विरेन्द्र नानावटी
#दिसंबर का महीना सिर्फ़ भारतीय इतिहास में ही नहीं दुनिया भर के इतिहास में दरिंदगी, दानवता , बर्बरता, पैशाचिक पाशविकता और कबीलाई क्रूरता के काले अध्याय को जोड गया! जब एक वहशी और
पागल -सिरफिरे हुक्मरान औरंगज़ेब ने गुरू गोविन्द सिंह,उनके पुत्रों और अनेक भारतीय वीरों को भीषण यातना देकर शहीद कर दिया!
औरंगज़ेब नाम बादशाह का कैसे कहूं…???
जो एक चलता-फिरता सिरफिरा क़त्लख़ाना था!
संदर्भ: #औरंगज़ेब
सबसे लज्जाजनक बात ये है कि औरंगज़ेब के हुक्म पर जब देश भर में मंदिरों को ध्वस्त किया जा रहा था और भारतीय इतिहास का सबसे बड़ा क़त्लेआम परोसा जा रहा था…
जब लाखों हिंदुओं का बलात धर्मांतरण हो रहा था…तब देश के अनेक राजे-रजवाड़े औरंगज़ेब के न केवल साथ खड़े थे, अपितु उसकी अधीनता और मनसबदारी क़बूल कर चुके थे!
इससे बड़ी डूब मरने वाली बात ये है कि भारत की राजधानी में औरंगज़ेब रोड़ तो है, लेकिन गुरु गोविन्द सिंह या महाराणा प्रताप रोड़ नहीं है (मेरी जानकारी में)…
आरे से चीरवा देना/ ख़ौलते तेल और उबलते पानी में ज़िंदा डलवा देना/ किसी धर्मगुरु के मासूम बच्चों को दीवार में चुनवा देना/ गुरु तेग बहादुर के शीश को काटकर अंतिम संस्कार भी नहीं करने देना/ माता गुजरी को बेहद यंत्रणा देना/ हज़ारों के सिर क़लम करवा देना…
खौफ़जदा यातनाओं की अनगिनत तालिबानी कहानियां औरंगज़ेब के साथ जुड़ी है जिस पशुता के आगे हिटलर भी बौना लगता है!
**भारत के समूचे इतिहास में औरंगज़ेब से बड़ा दरिंदा,दानव, नर- पिशाच और हत्यारा कोई नहीं हुआ!
तैमूर लंग से भी बड़ा!
अंग्रेज़ इतिहासकार कर्नल टाॅड, फ्रांसीसी इतिहासकार फ्रांस्वा बर्नियर ( जो उस समय दाराशिकोह के बुलावे पर भारत आया) और एक शिया मुस्लिम इतिहासकार रिजवी ने औरंगज़ेब को वहमी, वहशी और अत्याचारी पागल क़रार दिया!
दबी ज़ुबान से कहा ये भी जाता है कि वो आज की सिज़ोफ्रेनिया नामक मानसिक बीमारी से पीड़ित था! जिससे बर्बरता उसके भीतर एक शैतान के रूप में आ जाती थी! जिस जानवरी बर्बरता और क्रूरता से उसने अपने भाई दारा शिकोह, सिखों के गुरु तेग बहादुर, गुरु गोविंद सिंह के पुत्रों,मतिदास और दयालदास सहित हज़ारों सिखों की, संभाजी सहित अनेक मराठों की और दक्षिण के योद्धाओं की निर्ममता से हत्याएं कराई.. उससे ही उसका प्रतिशोध से भरा मानसिक पागलपन साबित होता है!
दारा शिकोह बेहद विद्वान, भारतीय दर्शन के ज्ञाता और इन्सानियत से भरे थे! उन्होंने भारतीय वैदिक साहित्य और उपनिषदों का फारसी में अनुवाद किया!
पहले हाथ-पैर बांधकर, बेड़ियों में जकड़कर दारा शिकोह को दिल्ली में हाथी पर घुमाया गया और फिर उसकी गर्दन को उतारकर उसे झांकी जैसा पूरी दिल्ली में नुमाया किया और फिर बाप को दहलाने के लिए थाली में भेंट किया!
मज़हब के नाम पर जो भीषण क़त्लेआम औरंगज़ेब ने किया.. उसकी तुलना सम्राट अशोक , अजातशत्रु और ऊदा( राणा कुम्भा का बेटा) से करना मूर्खता की पराकाष्ठा है!
इस तरह की हत्याएं तो सत्ता संघर्ष और घर के विवाद में पूरी दुनिया में हुई है और तुर्क-मुगल-अफ़गान इतिहास तो इससे भरा पड़ा है!
लेकिन भारत के हज़ारों सालों के इतिहास में
इससे बड़ा मज़हबी दरिंदा भला कौन हो सकता है?
इन्सानों का नहीं,वो दरिंदों का ही आलमगीर था!
दूसरों से तुलना करके भ्रम पैदा करने से औरंगज़ेब ज़ालिम से ज़हीन नहीं हो जाता!
उसकी जोड़ का कोई ज़ालिम नहीं है भारत के इतिहास में!
विरेन्द्र नानावटी