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भारत छोड़ो आंदोलन की पृष्ठभूमि और आगाज

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राकेश श्रीवास्तव   

भारत छोड़ो आंदोलन 1857 की क्रांति के बाद आजादी का सबसे बड़ा और प्रभावशाली आंदोलन साबित हुआ।भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महत्वपूर्ण पड़ाव,काकोरी कांड,के 6 साल बाद, 9 अगस्त 1942 को गांधीजी के आह्वान पर पूरे देश में एक साथ आरंभ हुआ।ब्रिटिश शासन वैश्विक परिस्थितियों के कारण दबाव मे था। 7 सितंबर 1941 को जापान ने पर्लहार्बर पर हमला बोल कर सिंगापुर,मलेशिया,थाईलैंड,इंडोनेशिया,मलाया,बर्मा,प्रशांत महासागर के द्वीप पर कब्जा कर लिया।जापानी सेना ने ब्रिटिश जहाजों पर भी कब्जा कर लिया।अंग्रेजों के मित्र राष्ट्र,अमेरिका के राष्ट्रपति रूजवेल्ट व चीन भी चाहते थे कि हिंदुस्तान के नेताओं से समझौता हो।राष्ट्रीय आंदोलन के अनेक नेता छोड़ दिए गए।वार्ता करने के लिए चीन से च्यांग काई शेक आए। ब्रिटेन को यह भी डर था कि भारत से बीस लाख टन पिग आईरन व ढाई लाख टन तैयार स्टील व अपनी ऑर्डिनेंस फैक्ट्री पर अधिकार छोड़ना पड़ सकता है।मार्च 1942 में आया क्रिप्स मिशन भारत को तुरंत स्वाधीनता देने को तैयार नहीं था।इसने झुनझुना पकड़ाना चाहा कि युद्ध के बाद कांस्टीट्यूएंट असेंबली नया संविधान लिखेगी और इसके बदले में भारत संभावित जापानी आक्रमण का विरोध करेगा।यह भारत को अपनी सुरक्षा के लिए भी अधिकार नहीं दे रहा था।कांग्रेस कांफ्रेंस ने 11 अप्रैल 1942 को इसे मानने से इंकार कर दिया।गांधी जी को ब्रिटेन की चाल स्पष्ट दिख रही।उनकी अंतरात्मा ने कहा भारत छोड़ो आंदोलन का समय आ गया है,अब और विलंब नहीं।गांधी इस मामले में बिल्कुल स्पष्ट थे कि जापान का साथ देने का मतलब होगा कि इंग्लैंड के बजाय अब हमें जापान की गुलामी स्वीकार करनी पड़ेगी। 

भारत छोड़ो आंदोलन - विकिपीडिया


हरिजन के 19 अप्रैल 1942 के अंक में लोहिया ने लिखा ” यदि मैं केवल यूरोपी नीतिशास्त्रज्ञ होता और महात्मा गांधी का या अपने देश के इतिहास के पहलुओं का असर मुझ पर नहीं होता तो मैं शायद तोजो का स्वागत करता।किंतु मैं तो तोजो को उतना ही बुरा मानता हूं जितना हिटलर या चर्चिल को क्योंकि यह बुरा हत्याकांड अगर इनमें से किसी एक की  विजय से ही समाप्त होगा तो आज से ज्यादा अच्छी दुनिया बनाने की उम्मीदें मिट्टी में मिल जाएंगी।”कांग्रेस के अनेक नेतागण यहां तक कि नेहरू भी अंग्रेजों का पक्ष लेने की सोच रहे थे।ब्रिटेन की मदद के लिए जापानियों के खिलाफ गुरिल्ला टोलियां बनाने की बात कह रहे थे।कांग्रेसी नेता लोहिया के ऊपर आरोप लगा रहे थे कि वह गांधी जी को बहका रहे हैं।गांधी तो खुद ही धीर गंभीर गहन,तीक्ष्ण दृष्टि रखने वाले व्यक्ति थे।भला उनको कौन बहका सकता था।गांधी को दिख रहा था कि यह निर्णायक लड़ाई है।उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन का मन बना लिया था।26 अप्रैल के हरिजन मे गांधी लिखते हैं” अभी तक मैं ब्रिटेन से सहानुभूति रखता था लेकिन,आज मेरा मन इस नैतिक समर्थन से भी इनकार करता है।” मई 42 में जापान ने बर्मा पर भी अधिकार ग्रहण कर लिया था और बंगाल की खाड़ी तक आ गए थे।लीबिया के रोमेल से भी उनका समझौता होने वाला था।ब्रिटेन अपनी रक्षा तो नहीं कर पा रहा था लेकिन साथ ही भारत को भी आजादी देने के लिए तैयार नहीं था।दूसरी तरफ सिंगापुर पेनांग और बर्मा मे अपने रिफ्यूजीस का तो ख्याल कर रहा था परंतु भारत के शरणार्थियों पर बिल्कुल ध्यान नहीं दे रहा था।किसी तरह बच कर आए लोगों पर हुए अत्याचार को सुन लोगों के अंदर का गुस्सा फूट पड़ा। गाँधी जी का सेवाग्राम से भिजवाया प्रस्ताव कांग्रेस कार्यसमिति ने इलाहाबाद बैठक में बहुत वाद विवाद के बाद 24 जुलाई को स्वीकार कर लिया।यह विडंबना थी कि गांधी की अंग्रेजों के विरोध के साथ ही अपने देश की ही हिंदू महासभा,मुस्लिम लीग,देसी रियासतों का भी सामना करना पड़ता था तथा साथ ही साथ कांग्रेस में अपने साथियों से भी संघर्ष करना पड़ता था।पर चूंकि उनकी साख बेमिसाल थी और सत्य उनके साथ था इसलिए वह हमेशा जनमानस में बसे रहे।भारत की जनता उनकी आवाज पर मर मिटने को तैयार थी।अब गांधी भारत छोड़ो आंदोलन के लिए और न रूक सकते थे।लोहिया ने अल्मोड़ा के राजनीतिक सम्मेलन की अध्यक्षता करते  हुए स्पष्ट शब्दों मे कहा कि यदि नेहरू अपना रास्ता ठीक नहीं करेंगे तो लोग,खासकर नौजवान,जो आज भारत में केवल दो आदमियों की बाते सुनते हैं अब केवल एक की ही बात सुनेंगे यानि कि गांधी की।14 जुलाई 1942 को वर्धा में कांग्रेस की कार्यकारिणी समिति ने अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन का प्रस्ताव पारित किया।इस की सार्वजनिक घोषणा से पहले 1अगस्त को इलाहाबाद में तिलक दिवस मनाया गया। 7 अगस्त 1942 के दिन अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के 250 सदस्यों और आजादी की लड़ाई के 15000 सैनिको के समक्ष भारत छोड़ो आंदोलन के प्रस्ताव पर  काँग्रेस के अध्यक्ष मौलाना आजाद के भाषण के बाद बापू लगभग तीन घंटे लगातार बोले।ध्यान देने की बात है कि इस समय उनकी उम्र बहत्तर वर्ष हो चुकी थी।उन्होंने कहा “मैं अब भी अहिंसा के सिद्धांत पर अटल हूं।आप उससे थक गए हो तो मैं आपको मेरे साथ आने की कोई आवश्यकता नहीं है।एक एक बच्चा भी वीर बन जाएगा।हम अपनी आजादी लड़कर प्राप्त करेंगे।वह आकाश से टूटकर हमारे सामने नहीं आ सकती।मैं आपको बताता हूं मैं पक्का बनिया हूं और मेरा सौदा स्वराज्य प्राप्त करना है।”अब गांधी स्वराज्य से कम कोई बात नहीं करना चाहते थे। अगले दिन 8 अगस्त को भारत छोड़ो प्रस्ताव पूर्ण बहुमत से स्वीकार्य हुआ।उसी दिन महात्मा गांधी ने मुंबई के ग्वालिया टैंक या क्रांति मैदान में ऐतिहासिक भारत छोड़ो आंदोलन की घोषणा की।इस प्रस्ताव में घोषणा की गई कि भारत में ब्रिटिश शासन की समाप्ति भारत में स्वतंत्रता तथा लोकतंत्र की स्थापना के लिए अत्यंत आवश्यक हो गई है।आंदोलन का लक्ष्य भारत से ब्रिटिश साम्राज्य को समाप्त करना था। 
गांधी जी ने जनता का आह्वान करते हुए कहा “मैं 40 करोड़ को कहां ले जाऊं,आज तो जनता के प्राण शोषित हो गए हैं —पीस दिए गए हैं,उनकी निस्तेज आंखों में तेज लाना हो तो आजादी कल नहीं,आज ही आनी चाहिए।इसी से मैंने आज कांग्रेस में यह बाजी लगवाई है कि या तो कांग्रेस देश को आजाद करेगी अथवा खुद फना हो जाएगी।करेंगे या मरेंगे। “गांधी कहते हैं “आप मान ले कि हम आजाद बन गए हैं आजादी के माने क्या हैं?गुलामी की जंजीर है तो छूटी।अब मालिक से कहना है,मैंने गुलामी छोड़ दी,लेकिन आप से नहीं डरूंगा। आप जिंदा रखना चाहते हैं तो जिंदा रखें।आप मुझे खुराक देते थे पर वह तो मेरी ही ही पैदा की हुई थी।”गांधी ने कहा था”आज बीच में समझौता नहीं है।मै नमक की सुविधा करूं या शराबबंदी लेने को नहीं जा रहा हूं। मैं तो एक चीज लेने जा रहा हूं,आजादी।नहीं देना है तो कत्ल करें।मैं वह गांधी नहीं जो बीच में कुछ चीज लेकर आ जाए।आपको तो मैं एक मंत्र देता हूं *करेंगे या मरेंगे*।जेल को भूल जाएं।”
भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत होते ही 9 अगस्त 1942 को भोर के पहले ही गांधी समेत कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सभी सदस्य गिरफ्तार कर लिए गए।कांग्रेस को गैरकानूनी संस्था घोषित कर दिया गया।अंग्रेजी हुक्मरानों का यह दांव उल्टा पड़ा।उसके इस कृत्य ने आग को भड़काने का कार्य किया है। नेतृत्व संभालने के लिए अनेक लोग आगे आए जिनमें कस्तूरबा,डॉक्टर सुशीला नैयर,लाल बहादुर शास्त्री,जयप्रकाश नारायण,डॉ राम मनोहर लोहिया,युसूफ मेहर अली,अरूणा आसफ अली,डॉ जी जी पारीक,अच्युत पटवर्धन इत्यादि प्रमुख थे।इसके अलावा अनेक स्थानों पर जनता ने नेतृत्व अपने हाथ में ले लिया था।भारत की जनता ने इस आंदोलन को अपना आंदोलन बना दिया।अंततः भारत छोड़ो आंदोलन अंग्रेजी साम्राज्य के ताबूत मे आखिरी कील साबित हुआ।  

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