिवार के साथ संवेदना व्यक्त की। और बहुत कड़े सवाल उठाते हुए कहा कि इस भयावह घटना ने महाराष्ट्र की कानून व्यवस्था की सारी पोल खोल दी है।

मुम्बई में यह किस में डर पैदा करने की कोशिश है? महाराष्ट्र में चुनाव हैं और उससे पहले राजनीतिक हत्याओं का यह सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा। बाबा सिद्दिकी तो राज्य सरकार के उप मुख्यमंत्री अजीत पवार की पार्टी में आ गए थे। वाय श्रेणी की सुरक्षा थी मगर फिर भी मारे गए। और वह क्या पुलिस थाने में भाजपा विधायक ने राज्य सरकार में शामिल शिंदे गुट के नेता पर गोलियां चला दी थीं।

अजीत पवार की पार्टी एनसीपी के तो 8 दिन में यह दूसरे नेता की हत्या है। और इस साल में तीसरे नेता की। मुंबई में लंबी लिस्ट है पिछले दिनों हुई राजनीतिक हत्याओं की। गोलियां चलाकर आतंक पैदा करने की। फिल्म एक्टर सलमान खान जो गुजरात में मोदी जी का समर्थन करने गए थे उनके घर के बाहर अभी गोलियां चलाई गईं। और जिस अपराधी लारेंस बिश्नोई पर आरोप है उसने अभी बाबा सिद्दकी की हत्या की जिमेमेदारी ले ली है। पंजाबी गायक सिद्धु मुसेवाला की हत्या की जिम्मेदारी भी इसी गेंग ने ली थी। डबल इंजन की सरकार है। गेंग लीडर लारेंस बिश्नोई गुजरात की जेल में बंद है मगर आश्चर्य वह सुपारी ले रहा है और हत्याएं करवा रहा है।
क्या मतलब है इसका? इतने ताकतवर प्रधानमंत्री राज्य में उनकी सरकार और गुजरात की जेल में बंद एक गेंगस्टर द्वारा मुंबई में एक के बाद एक राजनीतिक हत्याएं! आतंक का माहौल!

किस लिए? चुनाव में किसी को फायदा पहुंचाने के लिए? महाराष्ट्र की विपक्षी पार्टियों को यही आशंका है। सबसे प्रमुख विपक्षी दल शिवसेना यूबीटी के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे ने कहा है कि इस हत्या ने महाराष्ट्र की कानून व्यवस्था की कलई खोल दी। राज्यसभा सांसद संजय राउत ने इसे मुख्यमंत्री की विफलता बताया है। उन्होंने गृह मंत्री देवेन्द्र फडणवीस को बर्खास्त करने की मांग की है। उद्धव ठाकरे की पार्टी की ही राज्यसभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने भी कड़े सवाल उठाते हुए कहा है कि अगर सत्ता पक्ष का नेता सुरक्षित नहीं है तो फिर महाराष्ट्र में कौन सुरक्षित है? महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री राज्य का लूटने में लगे हैं उन्हें कानून व्यवस्था की कोई चिंता नहीं है। प्रियंका चतुर्वेदी ने बड़ा सवाल उठाया कि विधानसभा चुनाव की घोषणा में इतनी देर क्यों की जा रही है?

यही मुख्य सवाल है। चुनाव में देर क्यों की जा रही है? क्या राज्य में डर व आतंक का वातावरण बनाने के लिए? गुजरात की साबरमती जेल में बंद एक गेंगस्टर कैसे इतना ताकतवर हो सकता है कि डबल इंजन और गुजरात में भी सरकार है तो ट्रिपल इंजन की सरकार कह सकते हैं वह देश के हर राज्य में और विदेश में कनाडा तक में हत्याएं करवा रहा हो और महाराष्ट्र गुजरात की राज्य सरकारें केन्द्र सरकार कोई कुछ नहीं कर पा रहा हो?

कोशिश यही है कि महाराष्ट्र में विपक्ष में इतना डर और आतंक पैदा कर दो कि वह ठीक से चुनाव ही नहीं लड़ पाए। क्या यह संभव है? राहुल गांधी को डराया जा सकता है ? उद्धव ठाकरे को कोई डरा सकता है ? शरद पवार किसी से डरेंगे?

संभव ही नहीं है। यह सारी कोशिशें बेकार जाएंगी। उल्टे महाराष्ट्र में यह संदेश जाएगा कि मोदी एकनाथ शिंदे अजीत पवार यह कोई उन्हें सुरक्षा नहीं दे सकता है। यह सब इन्हीं की जेल में बंद एक गेंगस्टर के सामने लाचार हैं। राज लारेंस बिश्नोई का चल रहा है प्रधानमंत्री मोदी, मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे, उप मुख्यमंत्री अजीत पवार का नहीं।

सोचिए तीन बार के एमएलए, राज्य सरकार में मंत्री रहे, बेटा जिशान सिद्दीकी अभी भी एमएलए और उप मुख्यमंत्री की अजीत पवार की पार्टी में शामिल फिर भी दशहरे के दिन, भीड़ भाड़ वाले इलाके बान्द्रा ईस्ट इलाके में शाम को गोली मार दी जाती है। बाबा सिद्दकी कोई सामान्य नेता नहीं थे। हर पार्टी में सब उन्हें जानते थे। फिल्म स्टारों में उनकी पूछ थी। जिन्दगी भर कांग्रेस में रहे अभी इसी साल के शुरू में अजीत पवार की पार्टी में गए थे। बिहार के रहने वाले थे। मगर मुबंई में आकर जैसे बहुत सारे दूसरे लोगों ने कांग्रेसी बनकर अपना उद्धार किया था वैसे ही वे भी थे। जब केन्द्र और राज्य दोनों जगह कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई तो वे सत्ता में शामिल अजीत पवार के साथ चले गए। जाते तो कांग्रेस छोड़कर बहुत सारे लोग हैं मगर एकाध ही होता है जो जाने के बाद कांग्रेस पर सोनिया राहुल पर गंदे आरोप नहीं लगता। प्रियंका चतुर्वेदी एक उदाहरण हैं। बाकी लोग तो अपने स्वार्थों से गए मगर प्रियंका चतुर्वेदी के साथ तो बदतमीजी हुई थी। उन्होंने पार्टी में ही रुककर इसकी शिकायत भी की। मगर कोई सुनवाई नहीं हुई तब उन्होंने कांग्रेस छोड़ी। लेकिन छोड़ने के बाद कभी कांग्रेस के खिलाफ नहीं बोला।

बाबा सिद्दकी और उनके बेटे जिशान बहुत गंदे आरोप लगाते हुए कांग्रेस से गए थे। मगर देखिए राहुल को इसके बाद भी उनका मन साफ था। कोई गुस्से नाराजगी की भावना नहीं। खुद उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष खरगे ने परिवार के साथ संवेदना व्यक्त की। और बहुत कड़े सवाल उठाते हुए कहा कि इस भयावह घटना ने महाराष्ट्र की कानून व्यवस्था की सारी पोल खोल दी है।

राहुल की और कांग्रेस की यही खासियत है जो उन्हें दूसरों से अलग बनाती है। खाली महाराष्ट्र की ही बात की जाए तो यहां से कितने कांग्रेसी नेताओं ने पार्टी छोड़ी? गिनते जाइए! लंबी लिस्ट है। और सब वह हैं जो दूसरे राज्यों से साधारण हैसियत से आकर यहां कांग्रेस में शामिल हुए और नाम, नामा रसूख सब बनाया। वैसे सबको सम्मान दो के सिद्धांत पर हम साधारण हैसियत लिख रहे हैं नहीं तो कुछ भी नहीं कि स्थिति में कांग्रेस में आए थे। कृपाशंकर सिंह (यूपी से ) , मिलिंद देवड़ा ( इनके पिता मुरली देवड़ा राजस्थान से आए थे) बाबा सिद्द्की (बिहार से) कई नाम हैं। जब कांग्रेस सत्ता में नहीं रही तो सत्ताधारी पार्टियों की तरफ चले गए। गए तो संजय निरुपम भी हैं। वे भी बिहार से हैं मगर उन्होंने नाम शिवसेना में बनाया था। कांग्रेस में बाद में आए। सांसद यहां भी बने। ऐसे ही जाने वालों की लंबी लिस्ट है। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण भी।
खैर यह स्वार्थी, अवसरवादी, डरपोक नेताओं का कांग्रेस से जाना ऐसे ही चलता रहता है। आना भी। जब सत्ता में कांग्रेस आएगी तो यह लोग सबसे पहले राहुल की जय जयकार करते हुए वापस आएंगे। और कांग्रेस इन्हें लेगी भी। यह कांग्रेस की समस्या है। अब इसे राहुल दूर करेंगे या नहीं मालूम नहीं। लेकिन अगर वे इस बारे में साफ कहें तो इससे कांग्रेस को फायदा होगा। पार्टी के साथ वफादारी से जुड़े लोगों का उत्साह बढ़ेगा। और फेंस पर जाने को बैठे लोगों में डर बैठेगा। लेकिन राहुल अनुशासन के मामले में कितने सख्त हो पाते हैं कितने नहीं यह कहना मुश्किल है।

लेकिन फिलहाल तो उनके सामने महाराष्ट्र चुनाव है। जहां इंडिया गठबंधन की स्थिति काफी अच्छी दिख रही है। लोकसभा में भी महाराष्ट्र ने मोदी जी को बड़ी चोट पहुंचाई थी। 48 सीटों में से एनडीए को केवल 17 सीटें मिलीं। 31 सीटों पर इंडिया गठबंधन जीती। इनमें भी कांग्रेस ने सबसे ज्यादा 13 सीटें और बाद में जीता एक निर्दलीय उसमें शामिल हो गया तो 14 सीटें जीतीं।

अब विधानसभा चुनाव में मोदी जी के लिए महाराष्ट्र बचाना बहुत कठिन चुनौति है। कांग्रेस और इंडिया गठबंधन हरियाणा के ताजे अनुभव से काम लेकर वहां ज्यादा चौकसी से चुनाव लड़ेगा। आन्तरिक कलह पर कड़ाई से रोक लगाएगा। देखते हैं इंडिया गठबंधन कितनी जल्दी सीट शेयरिंग करता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)

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