शिवसेना में 2005 के बाद सबसे बड़ी फूट पड़ी है। तब शिवसेना के उत्तराधिकारी बताए जा रहे फायरब्रांड नेता राज ठाकरे ने अपनी राहें अलग कर ली थीं। अब 2022 में शिवसेना में नंबर दो की हैसियत रखने वाले मंत्री एकनाथ शिंदे ने CM उद्धव ठाकरे को तगड़ा झटका दिया है।
इस फूट के साथ एक और बड़ी बात ये रही कि 27 साल बाद किसी क्षेत्रीय पार्टी में ऐसी टूट हुई कि पार्टी प्रमुख को CM कुर्सी गंवानी पड़ी।
1995 में एनटी रामाराव आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री थे और उनके दामाद चंद्रबाबू नायडू ने बगावत की थी। उस दौरान एनटी रामाराव की CM कुर्सी चली गई थी और चंद्रबाबू नायडू ने सरकार से लेकर संगठन तक पर कब्जा कर लिया था। एक तरह से 27 साल बाद इतिहास खुद को महाराष्ट्र में दोहरा रहा है।
क्षेत्रीय पार्टियों में कब-कब फूट पड़ी और इसका सियासत पर क्या असर पड़ा,
शिवसेना में अब तक की सबसे बड़ी टूट
शिवसेना में चौथी और सबसे बड़ी टूट हुई है। पहली बार 39 से ज्यादा विधायकों ने ठाकरे परिवार को छोड़कर बागी एकनाथ शिंदे के साथ जाने का फैसला किया है। इससे पहले कभी भी ऐसा नहीं हुआ।
पहली बार 1991 में छगन भुजबल के साथ 8 विधायक शिवसेना से अलग हुए थे। उसके बाद 2005 में नारायण राणे 10 विधायकों के साथ शिवसेना से अलग हुए। राणे को शिवसेना महाराष्ट्र का CM भी बना चुकी थी।
उसके बाद जब उद्धव ठाकरे को पार्टी की कमान दी गई तो 2005 में राज ठाकरे ने खुद को अलग करके महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का गठन किया। राज ठाकरे ने बड़े पैमाने पर पार्टी कैडर को तोड़ा था। हालांकि राज ठाकरे के साथ विधायक नहीं गए थे।
रामाराव का तख्तापलट किया था नायडू ने
चंद्रबाबू नायडू फिल्मकार एनटी रामाराव के दामाद थे, लेकिन नायडू ने सत्ता और संगठन पर कब्जा कर इतिहास का सबसे बड़ा उलटफेर किया था।
फिल्मकार एनटी रामाराव ने 1983 में आंध्र प्रदेश में तेलुगू देशम पार्टी की स्थापना की थी। पार्टी के गठन के नौ महीने के भीतर ही 1983 में वे आंध्र प्रदेश के 10वें मुख्यमंत्री बने। रामाराव ने आंध्र प्रदेश में पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनाई।
TDP के साथ एक और खास बात ये रही कि वह 1984 से 1989 के दौरान 8वीं लोकसभा में मुख्य विपक्षी दल बनने वाली पहली क्षेत्रीय पार्टी थी।
अगस्त 1995 में एनटी रामाराव के दामाद चंद्रबाबू नायडू ने तख्तापलट कर पार्टी और सरकार पर कब्जा कर लिया। एनटी रामाराव को हटाकर चंद्रबाबू नायडू को CM बनाया गया। कुछ महीने बाद ही जनवरी 1996 में एनटी रामाराव का निधन हो गया। किसी पार्टी में यह सबसे बड़ा उलटफेर हुआ था।
चाचा ने भतीजे की पार्टी पर कब्जा किया
दो दशक तक जिस पार्टी की कमान रामविलास पासवान थामे रहे, उनके निधन के बाद उनके बेटे चिराग पासवान ने कुछ ही महीनों में उस पर से पकड़ गंवा दी।
बिहार के दिग्गज दलित नेता राम विलास पासवान ने नवंबर 2000 में लोक जन शक्ति पार्टी का गठन किया था। दो दशक तक वह पार्टी प्रमुख रहे। अक्टूबर 2020 में उनके निधन के बाद पार्टी की कमान उनके बेटे चिराग पासवान को मिली।
कुछ दिनों बाद ही बिहार विधानसभा का चुनाव हुआ। चुनाव में चिराग पासवान ने NDA से नाता तोड़ लिया। अपने दम पर पूरे प्रदेश में चुनाव लड़ा, लेकिन सफल नहीं हो पाए। LJP की स्थिति लगातार कमजोर होती गई।
जून 2021 में LJP के 6 में से 5 सांसदों ने चिराग पासवान के खिलाफ बगावत कर दी। उनके सांसदों ने चिराग पासवान के चाचा पशुपति पासवान को अपना नेता मान लिया। लोकसभा में भी पशुपति पासवान की LJP को मान्यता मिल चुकी है।
ममता ने तृणमूल कांग्रेस बनाई, सत्ता तक पहुंचीं
कांग्रेस को अपनी राह में रोड़ा बनता देख ममता बनर्जी ने TMC बनाई और लेफ्ट के गढ़ में सत्ता हासिल की।
कांग्रेस में तेजी से बढ़ रहा ममता बनर्जी का कद पार्टी को रास नहीं आया। फायरब्रांड नेता बन चुकीं ममता बनर्जी ने अपनी राह अलग कर लेना ही बेहतर समझा और पश्चिम बंगाल में 1 जनवरी 1998 को तृणमूल कांग्रेस का गठन किया। एक दशक से ज्यादा संघर्ष करने के बाद ममता ने पश्चिम बंगाल से वामपंथी सरकार को उखाड़ फेंका।
मई 2011 से वह लगातार तीसरी बार CM बनी हैं। 2009 के आम चुनाव से पहले TMC 19 सीटों के साथ लोकसभा में छठी सबसे बड़ी पार्टी थी। 2019 के आम चुनाव के बाद, वर्तमान में यह लोकसभा में चौथी सबसे बड़ी पार्टी है। लोकसभा में TMC के पास 22 सीटें हैं।
पिता की मौत के बाद जगन ने बनाई पार्टी
जगन मोहन के पिता वाईएसआर रेड्डी (बाएं) की एयर क्रैश में मौत के बाद कांग्रेस ने जगन को CM नहीं बनाया तो 177 में से 170 विधायकों के साथ जगन कांग्रेस से अलग हो गए।
2009 में हेलिकॉप्टर क्रैश में आंध्र प्रदेश के तत्कालीन CM वाईएसआर रेड्डी की मौत होने के बाद उनके बेटे जगन मोहन रेड्डी ने कांग्रेस हाईकमान से उन्हें CM बनाने की मांग की। तब वह कांग्रेस विधायक थे, लेकिन कांग्रेस किसी ऐसे शख्स को CM बनाना चाहती थी, जो पार्टी के लिए काम करे।
जगन मोहन रेड्डी ने सोनिया गांधी से भी मुलाकात की, लेकिन बात नहीं बनी। जगन मोहन रेड्डी को पिता की मौत के बाद राज्य में श्रद्धांजलि यात्रा तक निकालने की अनुमति नहीं मिली।
इस पर कांग्रेस के 177 में से 170 विधायकों ने जगन मोहन रेड्डी को अपना समर्थन दिया और जगन मोहन रेड्डी ने 2009 में अपने पिता के नाम पर YSR कांग्रेस की नींव रखी। लगभग एक दशक के संघर्ष के बाद 2019 में वह आंध्र के CM बने।
जनता दल में सबसे बड़ी टूट 1990 में हुई
अक्टूबर 1988 को वीपी सिंह की अगुआई में जनता दल की बुनियाद पड़ी। जनता पार्टी, जनमोर्चा और लोकदल का जनता दल में विलय हो गया। 1989 में जनता दल के नेतृत्व में वीपी सिंह की सरकार बनी।
भाजपा से समर्थन वापसी के बाद वीपी सिंह की सरकार गिर गई, जिसके बाद चंद्रशेखर ने जनता दल के 40 सांसदों के साथ समाजवादी जनता पार्टी बनाई।
कांग्रेस के समर्थन से चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने, लेकिन कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया, ये सरकार चार महीने ही चल सकी।
इसके बाद चंद्रशेखर और मुलायम सिंह यादव में भी फूट पड़ गई। 1992 में मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी जनता पार्टी से अलग होकर समाजवादी पार्टी बनाई।
जनता दल से बगावत कर अजित सिंह ने बनाई थी RLD
जनता दल में 1992 में एक और टूट हुई। चौधरी अजित सिंह ने भी जनता दल से अलग होकर राष्ट्रीय लोकदल नाम से नई पार्टी बना ली। इसके बाद UP से जनता दल का अस्तित्व ही खत्म हो गया। हालांकि तीन दशक बाद भी RLD UP में बहुत अधिक प्रभाव नहीं बना पाई है। RLD केवल पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों तक सीमित होकर रह गई है।
बिहार में समता पार्टी से बनी JDU
लालू प्रसाद और नीतीश कुमार पहले जनता दल में थे। लालू के बढ़ते प्रभाव की वजह से नीतीश ने अलग पार्टी बनाई और लालू की सत्ता को चुनौती दी।
जनता दल के कमजोर होने के कारण बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव का पार्टी पर प्रभाव बढ़ता जा रहा है। इससे जॉर्ज फर्नांडीज और नीतीश कुमार परेशान थे। इन दोनों नेताओं ने खुद को जनता दल से अलग कर लिया और समता पार्टी बनाई। समता पार्टी ने बिहार में भाजपा के साथ गठबंधन करके लालू यादव के खिलाफ सियासी जंग लड़ी। आगे चलकर समता पार्टी का नाम बदलकर जनता दल यूनाइटेड किया गया।
पवार ने जनता पार्टी से हाथ मिला गिराई कांग्रेस सरकार
साल 1977 में कांग्रेस पार्टी, कांग्रेस (यू) और कांग्रेस (आई) में बंट गई थी। शरद पवार कांग्रेस (यू) में शामिल थे। 1978 में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में दोनों धड़ों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा। जनता पार्टी को रोकने के लिए दोनों धड़ों ने साथ मिलकर सरकार बनाई। हालांकि कुछ ही महीनों बाद शरद पवार ने कांग्रेस (यू) को भी तोड़ दिया और जनता पार्टी के साथ मिलकर नई सरकार बनाई और खुद मुख्यमंत्री बन गए थे।
कांग्रेस में खुद को दरकिनार होता देख ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बगावत की और कमलनाथ की CM कुर्सी चली गई।
सिंधिया ने 22 विधायकों के साथ कांग्रेस छोड़ी
साल 2020 में सत्तारूढ़ कांग्रेस के बड़े नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने 22 समर्थक विधायकों के साथ पार्टी छोड़ दी थी। इनमें 6 नेता कमलनाथ सरकार में मंत्री थे। ऐसे में कमलनाथ की सरकार अल्पमत में आ गई और उन्हें अपने मंत्रियों के साथ इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद सिंधिया ने अपने समर्थक विधायकों के साथ भाजपा का दामन थाम लिया और राज्य में एक बार फिर शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में बीजेपी ने सरकार बनाई।