अग्नि आलोक
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*मूल समस्याएं उड़न छू?*

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शशिकांत गुप्ते

आज सीतारामजी सुबह की सैर( Morning walk) करते हुए मुझे उड़ान पुल (fly over bridge) पर मिले। पारस्पारिक नमस्ते की औपचारिकता संपन्न हुई।
हम दोनों चर्चा कर ही रहे थे,उसी समय सीतारामजी के मित्र राधेश्यामजी अपने को पोते लेकर आए, राधेश्यामजी ने स्वयं ने तो नमस्ते किया और अपने पोते से कहा बेटे अंकल को हेलो (Hello) करो,राधेश्याम जी के पोते,ने तुतलाते हुए हेलो कहा और साथ ही में हमें फ्लाइंग किस (Flying kiss) भी दिया।
मैने सीतारामजी की ओर देखा,सीताराम जी कुछ कहते इसके पूर्व ही राधेश्याम जी नमस्ते कहते हुए वहां से रवाना हो गए।
राधेश्यामजी के रवाना होने के बाद मैने सीतारामजी से कहा पूत के पाँव पालने वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। राधेश्यामजी का पोता जरूर राजनीति में सक्रिय होगा।
सीतारामजी ने मेरे कथन पर सहमति प्रकट करते हुए मुझ से कहा कि, इन दिनों फ्लाइंग किस राष्ट्रीय मुद्दा है,इस उड़ान चुंबन के आगे सारी मूलभूत समस्याएं उड़न छू हो गई हैं।
मैने कहा अतीत की अतिशयोक्ति पूर्ण स्मृति, मानस पटल पर उभर कर आती है,जिसमें महंगाई के विरुद्ध, हाहाकार मचाते हुए,कुछ लोगों के द्वारा बीच चौराहे पर विलाप करने के दृश्यों का स्मरण होता है।
स्वयं के मन को निर्मला रखने हेतु तामसी प्रवृत्ति से बचने के लिए प्याज और लहसन रहित भोजन ग्रहण की घोषणा की याद आती है।
सीतारामजी, मेरी बात सुनकर नाराज हो गए,मुझ से पूछने लगे,आपको व्यंग्य लिखने के लिए,कोई अन्य मुद्दे मिलते ही नहीं है क्या?
मैने कहा इन दिनों बाजारवाद का दौर चल रहा है। इस दौर में विपणन अर्थात मार्केटिंग का बहुत महत्व है। किसी भी उत्पाद की मार्केटिंग को सफल बनाने के लिए, उस उत्पाद का विज्ञापन करना पड़ता है। विज्ञापन में उस उत्पाद की गुणवत्ता को उपभोक्ताओं के मानस पर हावी करने के लिए बार बार उत्पाद की प्रशंसा करनी पड़ती है।
इस प्रशंसा को मार्केटिंग की भाषा में Hammering करना कहते हैं।
हैमरिंग का शाब्दिक साथ होता है,हथौड़ा चलना।
मार्केटिंग में हैमरिंग से तात्पर्य,उपभिक्ताओ के दिमाग में उत्पाद के प्रति प्रलोभन युक्त मोह जागृत करना।
इस तरह हम एक ही मुद्दे पर बार बार व्यंग्य का प्रहार कर अपने स्वयं के साहित्यकार होने के दायित्व का निर्वाह कर रहें हैं।
सीतारामजी ने मेरी बात सुनने के बाद कहने लगे,मेरी शुभकामनाएं हैं आप व्यंग्य हथौड़े खूब चलाओ लेकिन सतर्कता बरतते हुए।
कहीं व्यंग्य के हथौड़ों पर बुलडोजर न चल जाए?
मैने कहा सावधानी बरतना ही चाहिए यह तो एक स्वाभाविक मशवारा है।
हम तो किसी अज्ञात शायर के इस शेर को पढ़ते रहते हैं।
बहुत गुरुर है तुझ को ऐ सिर-फिरे तूफां
मुझे भी ज़िद है दरिया पार को पार करना है

यह भी समझना जरूरी है कि, समय की करवट कैसे बदलती है,या बदल सकती है,इस मुद्दे पर शायर मीर तक़ी मीर रचित इस शेर को पढ़ने पर सब स्पष्ट हो जाता है।
दिल्ली में आज भीख भी मिलती नहीं उन्हें
था कल तलक “दिमाग़” जिन्हें ताज-ओ-तख़्त का

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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