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‘बा’ भी बहुत पुराना और बड़ा प्यारा शब्द है ‘बा’ भी!

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चंद्रशेखर शर्मा 

‘मां’ की तरह तो नहीं, मगर ये ‘बा’ भी बहुत पुराना और बड़ा प्यारा शब्द है ! इसकी अपनी महिमा है। ये सिर्फ एक संबोधन और विशिष्ट पदवी भर नहीं है, बल्कि हमारे समाज में साथ रहती आयी बहुत अनुभवी और विशाल जमात का भी पता देता है। अपन ने अपने गांवों में भी इस जमात के लोगों को जीवंत देखा है और शहरों में भी। हमारे लोधीपुरा नम्बर एक में ही कई ऐसे बा रहे !

दरअसल कोई तीस बरस पहले जब अपन पत्रकारिता के नये रंगरूट हुए ही थे तब दैनिक चौथा संसार में अपन को ट्रेन करने वास्ते जिन बहुत वरिष्ठ और बहुत काबिल पत्रकारों के सुपुर्द किया गया था, उनमें एक आदरणीय जगदीश डाबी जी भी थे। आप बहुत काबिल होने के साथ बहुत उदार और बहुत दिलचस्प मूर्ति भी हैं। खास बात यह कि इनकी बोलचाल में एक गांव हमेशा अपनी पूरी ग्रामीण छटा के साथ मौजूद मिलता है। पिछले दिनों आपने मेरी एक पोस्ट पर बहुत उदारता से एक प्रशंसापूर्ण कमेंट किया। लिखा, ‘बढ़िया काका !’ जाहिर है अपन को आत्मीय खुशी हुई। उस पर अपन ने जवाब लिखा, “बहुत अभिनन्दन बा !”

ये ‘बा’ तबसे ही दिमाग में घूम रहा है। माँ शब्द तो फिर भी स्त्रीलिंग है, लेकिन बा सब लिंगों से मुक्त है। हां, इसे सुनकर सबसे पहले एक बहुत उम्रदराज व्यक्ति या उसकी अधिक उम्र ध्वनित होती मालूम होती है। यद्यपि अनुमान है कि ये बा आया है बाप से, जिसमें से ‘प’ गायब है, लेकिन फिर भी उससे बाप क्या, बल्कि बाप के भी बाप की धमक गूंजती मालूम होती है। गांवों में एक समय यह जमात भरपूर संख्या में पाई जाती थी। उनमें कुछ बा ऐसे होते थे जिनसे पूरा गांव मार्गदर्शन लेने के अलावा खूब निष्पाप चुहलबाजी या छेड़ अथवा हंसी-मजाक भी करता था। कहें कि उनसे खेलता था। अपन ने शहर में भी यह चलन खूब देखा। गोया अभी इसी तरह राहुल गांधी देश के वैसे ही राष्ट्रीय बा हैं ! खैर। 

समाज में एक समय ये बा अनुभवों और ज्ञान की खान भी होते थे। सोचने में आया कि बहुत सारे मामलों में जब हम ऐसे पुराने, अनुभवी और ज्ञानी व्यक्ति का उल्लेख करते हैं तो सामान्यतया उन्हें वरिष्ठ कहकर इतिश्री कर लेते हैं। सो क्या ऐसा नहीं हो सकता कि वरिष्ठ के बजाय या उसके बदले ऐसे महानुभावों को सिर्फ ‘बा’ लिखा जाए ? पत्रकारिता में मुझ रंगरूट को प्रशिक्षित कर कलम का एक अदना सा सैनिक बनाने वाले आदरणीय डाबी जी पत्रकारिता के ऐसे ही ‘बा’ हैं। जमा उनके जैसे अन्य महानुभाव भी। ऐसे सारे बा जनों को मकर संक्रांति पर मेरा सादर प्रणाम और खूब मंगलकामनाएं ! 💐💐💐 पता नहीं समाज से यह पुरानी, प्यारी और पुराने चावल जैसी जमात जाने कहाँ विलुप्त हो गयी ?

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