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भारत जोड़ो न्याय यात्रा: एक ज़रूरी और प्रासंगिक यात्रा 

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सुसंस्कृति परिहार

  भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी की राहुल गांधी के नेतृत्व में पहली भारत जोड़ो यात्रा और दूसरी भारत जोड़ो न्याय यात्रा देश में मौजूद तमाम विकृतियों के ख़िलाफ़ देश की संस्कृति, संविधान और इंसानियत के वजूद को स्थापित रखने की ज़रुरी पहल है।यह तब तक प्रासंगिक रहेगी जब तक देश में लोकतांत्रिक ढांचा, स्वायत्त संस्थाएं तथा सामाजिक,आर्थिक न्याय की प्राप्ति नहीं हो जाती। दरअसल ऐसी यात्राएं देश के कोने कोने में चलती रहें तभी देश में नवजागरण संभव होंगा।

हालांकि इस यात्रा ने देश के लगभग 11000 कि मी से गुजर कर पहले सुदूर दक्षिण मे कन्याकुमारी से उत्तर भारत के श्रीनगर में दस्तक दी जिसका लक्ष्य था भारत जोड़ो नफ़रत की जगह मोहब्बत की दूकान खोलो ।इस यात्रा को मिली आश्चर्यजनक सफलता से  पूर्व से पश्चिम यात्रा की प्रेरणा मिली जिसने भारत जोड़ो के साथ न्याय को महत्वपूर्ण मानते हुए अन्यान्य से दहकते सिसकते सरकार की उपेक्षा के शिकार मणिपुर के इम्फाल के समीपवर्ती क्षेत्र थौवल से आर्थिक उत्पीड़न से जूझते मुम्बई महाराष्ट्र के धारावी में समाप्त की।इस यात्रा ने उन सामाजिक, आर्थिक असमानता वाले क्षेत्रों में जाकर  जनता के हाथ मज़बूत करने का पथ प्रदर्शित किया। इसलिए यह यात्रा ज्यादा महत्वपूर्ण और प्रभावी रही।इस यात्रा ने उन कारणों की पड़ताल भी की जिससे देश की हालत हर मामले में बदतर है।

जब दूसरी यात्रा राहुलगांधी निकाल रहे थे तो पार्टी में असंतोष था ,इस बात को लेकर कि चुनाव के समय यह यात्रा समय की बर्बादी होगी।आज यह सिद्ध हो गया कि राहुल गांधी की इस यात्रा ने ना केवल देशवासियों को संबल दिया है बल्कि कांग्रेस के प्रति अन्य दलों की दिलचस्पी को बढ़ावा है।जो इंडिया गठबन्धन के लिए लाभकारी होगा।इस यात्रा ने सरकार को भी परेशान कर रखा है।संयोग से न्याय यात्रा के योद्धा आज सरकार की अपराधियों के साथ चंदा रुपी रिश्वत की पोल खुलने से निश्चित तौर पर न्याय के प्रति आस्थावान होंगे।

 ऐतिहासिक शिवाजी पार्क मैदान में इंडिया गठबंधन ने जिस तरह से इस यात्रा का अभिनंदन किया वह मायनेखेज है। राहुल गांधी ने जब इस यात्रा की ज़रूरत के बारे में बताया तो सभा हतप्रभ रह गई उन्होंने बताया कि जब सदन में विपक्ष की आवाज़ नहीं सुनी गई, बिकाऊ गोदी मीडिया से उम्मीद नहीं रही तो उनने जनता के बीच अपनी बात कहने और जनता के मन की सुनने को ही उचित रास्ता समझा।वे चल पड़े और कारवां बनता गया। राहुल गांधी ने इस बात का भी उल्लेख किया कि लोग सोशल मीडिया को एक अच्छा मंच मानते हैं लेकिन वहां भी अमेरिकी पहरा है।रोजाना बेख़ौफ़ लिखने वालों,बोलने वालों को प्रतिबंधित किया जा रहा है। यकीनन राहुल गांधी का यह फैसला उचित था इसके ज़रिए फ़िज़ा में बदलाव नज़र आ रहा है लोगों में सोचने समझने की शक्ति विकसित हो रही है।सहो मत -डरो मत ने भी युवाओं में जोश भरा है जो लोकतंत्रका अनिवार्य हिस्सा है। वहीं नफ़रत के इस संघीय दौर में मोहब्बत का पैगाम भी बहुत कारगर रहा है इससे दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यकों को जीवन मिला है।यह सीधे-सीधे मनुवादी सोच पर एक हथौड़ा चलने जैसा है। जातिगत गणना के जो कारण गिनाए गए ,आंकड़ों का आईना दिखाया गया, उसने पिछड़े वर्ग को उद्वेलित किया है।देश के 22 अमीर परिवारों का रक्षक जब तमाम देशवासियों को अपना परिवार बताता है तो अवाम का खून खौल उठता है जिस देश के 80 करोड़ लोग राशन के मोहताज हों महिलाएं शौक से  हज़ार रुपए दक्षिणा लेने आतुर हों। जहां चालीस करोड़ से अधिक बेरोजगार युवा हों ये उसका परिवार हर्गिज नहीं हो सकता।

बहरहाल,ये जागृति मिशन बराबर चलते रहना चाहिए। इससे देश को बल मिलेगा और फासीवादी ताकतें कमज़ोर होंगी जो सत्ता पर काबिज हैं वह चीन और रूस की तरह  तानाशाह  बनकर पुनर्स्थापित होना चाहता है , इसलिए चार सौ पार की बात कह रहा हैं वह संविधान ख़त्म करने ही 400 पार चाहता है।इस चिंता में इंडिया गठबंधन सहभागी है। इसलिए उम्मीद 

की जा सकती है कि आकंठ गुनाहों में डूबीं यह अलोकतांत्रिक सरकार अब वापसी नहीं कर पाएगी।ज़रुरत है साहस के साथ हर गलत का जबरदस्त विरोध की। राहुल गांधी कहते हैं मैं नहीं डरता इसलिए जमकर विरोध कर पाता हूं।यात्रा के सबक याद रखें।

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