रमाशंकर सिंह,पूर्व मंत्री,म.प्र.
आध्यात्मिकता, विद्वता , जीवन की पवित्रता और मानसिक गहन शांति तो अब वैसे ही किसी भी धर्म में बची नहीं है पर जैसा मीडिया इस देश ने बनाया है पाला पोसा है उसने तय कर लिया है कि बचा खुचा भी शीघ्र नष्ट हो जाये और अपवाद स्वरूप कहीं किसी हो भी तो वे इन कुंभ मेलों में दिखें ही नहीं। यह अगले कुंभ तक शायद ही असंभव रहे। एक के बाद एक मीडिया ऐसे प्रतीक ढूँढ लेता है और फिर उन्हें कुछ दिनों तक तब तक गढ़ता है जब तक कि नया न मिल जाये।
इंदौर की माला बेचने वाली बंजारन लड़की , मॉडल रही और साध्वी का रूप व मेकअप धरे एक लड़की, आईआईटी से निकला एक चरसी लड़का एवं किन्नर अखाड़े में ले छाँट छाँट कर एक दो चेहरे अभी तक इस कुंभ मेले के विषय वस्तु बन गये। सारी प्रचार रोशनी अब इन पर है । भाड में गये शंकराचार्य महामंडलेश्वर और हिंदू आख्यानों के विद्वान ! बागेश्वर अनिरुद्धातार्य देवकीनंदन और पूर्व की बबाइनों का समय गया। संवाद शास्त्रार्थ की परंपरा को कौन याद करता है। जैसी राजनीतितंत्र वैसा ही मीडिया और उसी के अनुरूप प्रवाह में बहते बाबा बबाइनों के वातानुकूलित आलीशान टेंट डेरे सिंहासन मुकुट वाहन और चेले चेलियॉं !
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था और समाज के विकृत मूल्यों ने इन धार्मिक व्यक्तियों और उनकी जीवन शैली का ग्रास बना कर वैसे ही तब्दील कर दिया है। सब धन के पीछे पागल हुये घूम रहे है। प्रमाणित रपटें आयी हैं कि इस बार का कुंभ बड़ा भुगतान कर सकने वाले धनाढ्य लोगों और बाबाओं के लिये सुविधाजनक है लेकिन आमजन और साधारण साधुओं के लिये बेहद कष्टकारी! सरकार ने जितना कुंभ पर खर्च किया उतना ज़मीनों की महँगी नीलामी से निकाल लिया है। सरकार क्यों न निकाले ? जब बड़े बाबा काले धन के पहाड़ में आकंठ डूब चुके हैं।
इस बार एक नहीं कुंभ की कई उदात्त परंपरायें तोड़ी गईं है।
कभी निमंत्रण नहीं भेजा जाता था किसी को। पंचांग में एक छोटी सी एंट्री से ही लाखों करोड़ों श्रद्धालु आते रहे हैं हजारों बरसों से । अब मुख्यमंत्री उप्र निमंत्रण बांटते घूमे हैं यहॉं तक कि अंबानी के बेटे के पास चले गये। सारा जोर निवेश पर है।जिस दुकानदार ने दो करोड़ में अपने ढाबे या भोजनालय की ज़मीन ख़रीदी है वह कैसे डेढ़ महीने में आम आदमीं को दस रूपये में चाय पिला सकता है ? नतीजतन आमजन चाय पानी तक के लिये असुविधा भुगत रहा है जबकि धनपशु अपने टेंट में गंगाजल के पूल में स्नान कर सकता है। यह बुद्धि की ऐसी विकृति है जो सनातन के स्थापित मूल्यों के खिलाफ है।
बहरहाल यू ट्यूबर और कैमराधारी मोनालिसा और मॉडलकन्या के कुंभ छोड़ देने से दुखी हैं और ढूंढते फिर रहे हैं कि कहॉं कैमरा केंद्रित करें ? दर्शक भी दुखी कि फिर से रोजमर्रा के कष्ट मुँहबायें आन खड़े है। डेरों के भीतर के दृश्य भी आस्थावानों को कभी भी विचलित कर सकते हैं !
सनातन धर्म में क्या तात्विक विशेषता थी , रही है ? इन बड़े शामियानों में कहीं दिख रही हो तो बताना !